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________________ बहोरोवन्द प्रतिमा लेख ग० कस्तूरचन्द 'सुमन' १. स्वस्ति....... [व] दि [भौ] मे श्रीमद गयाकर्ण- सर्वघर हुए हैं। सर्वघर ताकिकों मे श्रेष्ठ श्रीमान् माधवदेव विजय रा नन्दि से अनुगृहीत थे। सर्वधर का महाभोज नामक पुत्र २. ज्ये राष्ट्रकूट कुलोद्भव महासामंताधिपति श्रीमद- था। महाभोज ने धर्म, दान तथा प्रध्ययन मे रत रहकर गोल्हणदेवस्य प्रवर्द्धमानस्य ।। इस शान्तिनाथ मन्दिर का निर्माण कराया था। श्रेष्ठी ३. श्रीमद गोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रभाटिकायामुरुकुला- विरुद से विभूषित सूत्रधार संजक ने सफेदी कर मन्दिर ___म्नाये तर्कतार्की (कि) चूडामणि श्रीम का सौन्दर्य बढ़ाया । चन्द्रकराचार्याम्नाय के (देशीगण मे ४. पाषवनंदिनानुगृहि(ही)त: तस्साधु श्री स(व) मे उत्पन्न) भाचार्य सुभद्र द्वारा वदि ६ भोमवार घर:] तस्य पुत्र[:]महा[भो] ज[:] धर्मदानाध्ययन- के दिन प्रतिष्ठा कराये जाने का उल्लेख है। श्री रतः [1] तेनेदं का सुभद्र ने अपनी जित विद्या और विनय से विद्वानों ५. रितं रम्यं सां(शांतिनाथस्य मंदिरं (रम्) ॥ स्वलान्य. को मानन्दित किया था। प्रतिष्ठा वेरुलप्रभाटिका में मसज्जक सूत्रधार [:] श्रे) स्टि (ष्टि) नामा [1] सम्पादित हुई ज्ञात होती है अथवा प्रतिष्ठा कराने वाले वितो(ता)न च महाश्वे महाभोज वहां के निवासी थे। ६. तं निम्मितमतिसुंदर[रम्]। श्रीमच्चन्द्रकराचार्याम्नाय मन्य: देसी (शी) ग [णा] न्वये समस्त विद्या विनये (या) जबलपुर जिले में सिहोरा (तहसील) से १५ मील नंदित दूर स्थित इस क्षेत्र के नाम के सम्बन्ध में मान्यता है कि जाना: प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत सुभद्राश्चिरं पानी के लिए निमित बांधो की बहुलता के कारण इसे ___ जयंतु ॥ यह नाम दिया गया है। कनिंघम ने इसके समीपवर्ती [इन्स्क्रिप्शन्स माफ दि कलचुरि चेदि एरा जि. ४, भा.१ क्षत्र में ४५ बांधों का होना बताया है। प्रोज भी चारों पृ. ३०६] पोर तालाब विद्यमान हैं। १. सवत १....फाल्गून वदि सोमे श्रीमद् गयाकर्ण- कनिषम ने बताया है कि यहाँ एक बहत बडा नगर देव विजय रा. था। टूटी हुई इंटों तथा बर्तनों के ऊंचे स्थानों पर उप२. ज्ये राष्ट्रकूट कुलोद्भव महासामन्ताधिपति श्रीमद- लब्ध अवशेष इस तथ्य के साक्षी है। नगर का कोई परगोल्हण देवस्य प्रवर्द्धमानस्य कोटा न था। कनिंघम ने इसका थोलावन नाम होने की ३. श्रीमद गोल्लपृथी.""मय... सम्भावना भी अभिव्यक्त की है। नाम के दो शब्दों में शेष प्रपठनीय थोला का अर्थ सम्भवतः थोड़ा और वन का अर्थ पानी [कनिंघम रिपोर्ट ६, पृ० ३६] होता है । सम्भवत: थोड़ा पानी रहने के कारण इसे यह हिन्दी भावार्ष संज्ञा दी गयी हो तथा बाद में प्रयत्न करने पर पानी श्रीमद गयाकर्णदेव के विजय राज्य में प्रवक्ष्मान बहुत मात्रा में प्राप्त हो जाने के कारण इसे बहवन कहा . राष्ट्रकूट कुल में उत्पन्न महासामन्ताधिपति गोल्हणदेव जाने लगा। पानी के बहुरने से भी बहोरीवन नाम रखा के शासनकाल में गोलापूर्व प्राम्नाय में उत्पन्न साधु जाना ज्ञात होता है। गांव में बहुरने का प्रयोग लौटने
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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