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________________ खण्डकाव्य (गतांक से मागे) पुण्यतीर्थ पपौरा सुधेश दिखती 'प्रहारजी' कुन्डलपुर, 'खजुराहों, में वह मञ्जुलता । जिसको विलोक कर भक्तों के, अन्तस का कल्मष है धुलता । ३६ 'चन्देरी' 'द्रोणाचल' 'पबा' 'बधा', की जन मन मोहक झांकी है। श्रद्धालु जनों के द्वारा जो, जाती श्रद्धा से प्रॉकी है । ३७ अवलोक 'देवगढ़' 'सोनागिरि, दर्शक की दृष्टि न थकती है। 'नैनागिरि' और 'पपौरा' में, भी अनुपम छटा झलकती है। ३८ सन्देश शान्ति का देते है, युग से इन तीर्थों के पत्थर । प्रांधी, वर्षा, भूचाल, इन्हे, कर सके न अब तक भी जर्जर । ३६ हैं अभी गिनाये मात्र, कुछ जैन धर्म के तीर्थ स्थल । पर यहाँ हिन्दुओं के भी तो, है कई मनोहर पुण्य स्थल । ४० इनमें 'कुण्डेश्वर' चित्रकूट, पन्ना के प्राणनाथ' सुन्दर । है विन्ध्यवासिनी भीम कुण्ड, बालाजी और जटा शंकर । ४१ हर वर्ष सहस्रों नर नारी, करने आते इनका दर्शन । जो अपनी भक्ति मान्यता के, अनुसार किया करते अर्चन । ४२ है भरा ऐतिहासिक महत्व, के दुर्गों से भी यह प्रदेश । जिनमें न शत्रुओ की सेना, करने भी पाती थी प्रवेश । ४३ कालिजर और अजयगढ़ के, दुर्गम गढ़ इनमें हैं प्रधान । अपना शिर ऊँचा किये हुए, जो खड़े अडिग प्रहरी समान । ४४ इनके अतिरिक्त अनेक और, भी दर्शनीय हैं धाम यहां जा रहे लिखे है जिनमें से, केवल कुछ के ही नाम यहाँ। ४५ एरन, गढ़ पहरा, गुप्तेश्वर, झांसी, धामौनी, धुंवाधार, दतिया, राहत गढ़, मदन महल, ये दर्शनीय हैं बार बार । ४५ इन पुरातत्त्व की विधियों से, परिपूर्ण यहाँ की धलि है, जिनकी नवीनता पर मोहित, ये प्रजा यहाँ की भूली है। ४७ भू खोद निकाली जा सकती, प्रतिमाए कई अंधेरे से, मिल सकती कितनी ही कृतियां, कमनीय यहां पर हेरे से । ४८ प्राचीन काल में इस प्रदेश, के चेदि आदि हैं नाम रहे, वनवास समय में इसी प्रान्त, में प्राकर सीता राम रहे । ४६ जब लक्ष्मण को थी शक्ति लगी, ग्री होकर वे म्रियमाण पड़े, तब संजीवना जड़ी लाने, को दौड़ शीघ्र 'हनुमान' पड़े । ५०
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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