SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ वर्ष २७, कि० २ अनेकान्त जबलपुर, बिलासपुर जिले मे अड़भार, धनपुर, मल्लार, का लांछन वषभ चित्रित है। वृषभ के नीचे चौकी के पेन्डा, रतनपुर, रीवां जिले मे गुर्गी एवं रीवां, शहडोल ठीक मध्य मे धर्मचक्र बना है, जिसके दोनों ओर एकजिले में सिंहपुर एवं सोहागपुर रायपुर के महंत घासी- एक सिंह है। सिंहासन के दक्षिण पार्श्व पर ऋषभनाथ राम सग्रहालय, रामवन (सतना) के तुलसी संग्रहालय को शासनदेव गोमुख एवं वाम पार्श्व पर उनकी शासनएवं छतरपुर के धुबेला संग्रहालय मे कलचुरिकालीन प्रति- देवी चक्रेश्वरी ललितासन मे बैठी हुई चित्रित की गई है। मायें संग्रहीत है। इसके अतिरिक्त मडला जिले में शहपूरा प्रतिमा शास्त्रीय अध्ययन के दृष्टिकोण से हम इसका एवं बिझोली से जैन धर्म की मूर्तियां प्राप्त हुई है। प्राप्त __ काल १०वी ११वी शती के मध्य मान सकते है । प्रतिमानों में सर्वाधिक प्रतिमायें प्रथम तीर्थकर मादिनाथ तेवर से प्राप्त ७'४" प्राकार की भगवान ऋषभकी हैं। कारीतलाई से तीर्थंकरों की द्विमूर्तिकायें भी । नाथ की एक प्रतिमा जबलपूर के हनुमान ताल जैन प्राप्त हुई है। प्राप्त मूर्तियों को हम निम्न वर्गों में विभा मन्दिर में संरक्षित है। कला की दष्टि से इस प्रतिमा में जित कर सकते हैं सजीवता है । प्रतिमा के अग-प्रत्यंगसुन्दर एव सुडौल हैं। प्र-तीर्थकर मूर्तियां । मस्तक पर चित्रित घुघराले केश माकर्षक है। उभय व-शासन देवियां। स्कघ पर केश गुच्छ लटक रहे है । स-श्रुत देवियां। ___ सपरिकर पदमासनस्थ इस प्रतिमा की प्रभावलि की ड-अन्य चित्रण । रेखायें अति सूक्ष्म है। प्रभावलि के मध्य में छत्र दण्ड है प्र-तीर्थकर प्रतिमायें जो ऊपर की ओर जाकर क्रमशः तीन पोर वर्तुलपन कलचुरि कला में प्राप्त तीर्थकर प्रतिमाओं को तीन लिए हुए है। छत्र दण्ड के ऊपर विशाल छत्र लगभग २' वर्ग में विभाजित किया जा सकता है-पासन, स्थानक "के लगभग है। सबसे ऊपर दो हस्ति शुण्ड से शुण्ड एवं संयुक्त तीर्थकर मूर्तिया । सटाये हुये इस प्रकार चित्रित किये गये हैं मानों वे छत्र १. प्रासन मतियां --प्रासन प्रतिमाओं में सबसे को थामे हुये हो । हस्तियों के श्र्पकर्ण के उठे हुये भाग अधिक मूर्तिया आदिनाथ की है। आदिनाथ की प्रतिमायें उनके गाल की खिची हई रेखायें एव प्रांखों के ऊपर का कारी तलाई, तेवर (जबलपुर) मल्लार, रतनपुर प्रादि खिचाव कला की उच्चता के द्योतक है। परिकर पर स्थलों से प्राप्त हुई है। हस्ति, पद्म पर प्राधत है। छत्र के नीचे दोनो पार्श्व पर भगवान ऋषभनाथ की कारातलाई से प्राप्त एक यक्ष एवं चार अप्सरायें नभ मे उड़ती हई चित्रित है। प्रतिमा, जो सम्प्रति रायपुर संग्रहालय की निधि है, मे गधर्व पुष्प की मालायें लिये हुए है। परिचारक के नीचे प्रादिनाथ एक उच्च चौकी पर विराजमान हैं। ४ ६" दोनों पार्श्व पर नारियों की खड़ी प्राकृतियां है। नारियो ऊँची इस प्रतिमा मे तीर्थकर को• पद्मासन मे ध्यानस्थ के अंग प्रत्यंग पर चित्रित प्राभषणों की भरमार है। बैठे हुए दिखाया गया है। दुर्भाग्य से उनका मस्तक, कला की दृष्टि से यह प्रतिमा कलचरि कला की सर्वोच्च दक्षिण हस्त एवं वाम घुटना खंडित है। हृदय पर श्री. जैन प्रतिमा है। वत्स का प्रतीक है और मस्तक के पीछे प्रभामण्डल है, आदिनाथ के अतिरिक्त भासन प्रतिमानों में सिंहपुर जिसके ऊपर त्रिछत्र है। त्रिछत्र के दोनो पावं पर एक- से १०वी शती में निर्मित द्वितीय तीर्थकर मजितनाथ, एक महावत युक्त गज खड़ा है। छत्र के ऊपर ददभिक रतनपुर से १०वी ११वीं शती के मध्य निमित पाठवें और गजों के नीचे युगल विद्याधर है, जो नभ मार्ग से जैन तीर्थकर चन्द्रप्रभ, जबलपुर संग्रहालय में संरक्षित पुष्पवष्टि कर रहा है। विद्याधरो के नीचे एक अोर सौ सोलहवें तीर्थकर शातिनाथ, धुबेला संग्रहालय में सरक्षित धर्मेन्द्र और दूसरी ओर ईशानेन्द्र अपने हाथ में चंबर लिये वाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ की प्रतिमायें अल्पमात्र में प्राप्त हए आदिनाथ के परिचारक रूप में खड़े है। हुई है। आदिनाथ अतिरिक्त कलचुरिकालीन जैन तीर्थप्रतिमा की अलंकृत चौकी की पट्टी झल पर तीर्थकर छरों की प्रतिमानो में मर्वाधिक तेईमवें तीर्थकर भगवान
SR No.538027
Book TitleAnekant 1974 Book 27 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1974
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy