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________________ ३२, अनेकान्त वर्ष २६, कि० १ भनेकान्त सभी पड़ोसियों और सम्बन्धियों के प्रति ऐसी उदारता हम भौचक्के प्रवाक् देख रहे थे और देखते-देखते पन्य किसी दस्तावेज में देखने को नहीं मिलेगी। सब प्रोझल हो गया। हमने एक दूसरे को देखा। सभी जन सिद्धान्त भवन प्रादि पारिवारिक संस्थानों के अपनी-अपनी मांखों को मल रहे थे जैसे सपना देखकर लिए समय के हिसाबसे प्रचुर साधन का उन्होंने वसीयत उठ रह हा। कर दिया था। अविश्वसनीय-फिर भी सच । वृद्धा बूपा दादीजी नेममुन्दर बीबी की बढ़ी मांखें एक बहुत बड़े बंगाली तांत्रिक हमारे घर पाये हुए वर्षों पूर्व विचारों में खो जाती है और फिर अपने पूज्य थे। हम सभी बच्चे बड़े अवकाश होकर सुन रहे थे उनकी भैया की कहानी समाप्त करते हुए वे कहती हैं कही बातें। पूज्यपाद दादा श्री देवकुमार जी के बारे में "मृत्यु के बाद जैसे ही शव को लेकर लोग गंगा की उन्होंने कुछ ऐसी बातें बतलाई कि उनके प्रति लोगों का उन पोर गए, हम सभी औरतें रोते, कलपते हाबड़ा स्टेशन प्राकर्षण और चढ़ गया। पर चली गई। एक कोने में सभी सिमटी बैठी थीं। भोर रात में उन्होंने अपनी सिद्धियों का प्रयोग दिख. होने को माया था। हम सब थकान से चूर मन से लाया। कुछ एक भूत प्रात्मानों के चित्र सादे कागज पर विरक्त गुमसुम पड़ी हुई थीं कि एकाएक भासमान की पाये। उनके हाथ के लिखे लेख में बातें करवाई और भोर से गाजे-बाजे की ध्वनि कर्णगोचर हई...देवों का फिर पूज्य दादा जी बेवकुमार जी को बुलाते-बुलाते थक एक बड़ा समुदाय तरह-तरह के वाद्यों को बजाता, खशी गए । एक दूसरी माध्यम उनकी सेवक मारमा ने लिखमनाता, नाचता चला जा रहा था पासमान के और भी कर सूचना दीऊपर...और भी ऊपर...पोर बीच में एक सत्री-सजायी वे दूर, बहुत दूर हैं, वहाँ तक हम लोगों का पहुँ। मलौकिक पालकी पर विराजमान थे भैया देवकुमार।" चना नहीं हो सकता।" वीर निर्वाणोत्सव मनायेंगे निर्वाणोत्सव सोल्लास । करेंगे ब्रह्माण्ड-जीव अलौकिक प्राभास ।। जन जन के स्वान्त में । भारत-भू के प्रान्त प्रान्त में । गूंजेंगे, सत्य, अहिंसा के सन्देश । त्रिरत्न का होगा सर्वत्र अन्तःप्रवेश ।। स्याद्वाद सिद्धान्त से व्यावहारिक बनेगा। परस्पर सद्भाव शाश्वत बढ़ेगा। मानवता की अर्चना में समवेत होगा संसार । विश्व शान्ति और बन्धुता के खिलेंगे पुष्प मपार ॥ वैमनस्य, विसंगति के साथ दूर होंगे विद्रोह । हाँ, सचमुच इसीलिए मनायेंगे यह समारोह।। -तेजपाल सिंह
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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