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________________ १०२, वर्ष २०, कि०१ अनेकान्त द्वार दर्शकों के लिए विशेष प्राकर्षण का केन्द्र बना हुआ आदीश्वर भगवान के मंदिर की प्रतिष्ठा महारावल रणहै। यह मंदिर तालाब की तलहटी मे आने के कारण जीत सिंह के समय मे सम्पन्न हई थी। इन मन्दिरो के जब अमरसागर पानी से भर जाता है तो मंदिर का निर्मातामो ने भी सुन्दर छोटे-छोटे बगीचे भी बनाये है । निचला भाग पानी में डूब जाता है। उस समय पाषाण जहाँ माज भी यात्री ठहर कर प्रानन्द लाभ लेते है। कला कृतियों और इस शिखरघारी मंदिर की परछाई और पानी से भरे अमरसागर की बनावट और उसमे श्री टाप की भांति देवस्थान की स्थिति अत्यंत ही सुन्दर आदीश्वर भगवान का मन्दिर प्रकृति-छटा की अनोखी लगती है। पानी की लहरो के साथ झूलती तस्वीर बताता ही है। दूसरी ओर जब रेगिस्तान में मन्दिर के शिखर की परछाई, बारीक शिल्पकला से प्रकाल की भीषणता रहती है तो सम्पूर्ण अमरसागर सूख निमित झरोखों और जालियों की बनावट अत्यन्त ही जाता है । उस समय इसकी गोद में पगबावे और बेरियां आनन्दित करती है। ही एकमात्र इसका परिधान बन कर रह जाती है । अनेकों श्री प्रादीश्वर प्रभु के इस देरासर का शिल्पकला से पगबातों सजा जितना सुन्दर बाह्य पोर शिखर का भाग है, उतना की बनावट और उसकी साज-सज्जा का प्रानन्द लेने के ही सुन्दर अन्दर का हिस्सा पाषाण कलाकृतियों से लिए ग्रीष्म काल में प्राचीन जैसलमेर क्षेत्र का जनसमुदाय सजाया गया है। सभा मडप, रंग-मडप, मूल गम्भारा बराबर उपयोग करता रहता है। अमरसागर में बनी को पाषाण कलाकार ने अपनी छेनी और हथौड़ी से पगबावड़ियों को राजा महाराजाओं, सेठ साहकारों और सजाने का सफलीभूत प्रयत्न किया है। प्राचीन मत्र-पट्ट वेश्यामों ने बनाया हैं। यहां सखे सागर की पग बावड़ियों की सुन्दर पाषाण बनावट, प्राचीन ऐतिहासिक महत्ता, के प्रांतरिक स्थलों में निर्मित भवनों में संगीत की लय मत्रो की छिपी जानकारी प्रागन्तुकों को स्वतः ही अपनी जान नाच के साथ गूगरों की झनझनाहट, साजों की सुरीली ओर प्राकर्पित किए रहती है । चिताकर्षक मूल प्रतिमा की प्रावाज तथा भत्तिगान के गीतों की धुन सुनाई देती है। बनावट और सजावट नयनाभिराम है। इस मन्दिर के जब वर्षा के पानी से सागर लबालब भर जाता था, तब प्रांतरिक और बाहरी भाग को सजाने सवारने से अछूता किनारों पर बनी हवेलियों, मदिरों, धर्मशालाओं, राजनहीं छोड़ा गया है। कलाकारो ने यहाँ पाषाणों पर कला प्रासादों की जालियो और झरोखों में झांकती रमणियों कृतियों को गहरा और ऊंचा उभारने का अनोखा प्रयत्न की सुन्दरता, भवनों की परछाइयों डबकी लगाते तैराकों किया है। मन्दिर के पास बनी पगवाव और दादा श्री की कलावाजियों, चाँदनी रात मे नौका-विहार का दृश्य जिनकूशलसूरिजी के चरण-मन्दिर को बनावट भी देखने । मन-मयूर को आनन्दित किए बिना नही रहता। लायक बनो हुई है। मन्दिर के सामने सेठ श्री हिम्मतमल अमर सागर का निर्मल जल, श्री आदीश्वर प्रभ की जी के बिश्राम-गृह की बनावट और उसमे की गई सफेद भक्ति और सूखी पगबावड़ियों के वैभव की गौरव-गाथामों पालिश प्राचीन वैभव का परिचय देती है । इस विश्राम पर बने गीत आज भी गुनगुनाए जाते है। इस वैभव के स्थली के पास सुन्दर बगीचा, अंगूर की बेलों के लिए अतिरिक्त महारावल अमरसिंह का बनाया बगीचा और पीले पाषाण के तोरण आज भी प्राचीन एवं शान शौकत उसमें बनी विश्राम चौकियों के गुम्बज उनकी पाषाणकला की प्रदा बता रहे है। प्रियता, प्रकृति-प्रेम तथा वैभव की गरिमा का परिचय इस मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त अमरसागर क्षेत्र में दो देते हैं। इस बाग में अनार, अमरूद, नींबू, प्राम, इलाअन्य मन्दिर-श्री प्रादीश्वर प्रभ के मन्दिर विद्यमान है। यची, अगर आदि फल पैदा किये जाते थे जिसके पेड़एक सेठ श्री सवाईराम जी ने वि० सं० १८६७ में और पौधों के अवशेष इस समय भी दृष्टिगोचर होते हैं। दसरा पोसवाल पंचायत की तरफ से वि० सं० १९०३ में मोगरा, चमेली भादि फूलों की सुगध से यह बाग बनाया गया है। प्रोसवाल पंचायत की ओर से निर्मित हमेशा महकता रहा है। माज बाग की स्थिति बदल
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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