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________________ बहोरीबाट निया प्र में होता है । श्रतः यह सम्भावना तर्कसंगत प्रतीत होती है। : तिथि निर्णय : प्रस्तुत लेख सर्वप्रथम श्री कनिंघम ने पढ़कर इस प्रोर अन्य विद्वानों को श्राकर्षित किया था। कनियम के बाद डा० भण्डारकर ने अभिलेख का भावार्थ प्रकाशित कराया था । लेख उन्होंने प्रपठनीय निर्देशित किया था। संवत् सूचक क श्री मिराशी जी भी नहीं समझ सके । उन्हें काल सूचक अंक-स्थल टूटा हुम्रा मिला था । श्री कनिंघम ने संवत् १० पढ़ा था । शासक गयाकर्णदेव का संवत् १०२ का एक लेख तेवर (जबलपुर) से मी मिला है। गयाकर्णदेव के पुत्र नरसिंहदेव संबंधी भेड़ाघाट से उपलब्ध सम्वत् ६०७ का तथा भरहुन से उपलब्ध सम्वत् २०६ का लेख भी उल्लेखनीय है । तेवर लेख के निम्न पद्य द्रष्टव्य हैगोविल राजचक जिगीषु राजोति देवः । तस्माद्यशः कर्णनरेस्वयंभूतस्यात्मजोऽयं देवः ||३|| प्राकल्प पृथिवों शास्तु श्रीगया कर्णपार्थिवः समतो नरसिंहेन युबराजेन सूनुना ॥ ४ ॥ 1 इन पद्यों में गया कर्णदेव का नरसिंह नामक युवराज पुत्र बताया गया है। उसका अपने पिता के साथ शासन करना भी ज्ञात होता हैं। युवराज उल्लेख से गया कर्णदेव का वृद्धस्य भी सूचित है। अतः यह तेवर लेख गाणंदेव की वृद्धावस्था का कहा जा सकता है । बहोरो ले गयाकर्णदेव के प्रारम्भिक शासनकाल की सूचना देता है। तेवर, भितरी, भरहुन लेखों में कलचुरि सम्वत व्यवहृत हुधा है। किन्तु इस लेख में शक सम्वत् । शक सम्वत् १०२२ में यदि ईसवी और शक सम्वत् के अन्तर ७७ वर्ष ५ माह को जोड़ दिया जावे तो ४७ सम्वत् १०६६ वर्ष निश्चित होता है। तेवर लेख से यह लेख ५० वर्ष पूर्व का होने से इसे गयाकर्णदेव के प्रारम्भिक शासनकाल में प्रक्ति कराया जाना कहा जा सकता है । इस भांति यह लेख शक सम्वत् १०२२ या उससे कुछ ही पूर्व का निश्चित होता है। श्री मिराशी जी का यह कथन भी तवं संग है कि यह लेख या तो दसवीं शती के अन्त का है या ग्यारहवीं शती के प्रारम्भ का । इसमें विक्रम सम्वत् व्यवहुत नहीं हुआ है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो सम्वत् सूचक अक ११ या १२ प्रवश्य होते । : धन्य : श्री कनिंघम को यह १२ फुट २ इंच ऊँची ३ फुट चौड़ी, सगासन मुद्रा में हरिण लाग्छन से युक्त शान्ति नाथ प्रतिमा एक पीपल के वृक्ष के नीचे मिली थी। प्रासन पर ७ पंक्ति का लेख है। सम्प्रति मन्दिर निर्मित हो रहा है। मुनि कान्तिसागर ने लिखा है कि इस प्रतिमा को लोग 'खनुवादेव' कहकर लातों, जूतों और बुहारियों से पूजते थे ताकि डर के मारे ये सुविधायें देते रहें। प्रतिमा के दर्शनों से मनोकामनाएं भी पूर्ण हुई हैं। ईसवी १९६३ की क्षेत्रीय वार्षिक रिपोर्ट मे तहसीलदार ध्रुवदेवसिंह को पुत्ररत्न की उपलब्धि का उल्लेख है । बेलप्रभाटिका प्रभिलेख में 'वेल्लप्रभाटिका' स्थान का उल्लेख प्राया हैं । यह स्थान बाकल से समीकृत किया जा सकता है । बाकल प्रथम तो गोल्लापूर्व प्राम्नाय के समृद्ध श्रावकों का मावास है । दूसरे बाकल क्षेत्र के समीप है। वहां से दिन में माना जाना सुविधापूर्वक सम्भव है ।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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