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हरिवंशपुराण में शरीर लक्षण : एक अध्ययन
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जानना चाहिए।
सामुद्र तिलक के अनुसार मोझा जी ने लिखा है कि श्री प्रोझा ने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के उद्धरण हाथी के समान घुटने वाला भोगी होता है मोर मोटे देते हुए लिखा है "जिनके पैर में शख, छेत्र, वन, घुटनो वाला पृथ्वी का स्वामी होता है। घुटनों पर प्रसतलवार, ध्वजा, कमल, धनुष, बाण, शक्ति, सर्प, मान मांस जिसके हो, वह कभी धनी नहीं होता। व्यजन, चामर प्रादि चिह्न हैं, वे भाग्यशाली होते है । रोम और केश:-प्राचार्य के मतानुसार राजामों वराह मिहर का मत है कि राजा के पैर कछुए की तरह के एक रोम-कप में एक रोम होता है। यदि दो या तीन उन्नत होते है। भाग्यवानों के पैरों की उंगलियां मिली हो तो मनुष्य निर्धन या मुर्ख होता है। यही बात का हुई होती हैं तथा नाखून लाल होते हैं । इसी प्रकार सफेद पर भी लाग होती है। और रूखे नाखून जीवन में कष्ट भोगने वालों की सूचना
गने वाला का सूचना समुद्र ऋषि के मतानुसार एक रोम-रूप में से एक ही देते हैं। जिनके पर कषाय वर्ण के हों, उनका वंश मागे
रोम या केश का निकलना बहुत शुभ है। दो निकलें तो
माही का निकलन नहीं चलता और जली हुई मिट्टी की तरह जिनके पैर का व्यक्ति बतिमान होगा। मगर तीन निकले तो दरिद्री रंग हो, वे पापी और हिंसक होते हैं । पैरों में नसों का एवंदखी। दिखाई देना भी "अच्छा लक्षण नहीं।"
अण्डकोष, नितम्ब प्रादि:-जिनसेन का मत है कि 'कर लक्खण' का प्रमुख उद्देश्य व्रत लेने के इच्छुक यदि किसी बालक का शिश्न छोटा, दाहिनी ओर स्थूल व्यक्तियों को केवल तब ही व्रत देना उचित बनाना है जब तथा प्रन्थियुक्त हो तो वह शुभ होता है। इसरो विपरीत कि हाथ की रेखाओं आदि को देख कर उसकी पात्रता या अशुभ होता है। छोटे अंडकोष वाले शीघ्र ही मृत्यु को अपात्रता का निर्णय कर लिया गया हो। इसलिए उसके प्राप्त होते हैं, किन्तु विषम अंडकोष वाले स्त्रियों को वश 'पैरों में शंख प्रादि चिह्नों का फल नही कहा गया है। में करते हैं । जो राजा होता है, उसके अण्डकोष सम होते (जब कि हाथ में इन चिह्नों का फल बताया गया है।) है और नीचे की पोर लटकते रहते हैं, वे दीर्घजीवी होते सम्भवतः ये लक्षण यतियों को बताए जाते थे। इस प्रन्थ हैं। इसी प्रकार जिसका मूत्र सशब्द निकलता है, वे सुखी में लिखा है
होते हैं और इसके विपरीत वाले दु.खी । जिनके मूत्र की इय कर लक्खणमेयं समासपो छंसिझं जइजणस्स । पहली और दूसरी धारा दाहिनी ओर पड़ती है, वे लक्ष्मी पुवायरिएहिं गरं परिक्खि उणं वयं दिज्जा।
के स्वामी होते है तथा इससे उलटी धारा वाले निर्धन (इस प्रकार पूर्वाचार्यों ने यतियों के कर लक्षण,
होते है । पुष्ट नितम्ब वाला व्यक्ति सखी होता है, स्थल संक्षेप में बताए हैं। इनके द्वारा मनुष्य की परीक्षा करके
वाला दरिद्र और ऊँचा उठे नितम्ब वाला व्याघ्र से मारा प्रत देना चाहिए।
जाता है।
कमर और पेट :-सिंह के समान पतली कमर वाला कीरो और बेनहम ने भी अपनी उक्त पुस्तकों में पैरों व्यक्ति राजा होता है, जब कि ऊँट या बन्दर के समान के उक्त लक्षणों का कोई उल्लेख नहीं किया है। कमर वाला धनी। जिसका पेट न छोटा, न बड़ा हो, वह
घुटने और पिंडलिया-जिनसेन का मत है कि जिन सुखी और घड़े के समान पेट वाला दुःखी होता है । सांप मनुष्यों की पिंडलियों में थोड़े बाल होते हैं और यदि वे की तरह लम्बे पेट वाला दरिद्र एवं बहुत भोजन करने गोल-गोल हों तो वे मनुष्य भाग्यशाली होते हैं और वाला होता है। दुबली-पतली पिंडलियों या जॉर्घ प्रशुभ होती हैं। इसी श्री प्रोझा ने बृहत्संहिता के माधार पर शेर की सी प्रकार भाचार्य ने स्थल घुटने वाले को धनी, ऊँचे उठे कमर वाले को उच्चाधिकारी तथा बन्दर या हाथी के वाले को भोगी, गहरे वाले को निधन एवं विषम वाले को बच्चे के समान जिसकी कमर हो, उसे धनहीन बताया है। विषम ही कहा है।
इसी प्रकार उन्होंने समुद्र ऋषि के अनुसार बन्दर, हाथी