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________________ तत्त्वार्थसूत्र का लघु संस्करण अनूपचन्द न्यायतीर्थ तत्वार्थसत्र जनों का एक महान् सूत्र पथ है जिसकी इस ग्रन्थ का दूसरा नाम मोक्ष शास्त्र भी है। रचना प्राचार्य उमास्वामि ने तीसरी शताब्दी मे की थी। तत्वार्थ मत्र इतना जोर यह ग्रन्थ इतना महत्वपूर्ण है कि इसका प्रचार दिगम्बर दिन पाठ करना प्रत्येक श्रावक के लिए आवश्यक समझा या वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायो मे समान रूप से है। जाता है । इसके अतिरिक्त ऐमा भी विश्वास है कि तत्वार्थ सोही इसे एकमत होकर स्वीकार करते है। इसका सूत्र का एक बार पाठ करने से एक उपवास का स्वत लोकप्रियता का पता तो इससे ही चल सकता है कि इसकी ही फल मिलता है। इसलिए महिला ममाज या तो इसका या ग्राज भी ग्रन्थ भण्डारो मे उपलब्ध है तथा स्वयं पाठ करती है या फिर अन्य किसी से इसके पाठ को उनका अनेक भाषाओं में भाष्य, टीका और भावार्थ प्रका मुनती है। पयूषण पर्व के दिनो मे भी इमक एक-एक शित हो चुका है। इस ग्रन्थ की जितनी अधिक प्रतियाँ मूत्र के प्रथों का प्रतिपादन दस दिनो तक किया जाता है। हस्तलिखित व प्रकाशित भंडारो मे मिलती है उतनी अन्य दम दिन मे दम मूत्रो का अर्थ वाचन पूरा हो जाता है। किसी की शायद ही मिले । ज्यो-ज्यो इस महान ग्रथगज का प्रचार बढ़ा लोगो श्रद्धालु जन प्रतिदिन इमका पाठ करते है। कितनी ने इसे कण्ठस्थ किया तथा इसे और भी छोटे रूप मे ही महिलाएं तो अाज भी इसका स्वाध्याय किये बिना देखना चाहा । सम्भव है इसके पाठ करने में अधिक समय भोजन तक नहीं करती है । खुद पढ़ती है अथवा औरों के लगने के कारण ही कुछ छोटे सूत्र ग्रथो का भी निर्माण मख से इसका पाठ सुन लेती है। इस पथ पर अनेक किया गया और उसमे दस के स्थान पर पांच ही अध्याय भाचार्यो एव पडितो ने भाष्य संस्कृत टीकाए तथा भावार्थ कर दिये गये हो। लिखे है जो इसकी महानता का द्योतक है। अभी राजस्थान के दिगम्बर जैन शास्त्र भडारों के इस महान ग्रन्थ पर बड़े-बड़े प्राचार्यो तथा विद्वानो ग्रथो की सूची बनाते समय कुछ ऐसे ही ग्रथ उपलब्ध हुए ने लेखनी चलाई है तथा इसके महह्नतम तल मे प्रवेश कर जिनमें तत्वार्थ सूत्र को सक्षिप्त कर दिया गया है। इसका नये तथ्यउद्घाटित किये है। भट्यकलक देव का तत्वार्थ- नाम 'लघ तत्वार्थ सूत्र', 'लघु पंच सूत्र' तथा 'महंत प्रवराजवातिक, पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि, विद्यानन्द को चन'नाम मिलता है। उक्त तीनों ग्रथो मे ५ ही अध्यायों श्लोकवार्तिक, योग देव की तत्वार्थ वृत्ति, प० सदासुख जी में दस सूत्रो का समावेश कर दिया गया है। उक्त तीनो की अर्थ प्रकाशिका, श्रुत सागरी संस्कृत टीका तथा अन्य ग्रंथो में केवल नाम भेद है सूत्र भेद नही। प्रस्तुत लेख मे पचासों टीकाएँ एवं भाष्य उपलब्ध होते है। इसकी अनेक 'लघु तत्वार्थ सूत्र' पर ही प्रकाश डाला जा रहा है। सुन्दर टीकाएं लिखी गई है। यही नहीं इसकी ग्रंथकर्ता अथवा रचनाकार का नामोल्लेख नही होने कितनी ही स्वर्णाक्षरी तथा रूपान्तरी प्रतियाँ देश के से यह तो नहीं कहा जा सकता कि इसके रचनाकार कौन विभिन्न भण्डारों में सुरक्षित है। है किन्तु इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि इसका रचना प्राचार्य उभास्वामि ने उस ग्रथ की रचना कर गागर कार कोई प्रतिभाशाली निर्भय प्राचार्य अथवा विद्वान हो मे सागर भरने की कहावत चरितार्थ की है । उन्होने सारे सकता है जिसने परम्परागत मान्य तत्वार्थ सूत्र के दस जैन सिद्धान्त को इस ग्रंथ में सूत्र रूप मे गूथ दिया है। अध्यायों को पाच ही अध्यायो मे और वह भी बहुत
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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