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द्रोणगिरि-क्षेत्र
पं० बलभद्र जी न्यायतीर्थ
स्थिति और मार्ग-द्रोणगिरि मध्यप्रदेश के छर- अर्थात् फलहोडी बड़गांव के पश्चिम मे द्रोणगिरि पुर जिले मे विजावर तहमील में स्थित है। द्रोण- पर्वत है। उसके शिखर से गुरुदत्त प्रादि मुनिराज निवाण गिरि क्षेत्र पर्वत पर है। वहाँ पहुँचने के लिए २३२ को प्राप्त हुए। उन्हें मै नमस्कार करता हूँ। सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। सीढ़ियाँ पक्की बनी हुई सस्कृत निर्वाणभक्ति में केवल क्षेत्र का नाम द्रोणीहैं। पर्वत की तलहटी में सेंधपा नामक छोटा-सा गाँव मान दिया है। उसका कोई परिचय अथवा वहाँ से मुक्त है। यहाँ पहुँचने के लिए सेण्ट्रल रेलवे के सागर या होने बाले मुनि का नाम नहीं दिया है। हरपालपुर स्टेशन पर उतरना चाहिए । सुविधा निर्वाणकाण्ड मे द्रोणगिरि की पूर्व दिशा में जिस नुसार मऊ , महोबा या सतना भी उतर सकते हैं। फलहोडी बडगाव का उल्लेख किया है, वह गाँव प्राजकल प्रत्येक स्टेशन से क्षेत्र लगभग १००कि०मी० पडता है। नही मिलता है। इसके निकट सेघपा ग्राम है, जिसका सभी स्थानों से पक्की सडक है। कानपुर-मागर रोड कोई उल्लेख नही है। सम्भव है, यहां प्राचीन काल में प्रथा छतरपुर-सागर रोड पर मलहरा ग्राम है । मनहरा फलहोडी बडगांव रहा हो और वह किसी कारणवश नष्ट से द्रोणगिरि ७ कि. मी. है। पक्की सडक है। सागर
हो गया हो। वास्तव में सेंधपा गाँव विशेष प्राचीन प्रतीत स्टेशन से मलहरा तक बसें चलती हैं। यदि पूरी बस की
नही होता। कहा तो यह जाता है कि जिस भूमि पर यह सवारी हों तो बस क्षेत्र तक चली जाती है। अन्यथा
ग्राम वसा हुआ है वह निकटवर्ती ग्राम की श्मशान भूमि नियमित बसों द्वारा मलहरा पहुँच कर वहां से बैलगाड़ी
थी। वैसे अब भी यहाँ फिसी ग्राम के अवशेष प्राप्त होते द्वारा जा सकते हैं।
हैं और उन अवशेषों मे सैकडों खण्डित जैन मूर्तियां भी सेंधपा ग्राम कठिन और श्यामला नामक नदियों के
विखरी पड़ी है । जनेतर लोग अनेक जैन मूर्तियों को यहाँ बीच बसा हुमा है। निरन्तर प्रवाहित रहने वाली इन
से ले गये हैं और उन्हें जगह-जगह चबूतरो पर विराजनदियों ने इस स्थान की प्राकृतिक सुन्दरता को अत्यन्त
मान करके विभिन्न देवी-देवतानों के नाम से पूजते हैं। माहाददायक बना दिया है। ग्राम में जाते ही मन में
पर्वत की तलहटी में एक प्राचीन जैन चैत्यालय अब भी शान्ति अनुभव होने लगती है। ग्राम से सटा हुमा द्रोण
खडा हुया है, जिसे लोग बंगला कहते हैं। यदि यहाँ गिरि पर्वत है। यहां प्रकृति ने तपोभूमि के उपयुक्त
खुदाई की जाय तो यहां पर पुरातत्त्व की विपुल सामग्री सुषमा का समस्त कोष सुलभ कर दिया है। मघन वृक्षा.
मिलने की सम्भावना है। बली, निर्जन-प्रदेश, वन्य पशु, चन्द्रभागा नदी, पर्वत से
निर्वाणकाण्ड के इल्लेख से यह ज्ञात होता है कि झरते हुए निर्भर से वने दो निर्मल कुण्ड; ये सभी मिल
यहाँ खे न केवल गुरुदत्त मुनि ही मोक्ष पधारे है, अपितु कर इसे तपोभूमि बनाते हैं।
अन्य मुनि भी मुक्त हुए है। वास्तव में तपोभूमि के निर्वाणभूमि-द्रोणगिरि निर्वाण-क्षेत्र है। प्राकृत - निर्वाणकाण्ड मे इस म न मोल १. द्रोणीमति प्रबलकुण्डलमेण्ढ़ के च,
वंभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । फलहोडी बडगामे पच्छिमभायम्मि दोणगिरिसिहरे । ऋष्यद्रिके च विपुलाद्रि बलाहके च, गुरुदत्तादिमुणिदा णिवाण गया णमो तेसि ।। विन्ध्ये च पोदनपुरे वषदीपके च ॥२६