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________________ प्रादर्शमहिला शील की प्रतिमूर्ति अनन्तमती श्री मिश्रीलाल जैन अयोध्या के एक जिनालय में संस्कृत के सरस एवं महावीर ने अनुग्रह से आपका आश्रय मिल गया, यही पावन श्लोक गूंज रहे थे।। मेरा अहोभाग्य और परिचय है । भिन्नात्मनमुपास्यव परो भवति तादृशः। प्रायिका पद्मश्री ने कहा-बेटी यह जैन चैत्यालय वति दीपं यथोपास्य भिन्ना भवति तादृशी है। यहाँ भगवान महावीर के चरणों में सभी प्राश्रय (परमात्मा की उपासना करके उन्ही के समान अहंन्त पाते है। संसार मे ऐसा कौन-सा पाप है, जिसका प्रायसिद्ध स्वरूप परमात्मा हो जाता है जैसे कि दीपक की श्चित्त न हो? तेरी गम्भीर वाणी मुख मण्डल से झांकती बाती से भिन्न होकर भी दीपक की उपासना से दीपक हुई पावनता इस बात का प्रमाण दे रही है कि तुझमें स्वरूप हो जाती है।) अपूर्व पात्मिक शक्ति का विकास हुया है। स्वर्ण जितना सहसा एक नारी का करुण स्वर सुनाई पड़ा-माँ तपता है, उतना ही निखरता है । भय मुक्त होकर अपनी आश्रय दो! स्वाध्याय रुक गया। गंजता हा श्लोक व्यथा सुना बेटी, अब तू प्रायिका पद्मश्री के संरक्षण मौन पड़ गया । करुण पुकार ने प्रायिका पद्मश्री के हृदय में है। को द्रवित कर दिया। पद्मश्री उठी, देखो द्वार पर एक मां, मैं अनन्तमती हूँ। चम्पापुर नगर-सेठ की इकथकी-हारी युवती खड़ी है। युवती ने पुन: कहा-मां लौती पुत्री। कर्मो के संयोग से इतने कष्ट हुए कि अब आश्रय दो ! और आयिका पद्मश्री का हाथ बरबस युवती जीवन के प्रति कोई ममता शेष नहीं रही है । नारी को के माथे पर चला गया। आर्यिका पद्मश्री ने कहा- भय सौन्दर्य देकर प्रकृति ने सबसे बड़ा छल किया है । सौन्दर्य मुक्त हो बेटी ! क्या कष्ट है तुझे ? किन्तु इतना सब के कारण मैंने इतने कष्ट उठाए है कि सत्य भी स्वप्न सा कुछ मुन पाने की शक्ति उस युवती में कहां थी? यूवती लगता है। कुछ माह पूर्व चम्पापुर के एक उद्यान में अपनी का अचेतन शरीर पृथ्वी पर गिरने लगा। प्रायिका ने सहेलियो के साथ प्रभु नेमिकुमार से सम्बन्धित एक लोक आश्रय दिया। शीतल जल युवती के मुख पर सीचा, तब गीत गा रही थी:कहीं युवती को सुध पायी। चेतना लौटते ही युवती मोह तनो, ममता तजी, उठी। उसने आर्यिका पद्मश्री की चरण रज मस्तक पर उनने तजे है सकल परिवार जी। चढ़ायी और कहा-मा नमोऽस्तु । प्रायिका पद्यश्री ने प्रन व्याही राजुल सजी, युवती के मस्तक पर अपना वरदानी हाथ रखा और वो तो जाए चढ़े गिरनार जी। शान्त, संयत, गम्भीर स्वर मै कहा-धर्म चिरन्तन प्रास्था किन्तु स्वप्न जल्दी ही बिखर गए । भविष्य अन्धहो, सुखी रहो। कौन हो बेटी तुम? क्या कष्ट है करमय है। होनहार होकर रहती है। उसी समय एक तुम्हे ? आकाशगामी विमान उतरा और एक बलिष्ठ पुरुष अनेक युवती के दोनो हाथ श्रद्धा से जुड़ गए, मस्तक झुक सहेलियो के बीच से मुझे उठा ले गया। जब सूर्य की गया। उसे ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने उसकी रचना मे सब लालिमा प्रस्ताचल में सिमट रही थी, वह मुझे एक निर्जन कुछ लगा दिया है। वह बड़े ही करुण स्वर में बोली-मां वन में छोड़ गया, जाते समय उसने कहा-मैं विद्याधरों मुझ प्रभागन का परिचय जानकर क्या करेंगी ? भगवान के राज्य किन्नरपुर का स्वामी हैं। किन्नरपुर समीप है।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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