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होगगिरि-क्षेत्र
उपयुक्त रमणीयता को देखते हुए प्राचीन काल में यहाँ पर्सन जिसमें घास-फूस भरी हो और उसका मुख नीचे तपस्या के लिए प्राना अधिक सम्भव था और अनेक को प्रोर हो तथा उसके चारों प्रोर भग्नि लगी हो। मुनियों का यहां से निर्वाण प्रगत वरना भी असम्भव अग्नि लगने पर जिस प्रकार भीतर का घास-फूस जलने नहीं था।
लगता है, उसी प्रकार द्रोणिमान् पर्वत के ऊपर गुरुदान द्रोणगिरि नामक एक पर्वत ऋषिकेश से नीली घाटी मुनिराज भी जलकर मुक्त हुए । की मोर जाते हुए १६६ मील दूर जुम्मा से दिखाई पड़ता इसी प्रकार अन्यत्र भी इस घटना का उल्लेख इस है। यह कुमायं में है। इसे दून गिरि भी कहते हैं। प्रकार किया गया हैकिन्तु इस पर्वत के निकट फलहोड़ी नामक कोई ग्राम वास्तव्यो हास्तिने घरो द्रोणीमति महोपरे । कभी रहा था, ऐसे प्रमाण नहीं मिलते। प्रनयह द्रोण- गुरुदत्तो यतिः स्वार्थ जमाहानलवेष्टितः॥ गिरि गुरुदत्त मादि मुनियों की तपोभूमि रहा हो, ऐसी मर्थात् हस्तिनापुर के निवासी गुरुदत मुनि मे द्रोणीसम्भावना प्रतीत नहीं होती। इतना अवश्य है कि हिन्दू मान पर्वत पर अग्नि लगने से प्रास्मा के प्रयोजन (वय) परम्परा में बाल्मीकि तथा तुलसीकृत रामायणों में लक्ष्मण को सिद्ध किया। के शक्ति लगने पर हनुमान द्वारा जिस द्रोणगिरि पर्वत से पौराणिक माश्याम-भगवती-पाराधना मोर मारासंजीवनी बूटी लाने के उल्लेख मिलते हैं, वह द्रोणगिरि
उल्लख मिलत है, वह दाणागार घनासार नामक शास्त्रों में द्रोणगिरि पर्वत पर गुरुदत हिमालय श्रृंखला में स्थित यही द्रोणगिरि था, ऐसी मुनिराज के ऊपर हुए जिस उपसर्ग की मोर संकेत किया मान्यता प्रचलित है। हिन्दु मान्यता के अनुसार विष्णु ने . उमके सम्बन्ध में हरिषेणकृत कथाकोष में विस्तृत कूर्मावतार यहीं लिया था। कुछ विद्वानों की मान्यता है कथानक दिया गया है जो इस प्रकार हैकि वर्तमान संघपा ग्राम के निकटस्थ द्रोणगिरि ही वह
वह श्रावस्ती नगरी का शासक उपरिचर पद्मावती, पर्वत है, जहाँ से हनुमान संजीवनी बूटी ले गये थे। इन समितप्रमा. सप्रभा और प्रभावती नामक चारो रानिया क विद्वानों की धारणा है कि श्री रामचन्द्र वनवास के
साथ प्रमदवन में बिहार के लिए गया। ये जब सुदर्शन समय मोरछा भी पधारे थे। इसके निकट 'रमन्ना' बावडी मे क्रीडा कर रहे थे, तभी विद्युदंष्ट्र नामक एक (रामारण्य' बन मे ठहरे थे और उस समय वे द्रोणगिरि HRITEर अपनी पत्नी मदनवेगा के साथ विमान पर्वत पर भी माये थे।
प्राकाश में जा रहा था। विद्याधरी जल-क्रीड़ा करते हुए प्राचीन शास्त्रों में द्रोणगिरि का उल्लेख-निर्वाण- राजा और रानियों को देखकर बालाकाण्ड और निर्वाण भक्ति के प्रतिरिक्त द्रोणगिरि या जो अपने पति के साथ जल-क्रीड़ा में भी द्रोणिमान् पर्वत का उल्लेख भगवती-माराधना, भाराधना- के मुख से अन्य पुरुष को प्रशसा सुन
सपना के मुख से अन्य पुरुष की प्रशंसा सुनकर विद्याधर को सार, पाराधनाकथाकोष, हरिषेणकथाकोष प्रादि ग्रन्थों में
काम बड़ा बुरा लगा। गुस्से के मारे वह विमान को लौटा से भी पाया है। भगवती-माराधना में प्राचार्य शिवकोटि मापौर प्रपनी पत्नी को अपने घर छोड़कर वह पुनः इस प्रकार वर्णन करते हैं
उसी बावड़ी के पास माया भोर एक बड़ी मारी शिला हत्थिणपुरगुरुदत्तो सम्मलियाली व दोणिमंतम्मि। से बावडी को ढक दिया। इससे दम घुटकर पाना
उज्झतो अधियासिय पडिवण्णो उत्तम अट्र ॥१५५२॥ मर गये। राजा क्रोध में मरकर सांप बना तथा चारा अर्थात् हस्तिनापुर के निवासी गुरुदत्त मुनिराज द्रोणिमान् रानियां सम्यग्दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग में देवियाँ बनी। पर्वत के ऊपर संबलियाली के समान जलते हुए उत्तम वहां प्रवधिज्ञान से पूर्व भव का वृत्तान्त जानकर अपने पूर्व अर्थ को प्राप्त हए । संबलिथाली का अर्थ है-एक भव के पति के जीव को सम्बोषन करने भाई। तभा उस
राजा का पुत्र मनन्तवीर्य उस वन में विहार करने माया। १. Geographical Dictionary of ancient India
वहां उसने एक शिलातल पर विराजमान प्राषिशानी byNandalal Day.