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________________ उत्तर भारत में जैन यक्षी पद्मावती का प्रतिमा निरूपण ३५ सम्भवत. कुक्कुट-सर्प पर प्रारूढ एवं तीन सर्पफणो से है, और सम्भवत. पाश्वनाथ के शत्रु पर उसकी यक्षी मण्डित यक्षी का चतुर्विशति भज स्वरूप में ही ध्यान (पद्यावती) के नियत्रण का सूचक है। यक्षी का नाम किया गया है। पन पर पासीन पद्मावती को भुजाओं मे (पद्मा या पद्मावती) उसकी भुजा मे या वाहन रूप में अंकुश, पाश, शंख, पद्म, एवं अक्षमाला ग्रादि के प्रदर्शन प्रदर्शित पद्म से सम्बन्धित किया जा सकता है। पद्मावती का निर्देश दिया गया है। प्रतिष्ठातिलकम् (१५४३) को हिन्दू देवकुल की सर्प से सम्बद्ध लोकदेवी मनसा से भी सम्भवत: चतुर्विशतिभुज पद्मावती का ध्यान करता भी सम्बन्धित किया जाता है। पर जैन यक्षी की लाक्षहै। पद्मस्थ यक्षी की ६ भुजाओं मे पाश प्रादि, और णिक विशेषतायें निश्चित ही स्वतन्त्र है। मनसा को भी अन्य में शंख, खड्ग अंकुश, पद्म, अक्षमाला एव वरद पद्मा या पद्मावती नामों से सम्बोधित किया गया है। प्रादि के प्रदर्शन का निर्देश है । ग्रन्थ मे वाहन (कुक्कुट- हिन्दू परम्परा मे नागदेवी मनसा को. जरत्कारु की पत्नी सर्प) का उल्लेख नहीं किया गया है। अपराजितपृच्छा बताया गया है। ज्ञातव्य है कि जरत्कारु का ही जैन में चतुर्भुजा एवं पद्मासना पद्मावती का वाहन कुक्कुट परम्परा में कठ के रूप में उल्लेख प्राप्त होता है, जो बताया गया है। यक्षी के करों मे पाश, अंकुश, पद्म एवं कालांतर मे पातालराज शेष हम"| हिन्दू परम्परा में वरद प्रदर्शित है। शिव की शक्ति रूप में भी पद्मावती (या परा) का उल्लेख धरणेन्द्र (पातालदेव) की भार्या होने के कारण ही प्राप्त होता है। नाग पर पारूत एवं नाग की माला में पद्मावती के साथ सर्प (कुक्कुट-सर्प एवं सर्पफण) प्रदर्शित सुशोभित चतुर्भुजा पद्मावती को त्रिनेत्र बताया गया है। किया गया। जैन परम्परा में उल्लेख है कि पार्श्वनाथ का शीर्ष भाग मे अर्धचन्द्र से सुशोभित पद्मावती माला, कुम्भ, जन्म-जन्मान्तर का वैरी कमठ अपने दूसरे भव में कुक्कुट- कपाल, एवं नीरज धारण करतो है । (मारकण्डेय पुराण : सर्प के रूप में उत्पन्न हुआ। पद्मावती के वाहन रूप में अव्याय अध्याय ८६ ध्यानम्) । दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगम्बर ग्रन्थ में पाच कुक्कुटा-सर्प का उल्लेख निश्चित ही उस कथा से प्रभावित शेषफणों से सुशोभित चतुर्भुजा पद्मावती का वाहन हंस चार्य, जैन प्राइकनाग्राफी, पृ १४४), परन्तु अहमदा- बताया गया है। यक्षी की ऊर्ध्व भुजायो मे कुटार एव बाद पाण्डुलिपि की मे शक्ति का उल्लेख अनुपलब्ध कटक प्रदर्शित है। प्रस्तुत विवरण किसी भी ज्ञात उत्तरहै और वज के स्थान पर भिंड का उल्लेख प्राप्त भारतीय परम्परा से मेल नहीं खाता है। होता है। मध्ययुगीन तात्रिक ग्रन्थ भैरव पद्मावती कल्प में पद्म ७. येष्टु कुर्कटसर्पगात्रिफणकोत्तंसाद्विषोयात षट् । पर अवस्थित चतुर्भुजापद्मा को त्रिलोचना बताया गया पाशादिः सदसत्कृते च घृतशंखास्पादिदो प्रष्टका। है। पद्मा के हाथो में पाश, फल, वरद एवं शृणि प्रदर्शित तां शातामरुणां स्फुरच्छृणिसरोजन्माक्षव्यालाबरा। है"। भैरव पद्मावती कल्प में पद्मावती के अन्य कई पद्मस्थां नवहस्तकप्रमुनता यायज्मि पद्मावतीम् ॥ १०. बनर्जी, जितेन्द्रनाथ, 'दी डीवलपमेन्ट ग्राफ हिन्द (पाशाधर कृतः) -'प्रतिष्ठासारोद्धार' ३ १७४ ग्राइकनोग्राफी', कलकत्ता १६५६, पृ. ५६३ । ८. पाशाद्यन्वितषड्भुजारिजयदा ध्याता चतुविशति ।। ११. भट्टाचार्य बी. सी., "दि जैन प्राइकनोग्राफी' लाहौर, शंखास्यादियुतान्करांस्तु दधती या क्रूरशान्त्यर्थदा ।। १६३६, पृ १४५ । शान्त्ये सांकुशवारिजाक्षमणिसद्दानश्चतुभिः करै- १२. रामचन्द्रन, टी. एन; तिरुपत्ति कुणरम ऐण्ड इट्ग मुक्ता तां प्रयजामि पावविनता पद्मस्थ पद्मावतीम् ।। टेम्पिल्स', बलेटिन मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूजियम, ग्व १, (नेमिचद्र कृत) प्रतिष्ठातिलकमः ७.२३, पृ. ३४७-४८ भा. ३, मद्रास, १६३४, पृ. २१० । ६. पाशाङ्कुशो पद्मवरे रक्तवर्णा चतुर्भुजा । १३. पाशफलवरदगजवशकरणकरा- पद्मविष्टरा पद्मा। पद्मासना कुक्कुटस्था ख्याता पद्मावतीति च ।। सा मा रक्षतु देवी त्रिलोचना रक्तपुष्पामा ।। 'अपराजितपृच्छाः २२१.३७ 'भैरवपदमावती कल्प' (दीपार्णव से उद्धृत, पृ ४३६
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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