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________________ प्राविपुराणगत ध्यानप्रकरण पर ध्यानशतक का प्रभाव ३६ करने वाले मन को ध्यान के बल से क्रमशः हीन करते यद्वद वाताहताः सद्यो बिलीयन्ते धनाधनाः । हुए उसे परमाणु में रोका जाता है और तत्पश्चात् जिन तस्कर्म-धना यान्ति लयं ध्यानानिलाहताः ॥ रूप वैद्य उसे उस परमाणु से भी हटा कर मन से सर्वथा पा, पु. २१.२१३ रहित हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों ग्रन्थों को ध्यानविषयक वर्णनशैली ___यही उदाहरण कुछ भिन्न प्रकार से प्रादिपुराण में तथा शब्द, प्रथं पोर भाव की समानता को देखते हुए इसमे भी दिया गया है। यथा-वहां कहा गया है कि जिस सन्देह नहीं रहता कि प्रादिपुराण के अन्तर्गत वह ध्यान प्रकार सब शरीर में व्याप्त विष को मन्त्र के सामर्थ से का वर्णन ध्यानशतक से अत्यधिक प्रभावित है। यहां इस खींचा जाता है उसी प्रकार समस्त कर्मरूपी विष को शका के लिय कोई स्थान नहीं है कि सम्भव है प्रादिध्यान के सामर्थ्य से पृथक किया जाता है। पुराण का ही प्रभाव ध्यानशतक पर रहा हो। इसका एक अन्य उदाहरण मेघों का भी दोनों ग्रन्थों मे दिया कारण यह है कि ध्यानशतक पर हरिभद्र सूरि द्वारा एक गया है, जिसमें पूर्णतया समानता है । यथा टीका लिखी गई है, अतः ध्यानशतक की रचना निश्चित जह वा घणसंघाया खणेण पक्षणाहया विलिज्जति । ही हरिभद्र के पूर्व में हो चुकी है तथा टीकाकार हरिभद्र शाणपवणावहूया तह कम्मघणा विलिग्जति ॥ सूरि निश्चित ही प्राचार्य जिनसेन के पूर्ववर्ती हैं। इससे ध्या. श. १०२ यही समझना चाहिए कि प्रादिपुराण के रचयिता जिनसेन स्वामी के समक्ष प्रकृत ध्यानशतक रहा है और १. ध्या. श. ७१. उन्होंने उसमे ध्यान का वर्णन करते हुए उसका पूरा उप२. प्रा. पु २१.२१४ । योग भी किया है। बुद्धिमान् पुरुषार्थी त्यजति न विधानः कार्यमुद्विज्य धोमान्, खलजनपरिवृत्तेः स्पर्धते किन्तु तेन । किमु न वितनुतेऽर्कः पद्मबोधं प्रबुद्ध स्तदपहृतिविधायी शोतरश्मिर्यदोह ॥ बुद्धिमान् पुरुषार्थी प्रारम्भ किये हुए कार्य को दुष्टजन की प्रवृत्ति से उद्वेग को प्राप्त होकर छोड़ नहीं देता, किन्तु उससे स्पर्धा करता है-दिखाये गये दोषों से दूर रह क उसे पूरा करने का ही प्रयत्न करता है। सो उचित ही है-सूर्य के द्वारा विकसित किये गये कमलों को यद्यपि चन्द्रस्मा मुकुलित किया करता है, फिर भी उससे खिन्न न होकर सूर्य पुनः उदय को प्राप्त होता हुमा उन्हें विकसित करता है।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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