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________________ हरिवंशपुराण में शरीर-लक्षण : एक अध्ययन श्री राजमल जैन, नई दिल्ली प्राचार्य जिनसेन ने अपने हरिवंश पुराण में कुछ उसकी माता दिति ने स्वयंवर से पहले उससे यह कहा विस्तार से हस्तरेखा विज्ञान का वर्णन प्रशगवश किया है। कि वह उसके बड़े भाई तृणबिन्दु के पुत्र मधुपिगल का (यहाँ हस्तरेखा मे शरीर-लक्षणो का भी समावेश अभीष्ट वरण करे। यह बात राजा सगर की प्रतिहारी मन्दोदरी ने है।) सन् ७८३ ई० में समाप्त इस रचना में इन लक्षणो सुन ली, और राजा सगर को सब कुछ बता दिया। राजाका वर्णन, अध्ययन एवं कौतुक का विषय है। प्रस्तुत लेख सगर मुलसा से ब्याह करना चाहता था, इसलिए उसने में जिनसेन द्वारा वर्णित रेखाओं आदि की तुलना प्रसिद्ध एक पुरोहित से सामद्रिक-शास्त्र के सिद्धान्त लिखवाए प्रार पाश्चात्य हस्तरेखा विशेषज्ञ कीरो (cherro) की पुस्तक उन्हे एक लोहे के संदूक मे बन्द करवा कर स्वयवर-भूमि 'पामिस्ट्री फोर पाल' तथा बोनहम को 'लाज आफ साइं. मे गड़वा दिया । और जब स्वयवर का दिन आया तब टिफिक हैड रीडिग' से पंडित गोपी कुमार प्रोझा की एक वह शास्त्र उसने सब राजापो के सामने पढ़वाया। उसे अन्य पुस्तक 'हस्तरेखा का विज्ञान' से उदधरण देकर की सन मधुपिगल ने मोचा कि उसकी प्रॉनो मे दोप है । जाएगी । प० अोझा ने अपनी उक्त कृति मे भारतीय इसलिए सुलसा उसका वरण नहीं करेगी। अतः वह स्वएवं पाश्चात्य दोनों ही सिद्धान्तो को सम्मिलित किया है। यंवर मइप से ही उठ कर चला गया । इस प्रकार सुलसा प्रतः सार रूप मे अन्य भारतीय एव पाश्चात्य हस्तरेखा का विवाह राजा सगर से हुया । बाद में जब मधुपिगल विशेषज्ञों का मत भी यथासम्भव समाविष्ट किया जा को यह ज्ञात हया कि उसमे दोष नहीं है, पीर उसे व्यर्थ सकेगा। भारतीय ज्ञानपीठ से एक जैन कृति 'करलक्खण' में ही दोपयुक्त घोपित किया गया था, तो उसने प्रतिशोध प्रकाशित हुई है, किन्तु उसके कर्ता और काल का ज्ञान लिया, इत्यादि। नहीं है। उसका भी प्रयोग तुलना के लिए किया जाएगा। बर:-(जि.) राजा के पैर मछली, शंख तथा इस प्रकार यह तुलना सीमित ही रहेगी। लेखक यह भी मात विद्रों से यक्त होते हैं, कमल के भीतरी भाग स्पष्ट कर देना चाहता है कि वह हस्तरेखा का पण्डित मान उनका मध्य भाग होता है । एड़ियों की उत्तम नहीं है। उसने केवल शौक के बतौर हस्तरेखा पर भी शोभा से सहित होते है, उनकी अगुलियों के पौर एक कुछ पढ़ा है, और इस प्राचीन सामग्री पर निगाह पड़ने दूसरे से सटे रहते है, उनके नख चिकने एवं लाल होते पर उसने उसे यहाँ देने की धृष्टता की है। हरिवंश पुराण उनकी गाठे छिपी रहती हैं, वे नसों से रहित होते है, संस्कृत मे है । यहाँ पंडित पन्नालाल जैन साहित्याचार्य कुछ-कुछ उष्ण होते है, कछुए के समान उठे होते है और द्वारा किए गए हिन्दी अनुवाद का प्रयोग किया गया है। पसीने से मक्त होते है। इसके विपरीत पापी मनुष्य के माधुनिक युग में राजा तो रहे नही, इसलिए अब राजा से रसप के ग्राकार के, फैले हए, नसों से व्याप्त, टेढ़े, रूखे महापुरुष या प्रसिद्ध पुरुष का अर्थ ग्रहण करना उचित नखों से युक्त, सूखे एवं विरल, अगुलियों वाले होते है। होगा। जो पैर छिद्र रहित एवं कषले रग के होते है वे वश का हरिवंश पुराण के तेईसवें सर्ग में हस्तरेखा सम्बन्धी नाश करने वाले होते है। (सच्छिद्रौ सकषायो च वंशप्रसंग इस प्रकार है-“धारणयुग्म नगर के राजा अयोधन च्छेदकरो तु तौ) । हिंसक मनुष्य (हिंस्रस्य) के पैर जली तथा रानी दिति की सुलसा नामक एक सुन्दर कन्या थी। हुई मिट्टी के समान और क्रोधी मनुष्य के पैर पीले रंग के
SR No.538028
Book TitleAnekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1975
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size15 MB
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