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भारतीय जैन कला को कलचुरि नरेशों का योगदान
10 श्री शिवकुमार नामदेव
राजनीतिक दृष्टिकोण से प्राचीन भारतीय इतिहास द्वारा सरक्षित धर्म की मूर्तियाँ एवं देवालय प्राप्त होते है में कलचुरि नरेशो का महत्वपूर्ण स्थान है। छठवी शती वही जैन धर्म की प्रतिमाओं का बाहुल्य भी है। में लेकर १८वी शती तक इन नरेशों ने भारत के उत्तर कलचर नरेशों के काल में जैन धर्म का अत्यधिक अथवा दक्षिण किसी न किसी भभाग पर शासन किया ।
प्रसार था । पुरातात्विक अध्ययन से इस विषय पर पर्याप्त प्राच्य भारतीय इतिहास के अतीत को गौरवयुक्त बनाने प्रकाश पडता है। जबलपुर जिले के बहरीबद नामक मे इन नरेशो ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस काल स्थल से एक विशाल जैन तीर्थकर शांतिनाथ की अभिके विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न कलाकारों द्वारा निर्मित हिन्दू, लखयक्त प्रतिमा प्राप्त हुई है। प्राचार्य मिराशी जी का जैन एव बौद्ध देवी देवताओं तथ सुर सुन्दरियों की
अनुमान है सोहागपुर (शहडोल, म०प्र०) मे जैन देवामूर्तियां दर्शनीय है। यद्यपि इस काल के अनेक गगन
लय थे। कल्याण मे कलचुरि नरेशो का शासन यद्यपि चुम्बी देवालयो का केवल नाम शेष रह गया है परन्तु
अल्पकालीन था किन्तु वहा जैन धर्म का अच्छा प्रसार अवशिष्ट देवालयों एवं विद्यमान शिल्पकृतियाँ उन कला.
था। ई० १२०० मे कलचरि राजमंत्री रेचम्पय ने कारो एष उनके संरक्षक नरेशों की स्मृतियों को अक्षुण्ण रखे श्रवण बेलगोला मे शातिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रति
ष्ठित करायी थी। 'बासवपुराण एवं विज्जल चरित' में ___ यद्यपि अधिकांश कलचुरि नरेश शैव मतानुयायी थे ।
जैन एवं शैव मतानुयायियो के मध्य हुए संघर्ष का वर्णन किन्तु उन्होने एक भादर्श हिन्दू नृपति की भाति धामिक है। सोमनाथ के देवालय पर, जैनो पर अत्याचार के स्वतंत्रता की नीति का अनुगमन किया, परिणामत' चित्र आज भी उत्कीर्ण है। फ्लीट के मतानुसार विज्जल उनके काल मे हिन्दू, जैन एवं बौद्ध मत स्वतंत्र रूप से
के शासनकाल में जैन धर्म प्रमुख था। स्वयं विज्जल
के शासनकाल में पल्लवित हुए । यही कारण है कि जहाँ कलचुरि नरेशो नरेश ने अनेको जैन मन्दिर बनवाये थे। संवत् १०५४ मे मो तू लोबत विषयन मांही,
कीर्तिसेट्टि ने पोन्नवति वेलहुगे और वेण्णयूर में श्री पार्श्वपरम नहीं चित लायो।
नाथ के मन्दिर बनवाये थे। भागचन्द्र उपदेश मान प्रब,
कलचुरि कला मे जैन धर्म से सम्बन्धित प्रतिमायें जो श्री गुरु फरमायो।
बहुतायत से प्राप्त हुई है, जिनमे तीर्थकर, शासन देवियां भागचन्द्र द्वारा रचित सभी आध्यात्मिक पदों में एवं श्रुत देविया है। सभी मूर्तिया शास्त्रीय नियमो पर प्रास्मा को समझाया गया है कि वह कुपथ को त्याग कर आधारित है । यद्यपि कुछ ग्रन्थो में उनके लांक्षण एवं पक्ष
यक्षिणियो आदि के सम्बन्ध में एक मत नहीं है। तीर्थकर सुपथ पर अग्रसर हो। अन्य भी हिन्दी के कवियो के ऐसे पद मिलते है,
की प्रतिमा स्थानक एव प्रासन मुद्रानो मे प्राप्त हुई है। जिनमे प्रात्मा, चेतन या मन को अपना उद्धार करने के स्थानक मूर्तियों में केवल शातिनाथ एव महा लिए उपदेश दिया गया है।
मुर्तिया ही प्राप्त हुई है। ग्रासन मूर्तियों में ऋषभनाथ की कविगण जब ससार की असारता का अनुभव कर मुतिया सर्वाधिक है। इसके अतिरिक्त अंबिका एवं
स्वती की प्रतिमायें भी शास्त्रीय नियमो पर निमित की लेते है तब अनायास ही उनके हृदय की अनुभूति इस । प्रकार के पदों द्वारा फूट पड़ती है।
गई है।
कलचुरिकालीन जैन प्रतिमायें बौद्धों की अपेक्षा इस प्रकार के पद हमारी साहित्यिक निधि है । इनमे निहित को तत्वों खोजने का कार्य प्रतिदिन बढ़ते जाना बहुतायत से प्राप्त हुई है। ये प्रतिमाये जबलपुर जिले में चाहिए।
कारीतलाई, कुम्भी, कुलान, बहुरीबद, मझौली एवं
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