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________________ परमात्म प्रकाश टीका का कर्ता जीवराज नहीं, श्वे० धर्मसी उपाध्याय हैं २१ ध्यान से पढ़ने पर मातम होता है कि जीवराज ने बहुत कीर्ति सुंदर था। इन दोनो विद्वान गुरु शिष्यों का ज्ञान प्रादर के साथ कहा कि परमात्मप्रकाश का वातिक विवरण और रचनात्रों की सूची हमारे धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली (वालबोध टीका) बना लें तो धमर्सी उपाध्याय ने सं० में द्रष्टव्य है। कीतिसुंदर की एक रचना वागविलास कथा १७६२ में बना दी । यथा : संग्रह मे काफी वर्ष पहले वरदा मे प्रकाशित कर चुका है। पुर लो लाही में प्रसिद्ध राजसभा को रूप । परमात्म प्रकाश एक बहुत ही सुन्दर प्राध्यात्मिक ग्रन्थ जीवराज जिन धर्म में, समझ प्रात्म रूप ॥३॥ है । खरतरगच्छ के १८वी शताब्दी के कवि धर्म मदिर ने करि प्रादर बहु तिन कह्यो, श्री ध्रमसी उपसाव । परमात्म प्रकाश चौगाई नाम का राजस्थानी में पद्यानुवाद परमात्म परकास को, वातिक देह बनाय ॥४॥ स० १७४२ के कार्तिक सुदि ५ को बनाया है। प्राशा है पद्यांश ८वें में कीतिसुंदर नाम पाता है सभवतः वह परमात्म प्रकाश के नये सस्करण मे धर्म मन्दिर और धर्मसी उपाध्याय के शिष्य के नाम का सूचक हो। धर्मसी दोनो की रचनामो का भी उपयोग कर लिया जायाय धर्मसी इवे. खरतरगच्छ १८वीं शताब्दी जायगा । धर्मसी उपाध्याय के परमात्म प्रकाश वाले बोध के उल्लेखनीय विद्वान थे इनकी लघु रचनाओं का संग्रह टीका की अन्य कोई प्रति किसी दिगम्बर शास्त्र भडार में हमने धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली के नाम से सादूल राजस्थानी हो तो इसके सपादन में सुविधा रहेयी। श्वे. भडारो में रिसर्च इंस्टीटघट बीकानेर से प्रकाशित किया है अापका इसकी प्रति अभी तक देखने को नहीं मिली जबकि दीक्षा नाम धर्मवद्धन रखा गया था। इनके शिष्य कान्हा घमंसी जी की अन्य सभी रचनाएं श्वे. भडारो में जी भी अच्छे कवि और विद्वान थे उनका दीक्षा नाम प्राप्त है। श्रमण जैन मजन प्रचारक संघ नयो दिल्ली। रविवार ८ अप्रैल, १९७३ को सायं ६ बजे श्री महावीर जयन्ती के पावन पर्व पर 'श्रमण जैन भजन प्रचारक संघ' द्वारा आयोजित सांस्कृतिक सन्ध्या एवं 'श्री वृषभदेव सगीत पुरस्कार' समर्पण समारोह का उद्घाटन करते हुए श्री मोहम्मद शफी कुरेशी उप-मन्त्री रेलवे मन्त्रालय मारत सरकार ने कहा कि भगवान महावीर का संदेश सूर्य के प्रकाश की तरह समस्त मानव जगत के लिए है, किसी वर्ग विशेष का नहीं, जैन मत की भी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि हजारों वर्ष की जरूमी मानवता के लिए उसने मुहब्बत के रिश्ते जगा दिये, हमी ने उनके पैगाम भारत को सीमाओं के भीतर जकड़ रखे हैं। श्री कुरेशी ने कहा कि तीर्थकर महावीर ने वैशाली में जहां जन्म लिया था, वह भूमि मैंने देखी है, श्रमण संघके नौजवानों को छह वर्ष पूर्व जैन भजनोंके प्रचारके लिए जो प्रेरणा प्राप्त हुई थी उसे वह बड़ो मेहनत से आगे बढ़ा रहे हैं, मुझे पूरी उम्मीद है कि वे इसमें सफल होंगे। ग्राज के नौजवान पाप म्यूजिक व लम्बे बालों के शौकीन हो गये हैं। आज वे यूरोप के पंगाम हमें सूनाते हैं, हमारे लिए यह पतन का मार्ग है, जिस दिन हम भारतीयों ने अपना सांस्कृतिक मार्ग छोड़ दिया, हमारा पतन हो जायगा। इस अवसर पर उपमन्त्री श्री मोहम्मद शफ़ी कुरेशी ने 'गीत वीतरागप्रबन्ध' ग्रंथ के लेखक डा. प्रादिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये को 'श्री वृषभदेव संगीत पुरस्कार'का २५००) रुपया एवं पदक भेंट किया।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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