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________________ मध्यप्रदेश के जैन पुरातत्त्व का संरक्षण श्री प्रगरचन्द नाहटा, बीकानेर मध्यप्रदेश भारत का एक विशाल और महत्वपूर्ण है। वह अन्य कामो में लाखों रुपया खर्च करती है, पर जैन प्रान्त है । जैन धर्म का प्रचार भी वहां बहुत अच्छे रूप में पुरातत्व के संग्रह एवं सरक्षण का कुछ प्रयत्न वर्षों पहले रहा है और है पहले यह अनेक राज्यों में बँटा हुमा था; हुआ था, उसके बाद उल्लेखनीय कुछ भी कार्य सामने नहीं प्रतः मध्यप्रदेश के जैन इतिहास पर कोई ग्रंथ न लिखा भाया। श्री सत्यंधर कुमारजी सेठी से जब वहाँ के जैन जा सका । मालवा और बुन्देलखण्ड के जैन इतिहास पर तो पुरातत्व संग्रहालय संबंधी बात हुई तो उन्होंने कहा कि कई ग्रंथो मे अच्छा विवरण मिलता है, पर समूचे मध्य- हमारे देखने-जानने में इधर के गाँव-गाँव में जैन मूर्तियाँ प्रदेश में जैन धर्म की क्या स्थिति रही, इसकी जानकारी आदि बिखरी पड़ी थीं, उनमें से थोड़ी सामग्री ही एकत्र के लिए कोई ग्रन्थ उपलब्ध नही है। भगवान महावीर के की जा सकी, बाकी प्रायः नष्ट हो गई। उनका कहना तो २५००वें निर्वाण महोत्सव पर मध्यप्रदेश की सरकार मालवे तक ही सीमित था पर अब मैं देख रहा हूँ कि और यहाँ का जैन समाज लाखों रुपया खर्च करेगा । पर विशाल मध्यप्रदेश के अनेक स्थानो में जैन पुरातत्व बिखरा अभी तक कोई ऐसी योजना सामने नहीं पाई जिसमें पड़ा है और नष्ट हो रहा है, पर जैन समाज का उसके मध्यप्रदेश के ढाई हजार वर्षों के जैन इतिहास सम्बन्धी संग्रह एवं संरक्षण की भोर तनिक भी ध्यान नही है कोई ग्रंथ तैयार हो गया हो। यह कमी मुझे बहुत प्रखर रामवन, सतना, भोपाल, शिवपुरी मादि में संग्रहीत जान रही है। पर ऐसे विशाल पौर महत्वपूर्ण ग्रन्थ के लिए मूर्तियों की सूचना मुझे मिली है । पर मैं वहाँ जा नही केवल खर्च का ही प्रश्न नहीं है, अधिकारी लेखकों की पाया । रायपुर का संग्रहालय काफी वर्ष पहले देखा था, मण्डली जुटाना भी बहुत कठिन लगता है। अभी तक तो और ग्वालियर का सरकारी संग्रहालय भी। पर 'मध्यइस प्रदेश के इतिहास की सामग्री पर भी ध्यान नही दिया प्रदेश सन्देश' मे समय-समय पर जो लेख जैन पुरातात्विक जा रहा है तो प्राधारभूत प्रामाणिक सामग्री के बिना सामग्री की सूचना देने वाले प्रकाशित होते है उनसे काफी मध्यप्रदेश का जैन इतिहास लिखा भी कैसे जा सके ? मयी और महत्व की जानकारी मिलती रहती है। मैंने इसीलिये एक परमावश्यक सुझाव दिया जा रहा है। इसे उनमें से कुछ लेखों की सामग्री जैन पत्रिकामों में अपनी टिप्पणी के साथ लेख रूप में प्रकाशित भी करवाई है, प्रान्तीय सरकार और जैन समाज शीघ्र ही क्रियान्वित फिर भी मध्यप्रदेश के किसी भी जैन बंधु का उसके महत्व करे, यही अनुरोध है। की मोर ध्यान ही नहीं गया, यह बहुत ही खेद और मैं कई वर्षों से 'मध्यप्रदेश सन्देश' का लेखक पौर प्राश्चर्य की बात है। पाठक हूँ। उसमें प्रकाशित अनेक जनेतर विद्वानों के लेखों शिलालेखसे मुझे ऐसा लगता है कि इस प्रदेश में जैन पुरातत्व बहुत इतिहास के सर्वाधिक प्रमाणिक साधन होते है शिला. अधिक है, एवं जैन पुरातत्व सम्बन्धी जितना कार्य जैनेतरों लेख । मध्यप्रदेश की सैकड़ों-हजारों जैन मूर्तियों पर जो ने किया है, उसका दशांश भी जैन समाज ने नहीं किया, लेख खुदे हुए हैं, वे वहाँ के जैन इतिहास पर बहुत जब कि यहां की जैन समाज बहुत ही समझवार एवं महत्वपूर्ण प्रकाश डालते है। हमें खंडित मूर्तियों की इसमल है। मैं उज्जैन और इन्दौर में कई बार गया तो लिये उपेक्षा करते हैं कि वे पूजनीय नहीं है पर उन पर जो मके लगा कि वहाँ की जन समाज प्रबुद्ध और धर्म प्रेमी लेखः खुदे हुए रहते हैं, उनका बहुत महत्व है । कभी-कभी .
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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