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वीर सेवा मन्दिर विधान का स्मरणपत्र
१. इस सोसाइटी का नाम वीर-सेवा-मन्दिर होगा। (घ) देशी तथा विदेशी भाषाओं में जैन ग्रंथों का २. सोसाइटी का प्रधान कार्यालय देहली राज्य में रहेगा
समुचित अनुवाद । और शाखायें यथावश्यक भारत के दूसरे स्थानों तथा
(ङ) जैन संस्कृति के पुरातन केन्द्रों की खोज । विदेशों में भी खोली जा सकेंगी।
(च) अनेकान्त और अहिंसा के प्रचारार्थ लोक-हित३. सोसाइटी के उद्देश्य निम्न प्रकार होगे।
कारी पम्पलेट व ट्रैक्टों का प्रकाशन । (क) जैन और जनेतर पुरातत्व सामग्री का अच्छा
(छ) जैन साहित्य, इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी संग्रह, संकलन और प्रकाशन ।
अनुसंधान एवं नई पद्धति से ग्रंथनिर्माण के (ख) महत्व के प्राचीन जैन-जनेतर ग्रन्थो का
कार्यों में अभिरुचि उत्पन्न करने और यथाउद्धार ।
वश्यकता शिक्षण (ट्रेनिग) दिलाने के लिए
योग्य विद्वानो को स्कालरशिप (वृत्तियाँ) (ग) लोक-हितानुरूप नव-साहित्य का सृजन, प्रकटी
देना। करण और प्रचार।
(ज) योन्य विद्वानों को उनकी साहित्यिक (घ) 'अनेकान्त' पत्रादि द्वारा जनता के प्राचार । विचार को ऊचा उठाने का सुदृढ़ प्रयत्न ।
सेवाओं तथा इतिहासादि-विषयक विशिष्ट
खोजों के लिए पुरस्कार या उपहार देना । (ङ) जैन साहित्य, इतिहास और तत्वज्ञान-विषयक
(झ) जैन संस्कृति साहित्य इतिहास और पुरातत्वादि अनुसन्धानादि कार्यों का प्रकाशन और उनके
विषयक गवेषणामों के प्रकाशनार्थ सोसाप्रोत्साहनार्थ वृत्तियो का विधान तथा पुरस्का
इटी का एक मुखपत्र रहेगा। रादि का प्रायोजन ।
(अ) सोसाइटी के उद्देश्यों में रुचि रखने वाली ४. अपने उक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सोसाइटी निम्न
संस्थानो व ट्रस्टो का सहयोग प्राप्त करने के योजनायें करेगी:
लिए उनसे सम्बन्ध स्थापित करना । (क) जैन सस्कृति, साहित्य, कला और इतिहास के
५. यह वीर-सेवा-मन्दिर अर्थोपार्जन करने वाली संस्था अध्ययन में सहायक विभिन्न ग्रंथो, शिलालेखो
नही है और इस दृष्टि से वह सव आमदनी जो प्रशस्तियों, मूर्तियों, ताम्रपत्रो, सिक्को, यन्त्रों,
किसी भी मार्ग से प्राप्त होगी और संस्था की समस्त स्थापत्य और चित्रकला के नमूनों आदि
चल-अचल सम्पत्ति केवल संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति सामग्री का लाइब्रेरी तथा म्यूजियम आदि के
के लिए काम में आएगी और उसका कोई भाग रूप में विशाल संग्रह।
संस्था के सदस्यो में उनके व्यक्तिगत उपयोग के लिए (ख) लुप्तप्राय प्राचीन जैन साहित्य, इतिहास, तत्व
नहीं बांटा जाएगा; वे सब प्रानरेरी कार्यकर्ता शान, कला और जन संस्कृति का उसके मूल
होंगे। रूप में अनुसंधान तथा अनुसंधान के आधार ६. प्रथम कार्यकारिणी समिति में निम्न सदस्य होंगे। पर नये मौलिक साहित्य का निर्माण ।
क्र. सं. नाम व पता पेशा-प्रवृत्ति पद (ग) जैन ग्रन्थों का वैज्ञानिक पद्धति से उपयोगी १. पं० जुगलकिशोर मुख्तार, सरसावा प्रकाशन ।
(सहारनपुर)
लोकसेवा सदस्य