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कौशाम्बी
किम्बदन्ती-मूलनायक प्रतिमा के सम्बन्ध में एक नरेशो का आधिपत्य यहाँ रहा। इन मित्रवंशी कई किम्बदन्ती है कि लगभग डेढ़ पौने दो सौ वर्ष पहले राजानो के सिक्के और मूर्तियों कौशाम्वी, मथुरा, अहिकौशाम्बी के पुजारी को स्वप्न हा कि मन्दिर के द्वार च्छत्र आदि कई स्थानो पर बहुसंख्या में मिले है। उत्तर पर जो कुत्रा है, उसमें पद्मप्रभ भगबान की प्रतिमा है। पाचाल नरेश आषाढसेन के समय के भी दो लेख पभोसा उसे निकाल कर मन्दिर मे विराजमान करो। प्रातः होते मे पाये गये है । एक लेख मे राजा आषाढसेन को बृहस्पति ही पुजारी ने स्वप्न की चर्चा की। चर्चा प्रयाग तक पहुची। मित्र का मामा बताया है । बृहस्पतिमित्र मथुरा का मित्रबहुत से लोग एकत्रित हुए। कुए से प्रतिमा निकाली वशीय नरेश था । वे लेख इस प्रकार हैगई । खोदते समय भामण्डल मे फावड़ा लग गया, जिससे १. अधियछात्रा राज्ञो शौनकायन पुत्रस्य बंगपालस्य दूध की धार बह निकली। लोगो ने जब बहुत विनम्र पुत्रस्य राशो तेषणीपुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण वैहिवरी स्तुति की, तब वह शान्त हुई । वही प्रतिमा पभोसा के पुत्रेण प्रासादसेनेन कारितं मन्दिर में लाकर विराजमान कर दी गई।
अर्थात् अधिछत्रा के राजा शानकायन के पुत्र राजा देवी अतिशय-मूलनायक प्रतिमा अत्यन्त अतिशय वंगपाल के पुत्र और त्रैवर्ण राजकन्या के पुत्र राजा भगवत सम्पन्न है। जैसा अद्भुत आश्चर्य इस प्रतिमा मे है, के पुत्र तथा वैहिदर राजकन्या के पुत्र प्राषाढसेन ने यह वैसा सभवत. अन्यत्र कही देखने में नहीं आया। प्रतिमा गुफा बनवाई । यद्यपि भूरे पाषाण की है किन्तु सूर्योदय के पश्चात् -- जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ० १३-१४ इसका रंग बदलने लगता है। ज्यो ज्यो सूर्य आगे बढ़ता डा० फ्यूरर ने शुगकाल के अक्षरो से मिलते-जुलते जाता है, त्यों त्यो प्रतिमा का रंग लाल होता जाता है। अक्षरों के कारण इस शिलालेख का काल द्वितीय या प्रथम लगभग बारह बजे प्रतिमा लोहित वर्ण की हो जाती है। ईसवी पूर्व निश्चित किया है। इस शिलालेख के तथ्य इसके पश्चात् यह वर्ण हलका पड़ने लगता है और लगभग ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक तो इस तीन बजे तक यह कत्थई रंग की हो जाती है। पश्चात शिलालेख से यह तथ्य प्रगट होता है कि राजा आषाढ़सेन वह फिर अपने असली वर्ण में आ जाती है। रंग का यह ने इस गुफा का निर्माण कराया । दूसरा इसमे अहिच्छत्र, परिवर्तन किस कारण से है, यह विश्वासपूर्वक नही कहा जो उत्तर पाचाल के प्रतापी राजाओं की राजधानी थी, जा सकता । सभव है, पाषाण की ही ये विशेषताये हो। की राजवंशावली दी गई है। किन्तु सूर्य की किरणें मन्दिर के अन्दर प्रतिमा तक नहीं एक दूसरा शिलालेख इस प्रकार हैपहुच पाती। ऐसी दशा में प्रतिमा का यह रंग-परिवर्तन २. राज्ञो गोपाली पुत्रस बहसतिमित्रस मातुलेन गोपालीया एक देवी चमत्कारु माना जाने लगा है।
वैहिदरी पुत्रेन प्रासाढसेनेन लेनं कारितं उवारस इस प्रकार का एक और भी देवी चमत्कार यहाँ
(?) दसमे सबछरे कश्शपीना परहं (ता) न... देखने को मिलता है। यहाँ हर रात को पर्वत के ऊपर अर्थात् गोपाली के पुत्र राजा बहसतिमित्र (वृहस्पति केशर की वर्षा होती है। प्रातःकाल पहाड़ी के ऊपर जाने मित्र) के मामा तथा गोपाली वैहिदरी अर्थात् वहिदर पर छोटो-छोटी पीली बूदें पड़ी हुई मिलती है और भीनी- राजकन्या के पुत्र प्राषाढसेन ने कश्यपगोत्रीय अरहन्तों... भीनी सुगन्धि चारों ओर वातावरण में भरी हुई रहती है। दसवें वर्ष मे एक गुफा का निर्माण कराया। यहाँ कार्तिक सुदी १३, चैत सुदी १५ को खूब केशर वर्षा
--जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ होती है।
यह शिलालेख भी द्वितीय या प्रथम ईसवी पूर्व का पुरातत्त्व-पभोसा मे शुङ्ग काल (ई० पू० १८५ से माना गया है। १००) के समय के कई शिलालेख प्राप्त हुए है। शुग वश पभोसा में जो प्राचीन मन्दिर और मूर्तियाँ हैं, वे के मन्त के बाद शुंग वंश की ही एक शाखा-मित्र बंशी सभी प्रायः शुंग और मित्रवंशी राजामों के काल की