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·५८ वर्ष २६, कि०३
अनेकान्त
३. शिखर विलास (१८४२) । ४ आगम शतक। ५ सम्यक्त्व कौमुदी । ६. अकृत्रिम चैत्यालय पूजा । ७. इन्द्रध्वज पूजा । ८. पचपरमेष्ठी पूजा ।
६. समवसरण पूजा। १०. त्रिलोकसार पूजा। ११. तेरहद्वीप पूजा। १२. पचकुमार पूजा। १३ पचकल्याण पूजा।
था। उस रुचि को इन्होंने निम्नलिखित ग्रन्थ लिखकर पूर्ण किया
१. चतुर्विशति पूजा भाषा (१८५४) २. धर्मोपदेश सग्रह (१८५८-१८६६) ३. मान-ज्ञान संग्राम
४. अनन्त व्रत पूजा आदि रतनचन्द्र
रतनचन्द्र का जन्म बैशाख सुदि पचमी वि० स० १८३४ मे बडजात्या गोत्रीय खण्डेलवाल परिवार में जयपुर राज्यान्तर्गत 'कुड' नामक ग्राम मे हुआ। इनके पिता का नाम लालचन्द तथा माता का नाम हीरादेवी था। इन्होने स. १८४८ मे लक्ष्मीचन्द मुनि से नागौर मे दीक्षा ग्रहण की । इस समय इनकी आयु लगभग १४ वर्ष की थी। इस प्रकार अल्पायु मे ही मुनि होकर इन्होने जयपुर, जोधपुर, मेवाड़, अजमेर व किशनगढ़ आदि स्थानों का भ्रमण किया। स० १८६२ मे ये प्राचार्य बन गये' । इनकी निम्नलिखित रचनाए उपलब्ध है -
१. चौबीस विनती। २. देवकी ढाल ।
३. पद' (११४)। लालचन्द
पं० लालचन्द सागानेर के निवासी थे। बड़े होने पर ये बयाना जाकर रहने लग गये। इनकी मुख्य रचनाए ये हैं
१. वरॉग चरित्र (माघ शु० ५ स० १८२७) । २. विमलनाथ पुराण भाषा (प्रासौज शु० १० स०
___ लक्ष्मीदास भी सागानेर के निवासी थे। ये देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। कार्तिक शुक्ल ६ स. १७८१ को इन्होने यशोधर चरित्र की रचना की। इस रचना का आधार भट्टारक सकलकीति तथा पद्मनाभ के सस्कृत में रचित यशोधर चरित्र थे। यशो पर चरित्र के कुछ छद दृष्टव्य है ...
कुंद लिता देडिलो मनोज प्रभूत महा, सब जग वासी जीव जे रंक करि राखे है। जाके बस भई भूप नारी रति जैम कांति, कुबेर प्रमान संग भोग अभिलाषे है । बोली सुन बैन तब दूसरी स्वभाव सेती, काम बान ही ते काम ऐसे वाक्य भाषे है । नैन तीर नाहि होइ तो कहा कर सुजाके, मति पास जीव नाना दुख चाख है।
१८३७)। जिनदास--
१. श्री रतनचन्द्र पद मुक्तावली पृ० (क)। २. वही, पृ. (ग)। ३. वही, पृ० (ग)। ४. राजस्थान के जैन शास्त्र भडारो की सूची पृ० ६४६ । ५. वही, पृ० ४४०। ६. इनके पद श्रीरत्नचन्द्र पदमुक्तावली नामक ग्रंथ मे
प्रकाशित हैं। ७. कामताप्रसाद जैन ने तो इनका नाम ही इस प्रकार
लिखा है-लालचन्द सागानेरी । हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास-पृ० २१६ ।
जिनदास के विषय में केवल मात्र इतना ही ज्ञात हो सका है कि ये जयपुर के जैन कवि थे और इन्होंने अनेक कृतियों की रचना की थी। उनमें से कुछ उपलब्ध कृतियों के नाम ये है -
१. सतगुरु शतक । (चैत्र कृ० ८ सं० १८५२) । २. चेतनगीत।
३. धर्मतरुगीत"। ८. वीरवाणी ।
. शास्त्र भंडार पार्श्वनाथ का मदिर वे० ६०१ । १०. वही।