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________________ ६८, वर्ष २८, कि० १ अनेकान्त या सियार प्रादि की तरह कमर वाले को निर्धन बताया अग्रभाग छोटे और स्थूल होते है, वे उत्तम, भाग्यशाली होते हैं । जिनके दीर्घ या विषम होते है, वे निर्धन । __ भविष्य पुराण के अनुसार श्री प्रोझा ने सम उदर हृदय एवं वक्ष-उक्त प्राचार्य का मत है कि राजानों वाले को धन-ऐश्वर्य-सम्पन्न बताया है. और घड़े की तरह का हृदय पुष्ट, चौडा, ऊचा प्रौर कपन से रहित होता है। पेट वाले को दरिद्र । पेट आगे नहीं निकला होना शुभ पुण्य हीनों का, तीक्ष्ण रोगो से व्याप्त रहता है। सम लक्षण माना गया है । 'सामुद्र तिलक' प्रादि ग्रन्थो मे मेढक वक्षस्थल वाले संपत्ति-शाली, स्थूल वाले शूर वीर किन्तु हिरन मादि जानवरों के पेट से पेट की तुलना कर शुभा- निर्धन, और कृश तथा विषम वाले निर्धन एवं शस्त्र से शुभ फल कहा गया है। सामद्र तिलक मे साप की तरह मारे जाने वाले होते है। पेट वाले को जोकर होना बताया गया है। श्री प्रोझा के अनुसार चौड़ा, स्थिर, उन्मत्त और पसलियां और कूक्षि:-प्राचार्य का कथन है कि कठिन वक्षस्थल शुभ लक्षण है। पतले वक्ष वाला व्यक्ति जिनकी पसलियाँ भरी होती है, वे सखी होते है, ऊंची- निर्धन होता है, तथा पुष्ट वाला बहादुर । इसी प्रकार नीची, टेढ़ी पसलियों वाले भोग रहित बताए गये है । सम समतल याला धनी कहा गया है। कुक्षि वाले भोगी, असम वाले भोग रहित, विषम वाले बगल, गरदन, पीठ, स्कन्ध :-जिनसेन के अनुसार निर्धन और उठी हुई कुक्षि वाले निर्धन होते है। धनी मनुष्यों की बगल पसीने से रहित, पृष्ट और समान रोममें से युक्त होती है । निर्घन की गरदन नमों से युक्त, भविष्य पुराण का संदर्भ देते हुए श्री प्रोझा ने लिखा चपटी होती है, जब कि शंख जैसी गरदन वाला राजा है कि सम कुक्षि वाले भोगी होते है, किन्तु नीची कुक्षि होता है और भैस जैमी गरदन से युक्त व्यक्ति शूरवीर । वाले धनहीन । हाथी जैसी कुक्षि जिनकी होती है, वे कपटी जो पीठ रोम से रहित और सीधी हो, वह शुभ होती है। या मायावी कहे गये हैं। झुकी हुई और रोमों से भरी पीठ प्रशुभ कही गई है। नाभि पोर बलि :-चौड़ी, ऊँची और गहरी गोल निर्धन के कन्धे छोटे, प्रपृष्ट एव रोमो से व्याप्त होते है, नाभि को प्राचार्य जिनसेन ने सुखी मनुष्य का लक्षण जब कि पराक्रमी और धनवान के कन्धे सटे हुए एवं पुष्ट बताया है। जिसकी नाभि छोटी दिखाई देने वाली हो, वह होते है। दुःखी होता है । कमल कणिका जैसी नाभि मनुष्य को श्री मोझा के अनुसार भविष्य पुराण में भी पुष्ट, राजा बनाती है, विस्तृत नाभि दीर्घायु और धनवान होने बिना पसीने की बगल राजा की होती है, ऐसा कहा गया की सूचना देती है। इसी प्रकार जिसके एक वलि होती है। गरुड पराए + वाल हाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार पीपल के पत्ते के प्राकार की है, वह शास्त्रार्थी होता है, दो वलि से युक्त व्यक्ति स्त्री- सगन्धयुक्त, मृद् रोमों से युक्त बगल राजा की होती है। प्रेमी तीन वाला प्राचार्य और चार वाला अधिक सन्तान विषम होने पर कि बेईमात्र लोधी विषम होने पर व्यक्ति बेईमान, लोभी होने पर निर्धन वाला तथा जिसके एक भी वलि नही हो, वह राजा होता इत्यादि होता है। है। स्वदार-संतोषी व्यक्ति की वलि सीधी होती है, जब गरदन के जो लक्षण प्राचार्य जिनसेन ने कहे है, वे कि प्रगम्यगामी एवं पापी लोगों की विषम । भविष्य पुराण में भी आये हैं। केवल मृग के समान गरभविष्य पुराण सीधी वलि वाले को सदाचारी और दन वाले व्यक्ति को डरपोक कहा गया है। ऊंची-नीची या टेढी बलि से युक्त व्यक्ति को व्यभिचारी भविष्य पराण और मामटिक नास्त्र में पीट के जि घोषित करता है । एक भी वलि का न होना उत्तम, एक व्याघ्र, सिंह, कछुए आदि से समानता कर शुभाशुम लक्षण से विद्वान, दो से भोगी, तीन से अनेक शास्त्रों का विद्वान् कहे गए है । पीठ पर रोयें न होना धनी व्यक्ति का चिह्न पौर चार के कारण बहुत पुत्रवान् होता है। बताया गया है, जब कि पीठ पर रोयें वाले को निर्धन हरिवंश पुराण के अनुसार जिन मनुष्यों के स्तनों के कहा गया है।
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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