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________________ दादू पंथी संत गोविंददास रचित जैनधर्म संबंधी ग्रंथ चौबीस गुण स्थान चर्चा श्री प्रगरचन्द नाहटा राजस्थान गुजरात, और दक्षिण मारत में जैन धर्म प्रारम्भ का काफी प्रभाव रहा है लोक जीवन पर प्राज भी उस गुण छियालीस करि सहित, देव परहंत नमामि । नमो पाठ गुण लिये, सिद्ध सब हित के स्वामी ॥ प्रभाव की छाप दिखाई देती है। दक्षिण भारत के सबंध छतीस गुणांकरि, विमल प्राप प्राचारिज सोहत । में तो मेरी पूरी जानकारी नहीं पर राजस्थान और गुज नमो जोरि कर ताहि, सुनत बानी मन मोहत ।। रात में तो जै नेतर संत सम्प्रदायों पर जैन धर्म का प्रभाव पर उपाध्याय पच्चीस गुण सदा बसत अभिराम है। अत्यन्त स्पष्ट है उनके माचार-विचार पौर साहित्य में गुण पाठ वीस किरि साधु है, नमो पंच सुख धाम है ।। बहुत सी बातें ऐसी पाई जाती हैं । जो जैन धर्म से संब अन्तिम घित हैं। सन्त सम्प्रदाय मे से भी समन्वयबादी और संस्कृत गाया कठिन, प्ररथ न समझ्यो जाय। सद विचार प्राचार के पोषक रहे है । प्रतः पास-पास जो ता कारण गोविन्द कवि, भाषा रची बनाय ।। जैन मुनियों और धावको का पाना-जाना व निवास रहा जोया को सीखं सुन, प्ररथ विचार जोय । उससे वे स्वभावतया हो प्रभावित हुए । कई जैन कथा सभा मोह प्रादर लहै, मुरिख कहै न कोय ॥ प्रसंग उन्हें बहुत रोचक लगे । उनके सम्बन्ध मे जैनेतर सन्त अक्षर प्ररथ यामें घटि वढ़ि होय । सम्प्रदायो के कवियो की रचनाएं भी बनाई है। उनमें से बुध जन सर्व सुधार ज्यो, माफ कीजिये सोय ॥ प्रठारासै ऊपरै गन, इक्यासो जबसर प्रसंगको मुनि हजारीमल स्मृति प्रथमे हमने प्रका पोर । फागुण सुदी दशमी सुतिथि शशि वासर शिरमौर ।। शित किया है जो अन्तिम शान्ति मोक्षगामी जम्ब स्वामी वादू जी को साधु है, नाम जो गोविन्दवास । के चरित सम्बन्धी रचना है इसी तरह १८ नाता और तान यह भाषा रची, मनमांहि धारि उल्हास ।। बगचल की व था जैन समाज मे काफी प्रसिद्ध है। उसे नासरदा ही नगर में रच्योज भाषा ग्रंथ। भी सन्त कवियो ने अपना ली है । रामस्नेही सम्प्रदाय के जो याक सीखें सुणं, लहै जैन मत प्रन्थ ।। कवि रामदास ने अपनी भक्तमाल मे २४ तीर्थ धरों प्रादि उपरोक्त उद्धरण में ग्रंथ का नाम स्पष्ट रूप से नही का विवरण दिया है अभी राजस्थान के जैन शास्त्र दिया है। पर अन्त का जो पहला पद्य उद्धत किया गया भंडारो की ग्रंथ सूची भाग पांच से एक विशेष जानकारी है इससे मालम होता है कि इस विषय के किसी जैन मिली है कि दादूपथी संत गोविन्ददास ने २४ गुण स्थान संस्कृत ग्रथ के प्राधार से इस ग्रन्थ की रचना हुई है मूल चर्चा नामक जैन धर्म सम्बन्धी हिन्दी मे पद्य वद्ध रचना संस्कृत ग्रन्थ कौन सा है कब कितने प्रकाशित किया। ये नाशादा नगर मे स० १८८१ के फागुन सुदी दशम सोम. जानकारी प्रकाश मे पानी चाहिए वैसे गुण स्थान तो १४ वार को बनाई है इसके ८ पत्रों की एक प्रति दिगम्बर होते है पर इस सूची में २४ गुण, २४ भाषा चर्चा नामक जैन मंदिर नेमिनाथ टोडा रामसिंह (टोंक) के शास्त्र रचनामों की काफी प्रतियों का विवरण छपा है उनमें से भण्डार मे है । उपरोक्त ग्रथ सूची के पृष्ठ ३४ में इसका मूल प्राकृत ग्रन्थ प्राचार्य नेमिचन्द्रका है सम्भवतः उसी के विवरण इस प्रकार छपा है । प्राधार से अन्य रचनायें बनाई गई हों। सीस गणस्थान चर्चा-गोविन्ददास । पत्र संख्या । .गोविन्ददास की रचना छोटी ही है अत: अनेकान्त वीर०१.४४ इंच । भाषा हिन्दी । विषय गुणस्थानों को वाणी प्रादि पत्रिकामों में उसे प्रकाशित कर दी जानी चर्चा। र०काल स. १८५१ फाल्गुन सुदी १० । ले० बहुत ही अच्छा हो । एक जनेतर कवि ने जैन धर्म संबंधी काल स. १८०० पूर्व वेष्ठन सं० ४३-११९ प्राप्ति रचना की है यह बहुत ही उल्लेखनीय बात है। ऐसी स्थान दि० जैन मंदिर नेमिनाथ टोडररायसिंह (टोंक)। अन्य रचनामों की भी खोज होनी चाहिए।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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