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________________ दीवान रूपकिशोर जैन की सार्वजनिक साहित्यसेवा -प्रगरचन्द नाहटा प्राचीन जैन साहित्यकारों ने जो विविध भाषाओं में स्वतन्त्र विभाग में हो। विद्वान कवि व लेखक गृहस्थ जैन एवं अनेक विषयों का साहित्य रचकर भारतीय साहित्य श्रावक-श्राविकाओं के साहित्य के भी दो विभाग किए जा की समृद्धि में महत्वपूर्ण योग दिया है, उसकी तो कुछ सकते हैं। एक में जैन सम्बन्धी साहित्य और दूसरा जानकारी प्रकाश मे पाई है। पर गत सौ पचास वर्षों सार्वजनिक साहित्य । में भी जो अनेक जैन साहित्यकार हुए हैं, उनकी साहित्य जैन साहित्यकारों ने गत सौ वर्गों में जो भी साहित्य सेवा का परिचायक कोई ग्रन्थ तैयार नही किया गया। निर्माण किया है उनमें से प्रकाशित साहित्य की जानकारी आधुनिक कुछ जैन कवियों की कविताओं का संग्रह तो तो प्राप्त करना सुगम है पर अप्रकाशित साहित्य की भारतीय ज्ञानपीठ से निकला है । यद्यपि वह काफी अपूर्ण जानकारी का पता लगाना अत्यन्त कठिन है। प्रकाशित है फिर भी कुछ प्रतिनिधि कवियों की जानकारी उससे जैन ग्रन्थों की जो-जो उल्लेखनीय सूचियाँ छपी हैं उनसे मिल जाती है। पर गद्य की अनेक विधाओं जैसे- तथा प्रमुख प्रकाशकों और बुकसेलरों के सूची पत्रों से कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध आदि भी कई जैन तथा जैन जैनेतर ग्रंथालयों व शास्त्र भण्डारों भादि से जैन लेखकों ने अच्छी सख्या मे रचे है, उनके सम्बन्ध मे हमारी ग्रन्थकारों और उनके रचनामों की सूची तैयार की जानी जानकारी बहुत ही कम है। अत. अावश्यकता है-गत चाहिये। उन ग्रंथकारों का परिचय कुछ तो जैन पत्रसौ वर्षों में जो भी जैन साहित्यकार हुए है उनका संक्षिप्त पत्रिकाओं से एवं कुछ हिन्दी, गुजराती के साहित्यकार परिचय और उनकी रचनायो की सूची वाला एक संग्रह परिचय सम्बन्धी प्रकाशित ग्रन्थों में से संग्रहीत किया जा ग्रन्थ शीघ्र ही तैयार करके प्रकाशित किया जाए। सकता है। पर यह सब कार्यवाही सामर्थ्य और द्रव्य आधुनिक जैन साहित्यकारों के साहित्य को मुख्य- म साध्य ह फिर भी करने योग्य ही है। तया चार-पांच भागो मे विभक्त किया जा सकता है। अभी-अभी प्रसिद्ध हिन्दी पत्रकार श्री बनारसीदास जैसे साधु-साध्वियों, चाहे ये किसी भी सम्प्रदाय या गच्छ चतुर्वेदी का अभिनन्दन ग्रन्थ जो "प्रेरक-साधक' के नाम के हों तथा अन्य त्यागी वर्ग में से जिन जिन ने उल्लेख- से सस्ता साहित्य मण्डल से प्रकाशित हुअा है, देखने मे नीय रचनाएं की हैं, उनका एक विभाग रखा जा सकता आया। उसमे श्री 'हरिहरस्वरूप विनोद' लिखित दीवानहैं । इसी तरह भाषा की दृष्टि से प्राकृत, संस्कृत गुजराती, रूपकिशोर जैन की साहित्य सेवा सम्बन्धी एक लेख प्रकाहिन्दी, राजस्थानी, मराठी, कन्नड भादि भाषामों में जिन शित हुआ है। उससे दीवान रूपकिशोर जैन ने जो सर्वजिन जैन लेखकों ने साहित्य निर्माण किया है उनका जनोपयोगी ६० पुस्तकों की रचना की है उसका कुछ दूसरा एक विभाग रखा जाय । उसी तरह साहित्य की विवरण ज्ञात हुमा। उसे अन्य जैन बन्धुओं के लिए भी अनेक विधामों जैसे महाकाव्य, प्रबन्ध काव्य, फुटकर उपयोगी समझकर यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। कविता, जीवन चरित्र, प्रवचन व उपदेशिक साहित्य, उनके लेख में दी हई रचनामों की सूची में प्राचीन ग्रन्थों के अनुवाद व टीका विवेचन तथा कथा, जैन सम्बन्धी कोई अन्य नहीं है। हां बीर भादि जैन मानी, एकांकी, नाटक, उपन्यास, निबन्ध, शोध प्रादि पत्रों का सम्पादन उन्होंने अवश्य किया था। १० वर्ष की प्रबन्ध मावि विविध विषयों के साहित्य का परिचय एक मायु में १२ दिसम्बर को उनका देहांत हुमा अतः उनके
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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