SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घरौड़ा से प्राप्त चौमुखो जैन प्रतिमा कुमारी शोला नागर हरियाणा प्रान्त साहित्य संस्कृति मे ही नहीं, अपितु जा सकता है । वे पद्मासन मुद्रा में सर्प पर प्रासोन हैं, उनके पुरातत्व और कलाकी दृष्टि से भी प्रत्यन्त समृद्ध है। इसके कान लम्बे *. गिर भग्न है। फणावली के नीचे दोनों पुराने टीले तथा खण्डहर प्राज भी अपने मे उस की प्राचीन पोर पुष्पाहारी बिद्याधर अंकित है। पौर उनके पीछे कलाको संजोये हैं । यद्यपि ऐतिहासिक सर्वेक्षण करने पर एक छोटी जिन प्रतिमा अन्तर्ध्यान मुद्रा में अंकित की गई पता चलता है कि यहाँ बौद्ध भागवत और बौद्ध थर्मों के है। फणावली के ऊपर जल अभिषेक करते हुए गज साथ-साथ जैन धर्म का विकास भी बहत प्राचीन काल से प्रदर्शित है। माथ के कोष्ठक में ऊँचे उष्णीष वाले ऋषभ ही हुमा है। परन्तु इस धर्मको कलाकृतियों ने यहा उन देव जी है, सिर उनका भी नग्नावस्था में है। उनके सिर प्राचीन रूप में नहीं मिलती। अभी तक उपलब्ध जैन कला- के पीछे कमल का मटर : के पीछे कमल का सुन्दर प्रभामण्डल हैं। उनके कान लम्बे कृतियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पूर्व मध्य है और कन्धों को स्पर्श कर रहे हैं। कन्धों पर जटामों काल में यह प्रदेश जैनधर्म का मुख्य केन्द्र बन चुका था। का अंकन है जो समय के साथ कुछ मन्द सा पड़ गया है। प्रस्तुत प्रतिमा गुडगांवा जिले के घरोड़ा ग्राम से, श्रीवत्स का चिह्न यथास्थान अंकित है। इनके पासन से सडक बनाने के लिए जमीन समतल करते समय प्रकाश बल का निशान भी कूळ मिट सा गया है, लेकिन ध्यानमें पाई। यह ग्राम बल्लभगढ से ८ किलोमीटर दूर, ६. पूर्वक देखने से उसकी धुंधली सी प्राकृति दिखाई पड़ती इसके दक्षिण पूर्व में यमुना नदी के पुराने पाट पर स्थित है। प्रतिमा के शेष दो कोष्ठकों में शायद नेमिनाथ पौर है। प्रव यमुना नदी यहां से लगभग दो किलोमीटर की महावीर जी थे। उनकी प्रतिमाएं खण्डित होकर बड़ी दूरी पर बहती है। हरे भरे खेतों के बीच पुराने टीले प्रतिमा से अलग हो चुकी हैं । इस प्रतिमा के कोष्टक पर बसा यह ग्राम प्रत्यन्त रमणीक है। इसके टीले के स्तम्भों पर तीथंकरों के दोनों प्रोर उनकी सेवा में यक्ष माकार विस्तार को देख कर प्राचीन समय में इस स्थान प्रौर यक्षणी भी प्रदर्शित किये गये है। की महत्ता का अनुमान सहज ही हो जाता है। प्रतिमा भूरे पत्थर में निर्मित हैं । प्रकृति के दुष्प्रभाव प्रब यह प्रतिमा इस गांव के बाहर घरोडा-तिगांव के कारण इसका पाषाण गल गया है। इसको देखकर सम्पर्क सड़क के किनारे खले प्राकाश के नीचे स्थापित ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि निरन्तर जलप्रवाह के कारण कर दी गई है। वहां के स्थानीय लोगों द्वारा 'खेड़ा देवता' इसका सौन्दर्य बह गया हो। परन्तु फिर भी कहीं कहीं मा के नाम से पूजी जाती है. परन्तु पास जाकर इसका निरी से बहुत चिकनाहट लिये हुए हैं। खण्डित होने पर भी क्षण करने पर पता चला कि यह जैन धर्म की चतुमुखी इसमें अभी भी अध्यात्मिक रस छलकता है । लक्षणों और प्रतिमा है। चौमुखी जन प्रतिमाएं देश के अन्य भागा से लाञ्छनों की सीमा में जकही होने के पश्चात् भी यह भी मिली हैं। परन्तु हरियाणा प्रान्त से पहली बार ही अपने में अत्यन्त सौन्दर्य समेटे हुए है। तीपंकरों के भरे प्रकाश में पाई है। गोलाई लिए हुए अंग इतने तरल हैं कि एक दूसरे से घुल प्रतिमा ११५ सैन्टी मीटर लम्बी और ८५ सैन्टी- मिल गये से प्रतीत होते हैं। कलात्मक रूप से अत्यन्त मीटर चौड़ी है। इसकी ऊंची पीठिका पर चार कोष्ठक सराहनीय है। प्रदशित हैं । प्रत्येक कोष्ठक में एक-एक तीर्थङ्कर विराज- सम्भवत: यह प्रतिमा ग्यारहवीं बारहवीं शताब्दी के मान है। फणावली के कारण पार्श्वनाथ को पहचाना भास पास निर्मित की गई होगी।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy