SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शील की प्रतिमूर्ति मनन्तमती २२१ मिलता। भोगे हुए भोगों में तृप्ति कहाँ ? मानव जन्म करूं'। प्रत: मैं उस पुरुष के साथ चल दी। गणिका के भनेक भवों में भटकने के बाद मिलता है। यह जीवन भवन के आगे एक सुसज्जित रथ खड़ा था, उसी में मेरी भी संसार के प्रपंचों और विलासिता में बीत गया, तो तन यात्रा प्रारम्भ हुई। रथ एक दुर्ग के मागे रुका और सब कुछ कौड़ी के मोल बिक जाएगा। पुष्पसन ने कहा मझे इसको चारदीवारी में बन्द कर दिया गया। लम्बी -पगली, ज्ञान की बाते रहने दो। खुशी-खुशी समर्पण यात्रा के कारण मंग-अंग टूट रहे थे। थकान में पलकें नहीं किया, तो मुझे बलपूर्वक अपनी वासना पूर्ति करनी बोझिल थीं। किन्तु प्रकाश की एक किरण सम्बल बन पड़ेगी। मैं तुझे दो दिन की अवधि देता हूं। यदि इस गई। हृदय ने कहा, बाद ने उसका अनुमोदन किया कि वीच तने अपना निर्णय नहीं बदला, तो मुझे बल प्रयोग जिस प्रदश्य शक्ति ने बाल्यकाल में ब्रह्मचर्य अंगीकार करना पड़ेगा। करने की प्रेरणा दी थी, वही शक्ति मुझे जीवन के लों ___मैंने भगवान महावीर का स्मरण कर अन्न-जल छोड़ से छुटकारा देगी । मैंने वीर प्रभु का स्मरण किवा । दिया और यह प्रण किया कि जब तक इस उपसर्ग का निवारण नहीं हो जाएगा, मैं अन्न-जल ग्रहण नही इस पुनीत स्मरण से मेरा सुषुप्त विश्वास लौट फरूगी। भख-प्यास और मानसिक उत्पीडन से दो दिन प्राया। मुझे लगा जैसे कोई प्रज्ञात अलौकिक शक्ति मेरे में शरीर की कान्ति क्षीण हो गई। मूर्छा पाने लगी। भय को दूर खींच ले गई है। हृदय को शान्ति मिली, दो दिन बाद पुष्पसेन पाया । मेरे शरीर की दशा देखकर साहस मिला। सहसा किसी के आने की पदचाप सुनाई घबराया। बोला-तुझे तेरे पिता के पास भेज दंगा, त दी। मैंने देखा कि ठही बलिष्ठ राजपुरुष मादकता में अन्न-जल ग्रहण कर ले। वढ़ा चला आ रहा है । उसके चेहरे पर क्रूर वासना खेल मैं अपने निश्चय पर अडिग रही। तीसरे दिन वह रहा रही थी। मैंने णमोकार मंत्र का जप प्रारम्भ कर दिया । एक प्रौढ़ा को लेकर पाया और बोला-मैंने तुझे धर मत्र हा मंत्र का चामत्कारिक प्रभाव हा । उसके बढ़ते हुए कदम भेजने की व्यवस्था कर दी है। तू भोजन कर ले और रुक गए। उसकी वासना न जाने कहाँ विलीन हो गई। इस महिला के साथ आनन्द पूर्वक अपने घर जा। मैंने न जाने किस अदृश्य शक्ति ने इतनी जल्दी उसके विचारों कुछ फल-दूध आदि स्वीकार किया। मैं उस महिला के में परिवर्तन ला दिया। वह बोला--बहिन क्षमा करना। मैंने अनेक युवतियों के साथ बलात्कार किया है। मेरे इस साथ चल दी। किन्तु दुर्भाग्य से वह एक गणिका थी और पिशाच पुष्पसेन ने मुझे उसके हाथों इसलिए सौंपा था कक्ष की दीवारे उस पाप की साक्षी है। मेरे कान में कि वह मुझे उसकी वासना पूति के लिए विवश करे । उनकी चीत्कारें आज भी गूंज रही है। प्राज के पहले कभी मेरे हृदय में दया नहीं पायी। आज मैं तुझे सच्चे शाम तक मुझे यह ज्ञान न हो सका कि देवसेना एक गणिका है। किन्तु रात्रि के प्रथम प्रहर में अश्लील गीतों हृदयसे बहिन कह कर पुकार रहा हूँ। मुझे अपने शब्दों का की धुनें, पायलों की झंकारें और अट्टहासों ने मुझे सोचने अपमान करना नहीं पाता है। प्राण भले ही चले जायें, पर विवश कर दिया कि देवसेना एक प्रसिद्ध एवं धनिक पर बहिन तेरी पावनता पर कोई दाग नहीं पाएगा। गणिका है। रात्रि के प्रथम प्रहर मे धरुपो की झंकारें, मैं भागिनी-विहीन हूँ। एक बार मुझे भाई कह कर तबले की था, रात्रि के तीसरे पहर थमी। मैं एक पल पुकार । भी न सो सकी । सुबह-सुबह देवसेना ने एक स्वस्थ धनिक नायास ही मेरे हृदय में निकल पड़ा-भैया! मुझे युवक से मेरा परिचय कराया और कहा कि यह बहुत उसकी बाणी मे प्रायश्चित्त की झलक मिली, किन्तु मैं चरित्रवान् व्यक्ति है। इसका प्राश्रय स्वीकार करो। मैं दूध से जल चुकी थी। मैंने कहा-भैया यदि तुम सच्चे जानती थी कि मुझे बेचा जा रहा है। किन्तु मैं विवश हृदय से प्रायश्चित्त कर रहे हो, यदि तुम क्षत्रिय हो, तो • थी। मैंने सोचा-पहले इस कुट्टनी के घर से मुक्ति प्राप्त मुझे मार्ग दो ! मुझे इसी समय मुक्त कर दो। वह मार्ग
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy