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________________ शिल्पकला एवं प्रकृति वैभव का प्रतीक : अमरसागर (जैसलमेर) चुकी है। फल फूलों मे झूमने वाला दृश्य यद्यपि नहीं है, मूल सागर, मूल तालाब, किशनघाट, गजरूपसागर, ईस फिर भी साग-सब्जी की हरियाली अब भी विद्यमान है। तालाब, गुलाउ सागर, गड़सी-सर प्रादि सरोवरों की लोक अमर बाग के पास ही महारावल श्री अमरसिंह ने प्रियता, वैभव, सुन्दर शिल्पकला, धार्मिक भावनामों, प्रकृति अपनी धर्मपत्नी अनपकंवर के नाम से अनुप बाव-मातुबाव के नयनाभिराम दश्यो के साथ महारावल श्री अमरसिह का निर्माण भी करवाया। यह पगबाव काफी बड़ी है। द्वारा निर्मित अमरसागर की पवित्रता माज भी लोकप्रिय जिसके पश्चिमी किनारे पर बनी पीले पाषाणों की छतरी बनी हुई हैं। अमरसागर प्रकृति-सौन्दर्य की स्थली है, प्रकृति-सौन्दर्य का प्रतीक है। इस पगबाव का निर्मल, धार्मिक पुण्यभमि है, वैभव का प्रतीक है, शिल्पकलाकृतियों शान्त और स्वच्छ जल अत्यन्त ही स्वादिष्ट है । जैसलमेर का अनोखा खजाना है और पुरातत्त्व को ऐतिहासिक और प्रासपास का जनसमदाय प्रकृति-वैभव का प्रानन्द खोज का केन्द्र भी बना हुआ है। जैन धर्मावलम्बियो का लेने के लिए बराबर यहां पाता रहता है और गोठ गूगरी यह तीर्थस्थान होने के कारण प्रति वर्ष हजारो यात्री तथा पिकनिक के साथ-साथ इस बाव में डुबकियां लगाकर दर्शक इसकी यात्रा का प्रानन्द उठाते है। जैसलमेर स्नान का आनन्द लेते है। के ख्याति-प्राप्त जैन तीर्थ लोदवा की यात्रा के समय जैसलमेर के चारो ओर लगभग एक से चार मील इसकी यात्रा की जाती है। जैसलमेर जैन पंचतीर्थी का के दायरे में फैले रत्नसार, जेतसार, रामनाथ, गंगासागर, यह मख्य दर्शनीय अंग भी हैं। जूनी चौकी का वास, बाड़मेर (राजस्थान) [पृ० १०० का शेषाश] इसी प्रकार मणिबंध पर तीन रेखाओं से पाश्चात्य जिनसेनाचार्य ने प्रायु संबंधी जिस रेखा का ऊपर हस्तरेखा विशारद दीर्घायु होने का फल बताते है। उल्लेख किया है, वह अन्य भारतीय हस्तरेखा-ग्रन्थों में कुल हाथ की रेखाएं-जिनसेनाचार्य के अनुसार जिसकी रेखा या गोत्र रेखा कहा गया है। किन्तु भारतीय पौर रेखा कनिष्ठा से लेकर प्रदेशिनी तक लबी चली जाती है. पाश्चात्य मत में बड़ा अंतर है। इसे भारतीय प्रायु-रेखा वह दीर्घाय होता है। जिसकी रेखाएं कटी-फटी या छोटी कहते है तो पाश्चात्य विद्वान हृदय-रेखा। पाश्चात्य मत के हों, वह अल्प प्राय का धारक होता है। यदि किसी व्यक्ति अनुसार यह रेखा करतल के दाहिनी ओर से निकल कर गुरु क्षेत्र के नीचे गोलाई लिए हुए मणिबध की ओर चली के हाथ में तलवार, गदा, भाला, चक्र आदि हों तो वह जाती है (श्री प्रोझा) सेनापति होता है। उक्त स्वयंवर के बाद जब मधुपिंगल को एक अन्य 'करलक्खण' में प्रायु-रेखा का फल इस प्रकार कहा सामुद्रिक ने यह बताया कि उसके नेत्रो का पीलापन तो कहा गया है। अन्य लक्षणो से मिलकर उसके राज्य और सौभाग्य को बीस तीस चत्ता पण्णास सट्रि सरि प्रसिध। सूचित करते है । इस पर जिनसेनाचार्य ने यह मत व्यक्त णउयं कणदियाऊ पएसिणं जाव जाणिना॥ किया है कि जो लोग स्वयं शास्त्रों को देखते समझते नहीं, लगाकर प्रदेशिनी तक रेखा के अनुमागिल के समान दसरे लोगों द्वारा ठगे जाते हैं। सार बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी और नब्बे वर्ष की आयु जानना चाहिए।) सहायक निदेशक, उक्त अथ में ही हाथ में सिंह, बैल, चक्र, असि, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, परशु. तोमर, शक्ति, धनुष और कुन्त के प्राकार वाली पश्चिमी ब्लाक, ७, रामाकृष्णापुरम्, रेखामों का फल सेनापति होना बतलाया गया है। नई दिल्ली-२२
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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