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वर्तना की सर्जना : एक अध्ययन
सन्मतकुमार जैन
'वर्तना' जैन सिद्धांत का एक पारिभाषिक शब्द है। का एक मात्र कारण यही हो सकता है जैसा कि अकलंक कालके दो भेदों में परमार्थकाल का लक्षण वर्तना बतलाया ने एक तटस्थ प्राचार्य की, जो संभवतः पाणिनि व्याकरण गया हैं। वय॑ते वर्तनमात्रवा वर्तनेति' या वर्तनशीला से सम्बन्धित थे, शङ्का के माध्यम से कहा है कि युट् में वर्तना यह वर्तना का अर्थपरक विभाजन है। V वृत्ति टित् होने से स्त्रीलिंग में डीप् प्रत्यय प्राप्त होता है। 'धातु से कर्म या भाव में 'युट' प्रत्यय करने पर वर्तना डीप प्रत्यय प्राप्त होने पर वर्तना के स्थान पर वर्तसी शब्द बन ता है । ऐसी प्राचार्य पूज्यपाद की मान्यता है परन्तु शब्द बनेगा, जबकि युच् अथवा युक् प्रत्यय मानने पर परवर्ती प्राचार्य प्रकलंक देवके अनुसार युट् प्रत्यय के स्थान ऐसा नही होता तो फिर आचार्य पूज्यपाद का युट् प्रत्यय पर युच् प्रत्यय करके वर्तना शब्द बनता है। प्रत्यय भेद वाला प्रयोग अनुचित सिद्ध होता है ? नही ? प्राचार्य की तीसरी मान्यता प्राचार्य विद्यानन्द की है। इन्होने पूज्यपाद का प्रयोग अनुचित तब होता जब कर्म और भाव 'वृत्ति' धातु से कर्म में 'युक्' प्रत्यय करने पर तथा के स्थान पर करण अथवा प्रधिकरण में युट् प्रत्यय किया तच्छील अर्थ में युच् प्रत्यय करने पर वर्तना की सर्जना जाता और उसका विग्रह वर्ततेऽनया अस्या वा वर्तना मानी है।
हो जाता परन्तु प्राचार्य पूज्यपाद ने ऐसा नहीं किया है। एक ही परम्परा के प्राचायाँ में प्रत्यय भद क्या इस प्रकार अकलंक देव ने यद्यपि प्राचार्य पूज्यपाद हमा १ क्या व्याकरण के ग्रन्थो मे युक्, युच् अथवा युट् का समर्थन करके उनके प्रयोग को स्पष्ट कर दिया है तीनों प्रत्यय वर्तना शब्द की सिद्धि कर सकते है ? क्या तथापि "णिजन्ताद्यचि वर्तना' वार्तिक बनाकर यूट की यक, युच अथवा युट् प्रत्यय हस्तलिखित पुस्तक लिखते समय सशयात्मक वत्ति को सदा के लिए समाप्त भी कर दिया विद्वानों की भूल से परिवर्तित हो गये? सर्वार्थसिद्धि में है। इस प्रकार प्राचार्य पूज्यपाद के परवर्ती अकलंक देव जब प्राचार्य पूज्यपाद युट् प्रत्यय मान चुके थे तब परवर्ती तो 'यट प्रत्यय से परिचित थे, परन्तु उनके परवर्ती प्रकलंक देव और विद्यानन्द ने युटु प्रत्यय क्यों नहीं माना? प्राचार्य विद्यानन्द ने यूट के सम्बन्ध में कोई चर्चा नहीं क्या प्रा०पज्यपाद का प्रयोग गलत था? इत्यादि नाना चलाई है तो फिर इन्होंने यक प्रत्यय क्यो माना ? संभप्रश्न मस्तिष्क में अनायास ही उद्भूत हो जाते हैं। वत' 'यूक' प्रत्यय 'युट' प्रत्यय ही होना चाहिए जो कि
उपयुक्त प्रश्नों पर जब गूढ़ दृष्टि डाली जाती है तो हस्तलिखित पस्तक मे किसी विद्वान् की लेखनी से लिख यह तो निश्चित हो जाता है कि युच् प्रत्यय प्रकलंक देव गया होगा क्योंकि 'वर्तनशीला वर्तना' वाले विभाजन में और विद्यानन्द दोनों को मान्य है। युट् प्रत्यय न मानने
मा० विद्यानन्द को यूच् प्रत्यय मान्य है ही। 'युक्' प्रत्यय १. कालो हि द्विविधः परमार्थकालो व्यवहारकालश्च
व्याकरण में होता है या नही तथा इसके द्वारा वर्तना सर्वार्थसि. श२२.
शब्द बनता है या नहीं यह व्याकरण ग्रन्थों में खोज का २. परमार्थकालो वर्तना लक्षणः । वही. ५।२२. विषय है। ३. वृत्तर्णिजन्ताकर्मणि भावे वा युटि स्त्रीलिंगे वर्तनेति यह 'वर्तना' की सर्जना के सम्बन्ध मे एक संक्षेप रूप
भवति वय॑ते वर्तनमात्र वा वर्तना" वही. श२२. अध्ययन है। ४. णिजन्ताधुचि वर्तना रा वार्तिक ५।२।२
६. करणाधिकरणयोर्वर्तनेति चेत्; युटि सति डीप्रसङ्गः" ५. वृत्तयेन्तात्कर्मणि भावे वा युक्त. श्लो. वा. २२२. राजवा. ५।२२।१ भाष्य ।