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________________ राजस्थान के जैन कवि और उनकी रचनाएं डॉ० गजानन मिश्र एम. ए., पी-एच. डी., प्रार. ई. एस. गमानीराम भावसा--- लवाल के यहाँ हुआ था। इनका रचनाकाल १७वी शताब्दी ये पडित टोडरमल जी के लघु पुत्र थे। इनका जन्म का उत्तरार्द्ध तथा १८वी शताब्दी का पूर्वार्द्ध है । ये संस्कृत सं० १८१८ के आस-पास हुअा था। ये अच्छे वक्ता तथा । तथा न्यायशास्त्र के विद्वान थे। इन्होने तिम्नलिखित ग्रंथ सरल हृदय थे । ये फारसी के भी अच्छे ज्ञाता थे। इन्होने लिखे थे ...... महाराजा प्रतापसिह की आज्ञा से कार्तिक शु० ५ स० १. श्वेताम्बर पराजय ४, नेमि नरेन्द्र स्तोत्र १८४६ मे 'दीवान हाफिज' का पद्यानुवाद किया था। . २. जिन स्तोत्र ५. चतुर्विशति सधान स्वोपज्ञ इनके नाम से 'सत्तास्वरूप' नामक रचना तथा अनेक पद टीका भी लिखते है। ३. कर्मस्वरूप वर्णन ६. सुखेण चरित्र चम्पाराम भांवसा -- ___७. सुख निधान ये माधोपुर के निवासी थे। इनके पिता का नाम टीकमचन्दहीरालाल था। इनकी निम्नलिखित रचनाएं मिलती है.---- ये जयपुर राज्य के किसी कस्बे के निवासी थे। धर्म १ भद्रबाहु चरित्र भाषा (श्रावण शु० १५ स० १८००)। में इनकी बहुत अधिक श्रद्धा थी। इन्होंने निम्नलिखित २. धर्म प्रश्नोत्तर श्रावकाचार (१८६८) । रचनाए की .३. चर्चासागर । १. चतुर्विशति कथा (पद्य) स० १७१२ । जगन्नाथ पंडित २. चन्द्रहंस की कथा (१७०८) । इनका जन्म टोडारायसिह के निवासी पौमराज खण्डे- ३. श्रीपाल स्तुति । ४. अन्य स्तुतियाँ। कि जो अपेक्षाए न हो, उन्हे भी स्याद्वाद के आधार पर टेकचन्द-- माना जाए । अश्वशृंग, आकाश-कुसुम और वन्ध्या-सुत के इनके जन्म, परिवार तथा अन्य परिचयात्मक सामग्री अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए स्याद्वाद की कोई के लिए अन्त साक्ष्य तथा बहिक्ष्यि मौन है । इनके ग्रन्थो अपेक्षा लगाने की आवश्यकता नहीं है, क्योकि इनकी तो की सख्या अत्यधिक है । उपलब्ध ग्रंथो के नाम इस प्रकार सत्ता ही प्रसिद्ध है। म्याद्वाद का काम वस्तु को यथार्थ है :- रूप से प्रकट करने का ही है, न कि जैसा हम चाहे, वैसा १. तीन लोक पूजा (१८२८)। वस्तु को बना देने का। ३. सुदृष्टि तरंगिणी वचनिका (१८३२) __भगवान् महावीर ने जगत् को जीवन-क्षेत्र मे अहिसा ३. सूत्र जी की वचनिका (१८३७) । की जितनी बहुमूल्य देन दी है, विचार-क्षेत्र में भी 'स्याद्- ४. कथाकोष भाषा वाद की उतनी ही बहुमूल्य देन दी है। अहिसा जीवन ५. सोलहकारण बड़ी पूजा को उदार और सर्वांगीण बनाती है तो स्यावाद विचारो ६. दश लक्षण बड़ी पूजा को । एकांगी विचार अपूर्ण अोर वास्तविकता से दूर होता ७. कल्याणक पूजा है, जबकि सर्वांगीण विचार पूर्ण और वास्तविक होता है। ८. रत्नत्रय बड़ी पूजा ६. नन्दीश्वर पंचमेस पूजा
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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