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________________ बराङ्गचरित में राजनीति ४७ हमा अपनी ऋद्धियों को बढ़ाता रहे"। उत्तराधिकार-सामान्यतया राज्य का उत्तराधि. शासन-राजा का शासन इतना प्रचण्ड हो कि लोग कारी राजो के ज्येष्ठ पुत्र को बनाया जाता था। किन्तु उसके जनपद या राजधानी में चारो वर्ण और पाश्रमो की यदि ज्येष्ठ पुत्र की अपेक्षा कनिष्ठ पुत्र अधिक योग्य हमा मर्यादाओं को लाँधने का साहस न करे। सब धर्मों के तो उसे राज्य सिंहासनाभिषिक्त किया जाता था। वरांगअनुयायी अपने अपने शास्त्रों के अनुसार आचरण करें। करें। चा चरित के बारहवें सर्ग से ज्ञात होता है कि कुमार सुषेण बालक, वृद्ध, अज्ञ तथा विद्वान् सभी अपने कर्तव्यो का यद्यपि वरांग से बड़े थे किन्तु महाराज धर्मसेन ने मंत्रियों पालन करें। यदि कोई पुरुष मन से भी उसका बुरा की सलाह से बराग को ही राजा बनाया; क्योंकि कुमार करने का विचार लाए या विरुद्ध कार्य करे तो वह उसके वरांग अधिक योग्य थे। ऐसे समय राजा को गृह कलह राज्य में एक क्षण भी ठहरने का साहस न करे । वह इतना का भी सामना करना पड़ता था। राजा वरांग को भयभीत हो जाय कि अपने को इधर उधर छिपाता फिरे विमाता की असूया का शिकार होना पड़ा । राजा धर्मसन ताकि भूख प्यास की वेदना से उसका पेट, गाल और । ने वरांग को इसीलिए युवराज बनाया; क्योंकि कुमार आँखें घुस जाय तथा दुर्बलता और थकान से उसका वराग ने सब विद्यानो और व्यायामों को केवल पढ़ा ही पृष्ठदण्ड झुक जाय। राजा का शासन इतना अधिक नहीं था अपितु उनका आचरण करके प्रायोगिक अनुभव प्रभावमय हो कि शत्रु उस की आज्ञा उल्लंघन न करें। भी प्राप्त किया था। वह नीतिशास्त्र के समस्त अङ्गों उसके सब कार्य अपने पराक्रम के बल पर सफल हो जाय। को जानने वाला तथा समस्त ललितकलामों और विधि समस्त वसुन्धरा की रक्षा भी करता हुमा वह इन्द्र के विधानों में पारंगत था। बृद्धजनो की सेवा का उसे बड़ा समान मालूम दे"। जब कोई शत्र उसके सामने सिर चाव था। उसके मन मे संसार का हित करने की कामना उठाये तब वह अपनी उत्साह शक्ति, पराक्रम, धैर्य और थी। वह बुद्धिमान और पुरुषार्थी था, प्रजा के प्रति साहस से युक्त हो जाय किन्तु यही राजा जब सच्चे उदार था।" प्रजा समझती थी कि कुमार वरांग विनम्र, गुरुपों, मातृत्व के कारण प्रादरणीय स्त्रियों तथा सज्जन कार्यकुशल, कृतज्ञ और विद्वान् है ।" महाराज धर्मसेन पुरुषों के सामने पहुचे तो उसका आचरण, सत्य, सरलता, सब लोगो से कुमार के उदार गुणों की प्रशंसा सुनते थे शान्ति, दया तथा आत्मनिग्रहादि भावो से युक्त हो तो उनका हृदय प्रसन्नता से प्राप्लावित हो उठता था ऐसे योग्य पुत्र के कारण वे अपने को कृतकृत्य मानते थे; जाय" । राजा विधिपूर्वक प्रजा का पालन करे । जो लोग किसी प्रकार के कुकर्म करें उनको वह दण्ड दे। निरुपाय क्योंकि प्रजानों को सुखी बनाना उन्हे परमप्रिय था।" व्यक्तियों, ज्ञान अथवा किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त राज्याभिषेकके समय दी जाने वाली शिक्षा-राज्यान करने के कारण प्राजीविका उपार्जन में असमर्थ, दरिद्र भिषेक के समय पिता अथवा गुरुजन राजपुत्र को शिक्षा तथा प्रशरण व्यक्तियों का वह राज्य की मार से पालन देते थे। स्वाभाविक ही है कि जो गुरुजन स्वयं गुणी और करे। जोशील की मर्यादा को तोड़े वे राजा के हाथ बड़ा विटान होने के अपने पत्र को मोदी कल्याण भारी दण्ड पायें"। के लिए अपनी बहुजता के अनुकूल उत्तर देते है। इसी ३६. वही २२।२१ ४०. जटासिंहनन्दि : वराङ्गचरित ११५१ ४१. वही १२५२ ४२. वही २११७५ ४३. वही २२।३ ४४. वही. १६६६ ४५. वराङ्ग च० १२१६ ४६. वही २०१६ ४७. वही २०४७ ४८. वही १११५५ ४६. वही ११४५३ ५०. वही २६४२
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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