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________________ गया है। कौशाम्बी पं० बलभद्र जैन स्थिति-इलाहावाद से दक्षिण-पश्चिम मे यमुना के परणेण सुसीमाए कोसंवि पुरवरे जादो ॥४॥५३१ ॥ उत्तरी तट पर ६० किलोमीटर दूर कोसम नामक एक ---पद्मप्रभु तीर्थकर ने कौशाम्बी पुरी मे पिता धरण छोटा सा ग्राम है । वहाँ जाने के लिए इला बाद से मोटर और माता सुसीमा से आसोज कृष्णा त्रयोदशी के दिन मिलती है । इलाहाबाद से सराय अकिल तक ४२ किलो चित्रा नक्षत्र में जन्म लिया। मोटर की पक्की सड़क है। वहाँ से कौशाम्बी का रैस्ट इसका समर्थन प्रा. रविषेष कृत 'पद्मपुराण । हाउस कच्चे मार्ग से १८ किलोमीटर दूर है। यहां तक बस १४५, प्रा० जटासिंह नन्दी कृत 'वराङ्ग-चरित २७१८२, जाती है। रैस्ट हाउस से क्षेत्र ४ किलोमीटर है। प्रा० गुणभद्र कृत 'उत्तर पुराण ५२१३८ में भी किया कच्चा मार्ग है। इलाहाबाद से २३ मील दूर मेन उस समय कोशाम्बी अत्यन्त समृद्ध महानगरी थी। लाइन पर भरवारी स्टेशन से यह क्षेत्र दक्षिण को आज तो वह खण्डहरो के रूप मे पड़ी हुई है। कहते है, ओर २० मील है। यहाँ से भी मोटर, इक्का द्वारा वर्तमान सिहबल, कोसम, पाली, पभोसा ये सब गाव पहले जा सकते है। आजकल प्राचीन वैभवशाली कौशाम्बी के कौशाम्बी के अन्तर्गत थे । वास्तव में कौशाम्बी में भगवान स्थान पर गढ़वा कोसम इनाम और कोसम खिराज नामक छोटे-छोटे गाँव है जो जमुना के तट पर अवस्थित है। के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए थे और पभोसा में जो क्षेत्र से गढ़वा इनाम गाव १ किलोमीटर है। वहाँ से कौशाम्बी का उद्यान था, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक १० किलोमीटर जल मार्ग से पभोसा गिरि है, जहाँ पर हुए थे, अत. ये दोनों ही स्थान तीर्थ क्षेत्र है। आजकल भगवान पद्मप्रभु की भव्य मूर्ति है । कौशाम्बी की स्थापना इस वन का नाम अथरवन कहलाता है। चन्द्र वशी राजा कुशाम्बु ने की थी। इसका पोस्ट ग्राफिस . भगवान के दीक्षा-कल्याणक का विवरण 'तिलोय अकिल सराय है। पण्णत्ति' में इस प्रकार मिलता है :--. वेत्तासु किण्हतेरसिधवरण्हे कत्तियस्स णिक्कतो। तीर्थक्षेत्र-इस नगरी की प्रसिद्धि छटवे तीर्थकर पउमापहो जिणिदो तदिए खवणे मणोहरुज्जाणे ॥४॥६४६ भगवान पद्मप्रभु के कारण हुई है। भगवान पद्मप्रभु के --पद्मप्रभ जिनेन्द्र कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के अपगर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक यही पर हुए थे। राण्ह समय मे, चित्रा नक्षत्र में, मनोहर उद्यान मे तृतीय इन कल्याणको को मनाने के लिए इन्द्र और देव, राजा भक्त के साथ दीक्षित हुए। उन्होने दीक्षा लेकर दो दिन और प्रजा सबका यहाँ प्रागमन हया था और यह नगरी का उपवास किया। वे दो दिन के पश्चात् वर्धमान नगर तब विश्व के आकर्षण का केन्द्र बन गई थी। तबसे यह मे पारणा के निमित्त पधारे । राजा सोमदत्त ने भगवान नगरी लोक विश्रुत तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गई। प्रसिद्ध को आहार दान देकर असीम पुण्य का बन्ध किया। देवजैन शास्त्र तिलोय पण्णत्ति मे भगवान पद्मप्रभ की ताओ ने षचाश्चर्य किये। भगवान घोर तप करने लगे। कल्याणक भूमि के रूप में कौशाम्बी का उल्लेख इस प्रकार दीक्षा के छह माह पश्चात् भगवान विहार करते हुए पुनः पाया है : दीक्षावन में पधारे । यहाँ आप ध्यान लगाकर बैठ गये प्रस्सजुद किण्ह तेरसि दिणम्मि पउमप्पहो प चित्तासु। और इसी मनोहर उद्यान में उन्हें केवलज्ञान प्रगट हो ( ६५ )
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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