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________________ १६, वर्ष २७, कि०३ अनेकान्त तो उन लेखों से इतिहास की कायापलट हो जाती है । इस- कर, प्राचार्य, भारतीय कला भवन, माधवनगर, उज्जन से लिये जैन मंदिरोंमे जो लेखवाली मूर्तियों है, वे चाहे छोटी हों पढ़वाया था। उन्होने इस शिलालेख का जो प्राशय अनुया बड़ी हों, पाषाण की हो या धातु की हो, उन सबके लेखों वाद किया है, वह निम्नानुसार हैकी नकल करने के साथ-साथ खंडित मूर्तिया भी जो इधर- "१. पहली पंक्ति-ॐ त्रैलोक्य मेरू जिनेन्द्र पमप्रभु उबर पही है. उन सबके लेखो का संग्रह भी प्रकाशित की प्रतिमा को मारू नाहट के सत नंदठठक ने निज वश करना चाहिये । किस लेख से क्या महत्वपूर्ण और नयी की यशकीति वल्ली को बढाने के लिये प्रतिस्थापित जानकारी मिल जावे, इसका अनुमान ही नहीं लगाया जा किया। सकता । उन लेखों में केवल जैन इतिहास नहीं, भारतीय २. दूसरी पंक्ति - ठठठक के पुत्र बालण (अस्पष्ट) इतिहास की भी महत्वपूर्ण सामग्री सुरक्षित है। अभी-अभी हरिश्चन्द्र राजा .. जो रामगप्त के नामोल्लेख वाला जैन प्रतिमा लेख एक ३. तीसरी पंक्ति- ठटक पत्नी चारिणी प्रणाम पौर प्रकाश में आया है, उससे रामगुप्त संबंधी नये करती है । सम्बत् ११६५ वैशाख सुदी ३।। सु० महामंगल तिन का अवसर मिला है। अभी खोज करने पर जन श्री। जास्य प्रणाम करता है। सत्रधार विपाठक ने किया र खदे हए अनेक ऐसे लेख मिलंग, जिनस अर्थात मूर्ति और लेख तैयार किया ।" । भारतीय इतिहास पर नया प्रकाश पड़ेगा। उपरोक्त शिलालेख के पढ़ने व अनुवाद में कुछ गलमध्यप्रदेश सन्देश' का ता० ३० अक्टूबर, १९७१ का तियाँ रह सकती हैं पर ऐसे जैन लेखों मे जो स्थान और क मेरे सामने है। उसमें 'बदनावर की परमारकालीन राजानों का नाम रहता है उसका भौगोलिक और ऐतिस्मतियाँ' लेख में कई जैन प्रतिमानों के लेख छपे है । इसी हासिक महत्व है । वह ग्राम, नगर कितना पुराना है और तरह इसी अंक में 'प्राचीन ग्राम भन्नास' नामक लेख श्री कहाँ किस सम्बत् में कौन शासक था, यह जानकारी जगदीश दुबे का छपा है, उसमे भी सम्वत् ११६५ का उस प्रदेश के इतिहास के लिये महत्व की है ही। एक जैन प्रतिमा लेख छपा है। श्री जगदीश दुबे ने लिखा श्री जगदीश दुबे ने लिखा है कि उपरोक्त जैन भग्न है कि "दिगम्बर धर्मी विद्वानो के मत से यह स्थल उनके प्रतिमा के पार्श्व मे किसी भवन निर्माण हेतु जब खुदाई प्राचीन धर्मी तीयों में गिना जाता रहा है। उनके धर्म- की गई तो प्रतीत हुअा कि कोई विशाल प्रागण, प्राचीन ग्रंथों में इस प्राचीन नगर की चर्चा कही-कही दूसरे नामों मन्दिर का वहाँ है। यहाँ की कुछ मूर्तियाँ अष्ट धातुओं से होती है, जो कि एक विशद ऐतिहासिक अन्वेषण का की हरदा के दिगम्बर जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित है, जो विषय बन सकती है। कि तीर्थङ्कर की शिलालेख युक्त जन प्रतिमा है। होशंगाबाद जिले में हरदा तहसील स्थित भन्नास । भुन्नास यह तो केवल दृष्टात के रूप मे उद्धरण दिया गया ग्राम की आबादी के समीप ही एक मन्दिर है, जिसके सामने है। मध्यप्रदेश में हजारों जैन प्रतिमा लेख है, जिनका के भाग में सामान्य-सी खुदाई के फलस्वरूप ५-६ वर्ष पूर्व संग्रह किया जाय तो अनेक जैनाचार्यों, गच्छों, जातियों, कछ मतियां निकली थी, इन्ही में काले प्रस्तर पर निर्मित श्रावकों आदि के सम्बन्ध में नई जानकारी प्रकाश में जैन तीर्थङ्कर पद्मप्रभु जिनेन्द्र की प्रतिमा भी है। तीर्थकुर प्रतिमा की पीठिका मे लगभग ३ फुट की लम्बाई मे मेरी राय में अभी मध्यप्रदेश में, कई जैन जैनेतर २ पंक्तियों वाला एक शिलालेख भी अंकित पाया गया । विद्वान वहाँ के जैन इतिहास लिखने में सहायक हो सकते उक्त शिलालेख की लिपि अपभ्रंश संस्कृत मे मध्ययुगीन है, जैसे श्री कृष्णदत्तजी वाजपेई सागर विश्वविद्यालय में काल की है। इसमे सम्बत् ११६५ बैशाख सुदी ३ का है, वे जैन धर्म और पुरातत्व के अच्छे विद्वान् है । रायपुर उल्लेख किया गया है । इस शिलालेख को कुछ बष पूब म्यूजियम में श्री बालचन्द जैन हैं ही। उज्जैन विश्वलेखक ने उज्जैन के प्रसिद्ध पुरातत्व वेत्ता श्री वि. वारुण [शेष पृ० ११ पर]
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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