________________
उत्तर भारत में जैन यक्षी पद्मावती का प्रतिमा-निरूपण
मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, वाराणसी योगी परम्परा मे २३वे तीर्थकर पार्श्वनाथ की यक्षी कल्प (१२वी १३वी शती) मे पद्मावती के मस्तक पर को पयावती नाम से सम्बोधित किया गया है और उसका तीन सर्प फणो के प्रदर्शन का भी निर्देश है। वाहन नाक कुट-सर्प (या कुक्कुट) बताया गया है। दोनों
दिगम्बर परम्परा :- प्रतिष्ठासारमग्रह (१२वी परम्परा मे चतुभुज यक्षी के साथ पद्म, पाग एव अंकुश
पाश व ग्रंका
शता) म पद्यवाह
शती) में पद्मवाहना पद्मावती का चतुर्भुज, षड्भुज एव का उलंगम्य प्राप्त होता है। दियघर पर में चतज चतुर्विशतिभुज स्वरूपो का ध्यान किया गया है ।" चतुग्वा के साथ ही पद्मावती का षड्भुज, एव चतुर्विशति
भजा पद्मावती की तीन भुजाओ मे अकुश, अक्षमूत्र एवं
। भज ग्यम्पो में भी निरूपण किया गया है।
पद्म प्रदर्शित है। पड्भुजा यक्षी की भजायो मे पाग, (क) शिल्पशास्त्रों में:
खड्ग, शूल, अर्धचन्द्र (वालेन्दु), गदा एवं मसल स्थित ताम्बर परम्परा : निर्वाणकलिका (१०वी ११वी
है। चतुर्विशतिभुज यक्षी शख, खड्ग, चक्र, अर्धचन्द्र गती) म चतुर्भुजा पद्मावती का वाहन कुर्कुट है, और
(वालेन्दु), पद्म, उत्पल, धनुष, (शरासन), शक्ति, पाश, उसकी दाहिनी भुजायो मे पद्म, पाश एवं बायी में फल,
अंकुश, घण्ट, बाण, मुसल, खेटक, त्रिशूल, परशु, कुत, कम प्रणित है।' समान विवरणो का उल्लेख करने
वज्र, (मिइ.), माला, फल, गदा, पत्र, पालव एव वरद बात मभी परवर्ती ग्रन्था में वाहन रूप मे कुकुट के स्थान
से युक्त है। प्रतिष्ठामागेद्धार (१३वी शती) मे भी पर कट गपं का उल्लेख प्राप्त होता है।' मत्राधिगज
४. देवतामति प्रकरण : ७.६: (मुत्रधार
मण्डनः १५वी शती) १ प्रतिष्ठासारसंग्रह में वाहन पद्म है।
४ .. त्रिफणाढ्यमौलि .. मंत्राधिराजकल्प ३६५ २. यावती देवी कनकवर्णा कुकुटवाहना चतुर्भुजा ।
(सागरचंद्र मूरिकृत) पद्मपाशान्वितदक्षिणकरा फलांकुशाधिष्ठित वामकरा ५. देवी पदमावती नाम्ना रक्तवर्णा चतुर्भुजा । पति । निर्वाणकलिका : १८.२३
पद्मासनाकुशं धत्ते प्रक्षसूत्रं च पंकज । (पादलिप्त सूरिकृतः सं० मोहनलाल भगवानदास,
अथवा षड्भुजा देवी चतुर्विशति सद्भजा ।। मनिश्री मोहनलाल जी जैन ग्रन्थमाला : ५ बम्बई,
पाशासिकुनवालेन्दुगदामुशलसंयुतं । ६.६ पृ०३४।
भुजाप्टक समाख्यात चतुर्विशतिरुच्यते ।। नथा पद्मावती देवी कुक्टोरगवाहना । त्रिषष्टि.
शखासिचक्रवालेन्दु पद्मोत्पलशरासन। . शलाकापुरुषचरित्रः ६.३.३६४-२६५ (हेमचन्द्रकृतः
पाशाकुश घट(यायु) बाणं मुशलखेटक ।। १.वीं शती)
त्रिशूलपरशु कुन मिडमालं फलं गद।। दख -१. पचानन्द महाकाव्य : पगिशिष्ट - पाश्र्वनाथ-६३-६४ (अमर चन्द मूरि कृतः
पत्रंचपल्लवं पत्ते वरदा धर्मवत्सला ।। १३वी यती)
-प्रतिष्ठासारमाह ५.६७-७१ २. पाश्र्वनाथ चरित्रः ७. ८२६-३० (भव
(वसुनंदि कृतः पाण्डुलिपि - लालभाई दलपत भाई देव मूरिकृतः १४वी शती)
भारतीय संस्कृत विद्या मन्दिर, अहमदाबाद) । ३. प्राचारदिनकर : ३४, १० १७७ (वर्ध- ६. भट्टाचार्य ने 'प्रतिष्ठासारसंग्रह' की प्रारा की पाण्डमान मूरि : १४१२)
लिपि में वज्र एवं शक्ति का उल्लेख किया है, (भट्टा