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________________ तत्वार्यसूत्र का लघु संस्करण कम सूत्रों में सीमित कर दिया। यह कार्य किसी अधि- वैमानिक कल्पवासी तथा महमिद्रो के वर्णन के मतिकारी विद्वान का ही हो सकता है। इस ग्रंथ की प्रतियां रिक्त ५ जीवगति, पाठ प्रकार आत्मसद्भाव, ५ शरीर, हमें निम्न भण्डारों से उपलब्ध हुई है पाठ ऋद्धि, ५ इन्द्रियां, ६ लेश्या तथा दो प्रकार के शील लघुतत्वार्थ सूत्र-शास्त्र भंडार गोधों का मन्दिर, जयपुर। का वर्णन है। सं. ३८५ (गुटका नं०६३) ५ वें अध्याय मे तीन योग, चार कषाय, तीन दोष, लघु पंच सूत्र-शास्त्र भंडार मंदिर चौधरियो का, ५ प्रास्रव, ३ प्रकार संवर, २ प्रकार की निर्जरा, ५ जयपुर स. ९६३ । लब्धिया, ४ प्रकार के बंध तथा ५ प्रकार के बध का लघु तत्वार्थ सूत्र-पामेर शास्त्र भडार, जयपुर स. कारण, त्रिविष मोक्ष मार्ग, ५ प्रकार के निग्रंथ साधु, (अर्हत् प्रवचन) १५७४ (गुटका) १२ अनुयोग द्वार, पाठ सिद्धों के गुण, दो प्रकार सिद्ध, उक्त तीनों ग्रंथो मे ५ ही अध्याय है तथा वर्ण्य विषय तथा वैराग्य का वर्णन मिलता है। भी एक सा है। ग्रंथ का नाम 'लघ तत्वार्थ सूत्र' है किन्तु प्रस्तुत लघु तत्वार्थ सूत्र मे कुछ ऐसे भी वर्णन है जो पुष्पिका में 'अर्हत् प्रवचन' लिखा है। 'लघ पंच मत्र की मूल तत्वार्थ सूत्र में नहीं है। तीसरे अध्याय में साढ़े पुष्पिका मे भी अर्हत् प्रवचन का उल्लेख है। लघ पंच सुत्र तीन द्वीप समुद्र, चौदह कुलकर, चौबीस तीर्थकर, नौ मे प्रारम्भ तथा अंत में विशेष पाठ दिया है। प्रारम्भ मे बलदेव नौ वासुदेव, नौ प्रति वासुदेव, ग्यारह रुद्र, बारह "त्रकाल्य द्रव्यपटक......... तवाण माराहणा भणिया" चक्रवर्ति, नौ निधि, नथा चौदह रत्नो का उल्लेख है । तक तथा प्रत मे " मोक्षमार्गस्य नेतार" देकर श्रत इसके अतिरिक्त तत्वार्थ सूत्र मे वणित अनेक अंशों भक्ति का उल्लेख किया गया है, जिसे प्रति के पाठ भेद मे को छोड भी दिया गया है- औपशमिकादि भाव, पुद्दिखाया गया है। गल कर्म तथा मोक्ष तत्व का वर्णन आदि । प्रस्तुत ग्रथ मे ५ अध्याय है। प्रथम अध्याय में वैसे ग्रथाकार ने दस अध्यायो मे वर्णन करने का भगवान महावीर को नमस्कार कर अहत् प्रवचन सूत्र की पूरा प्रयास किया है। प्रथम, द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ व्याख्या करने की प्रतिज्ञा की गई है। इसमे षट्जीव काय, अध्याय मे वर्ण्य विषय को ४ अध्यायो मे तथा पांचवे से १२ व्रत, तीन गुप्ति, पांच ममिति, दश धर्म, सोलह दसवें अध्याय तक के वर्णन को पाचवें अध्याय में सम्मिकारण भावना, १२ अनुप्रेक्षा तथा २२ परीषहो का वर्णन लित किया गया है। तत्वार्थ मूत्र तथा लघु सूत्र के है । दूसरे अध्याय में पदार्थ, ७ तत्व, ४ प्रमाण, ६ द्रव्य, अध्यायो में किये गये वर्णन का विवरण निम्न तालिका से अध्याया म किय गय व पंचास्तिकाय, पाच ज्ञान, ४ दर्शन, १२ अंग, १४ पूर्व १२ स्पष्ट हो जाता है। ५ वें अध्याय में प्रास्रव, बध, संवर, तप, १२ प्रायश्चित, ४ प्रकार विनय, १० वैयावृत्य, ५ निर्जरा का वर्णन किया गया है । सभव है मोक्ष तत्व को प्रकार स्वाध्याय तथा चार ध्यान और दो व्युत्सर्ग का मिद्ध वर्णन में ले लिया गया है। पुद्गल तत्व का कही वर्णन है। उल्लेख नहीं है। ' तीसरे अध्याय मे तीन काल, छ प्रकार काल समय तत्वार्थ सूत्र लघु तत्वार्थ सूत्र प्रथम अध्याय प्रथम अध्याय तीन लोक, साढे तीन द्वीप समुद्र, १५ क्षेत्र, १५ कर्म भूमि, ३४ वर्ष धर पर्वत, ३० भोग भूमिया, सप्त प्रयो ज्ञान दर्शन तथा तप आदि १२ व्रत, छह काय के जीव तत्वों का वर्णन। गुप्ति ममिति आदि का भूमि तथा ७ नर्क, १४ कुलकर, २४ तीर्थकर, ६ बलदेव, वर्णन । ६ वासुदेव, ६ प्रति वासुदेव, ११ रुद्र, १२ चक्रवर्ती, नव द्वितीय अध्याय द्वितीय अध्याय निधि, १४ रत्न तथा दो प्रकार के पुद्गल का वर्णन जीव के भाव, जीव लक्षण ज्ञान, दर्शन, तप, पंचास्तिमिलता है। तथा गति आदि वर्णन । काय, अंग पूर्व आदि का चौथे अध्याय मे भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क, वर्णन ।
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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