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________________ महावीर निर्वाण संवत् मुनि विद्यानन्द जी भगवान महावीर का निर्वाण कब हुआ, इस सम्बन्ध ६०५ वर्ष ण मास का यही मन्तर दिगम्बरों में भी में जैनों में गणना की एक अभेद्य परम्परा विद्यमान है मान्य है । हम यहां तत्सम्बन्धी कुछ प्रमाण दे रहे हैंऔर वह श्वेताम्बरों तथा दिगम्बरों से समान ही है। (१) पणहस्सयबस्सं पणमासजुव गोयम वीरणिवुइयो। "तित्थो गालीय पन्ना" में निर्वाण काल का उल्लेख करते सगराजो तो कक्की बदुणव-तियमहिय सगमासम् ।। हुए लिखा है -नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती रचित त्रिलोकसार तं यणि सिदिगमो, परहा तित्थंकरो महावीरो। (२) वर्षाणां षट्शी त्यक्त्वा पंचानो मासं पचकम् । यणि भवंतीए, अभिसित्तो पालम्रो शया । ६२० मक्ति गते महावीरे शकराजस्सतोऽभवत् ॥६०-५४६ पालग रणो सट्टी, पुण पण्णसयं वियाणि गंदाणम् । -जिनसेनाचार्य रचित हरिवंश पुराण । मरियाणं सट्रिसयं, पणतीसा पूस मित्ताणं (तस्स)॥६२१ (३) णियाणे जिणे छन्वास सबेसु पंचविरिसेसु । बलमित्त भाणुमित्ता, सट्टा चत्ताय होंति महसेणें । पण मासेसु गवेसु संजादो सगणियो महवा ॥ गहन सयमेगं पुण, पडिवन्नो तो सगो राया ॥६२१ -तिलोय पण्णत्ति भाग १, पृ० ३४६ पंचय भासा पंच प, बासा छच्चेव होंति वाससया। (४) पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति बायसया । परि निम्म अस्सऽरिहतो, तो उत्पन्नो (पडिवनो) सगकालेण य सहिया यावे यवो वदो रासी॥ सगोराया ॥६२३ (जिस रात मे भर्हत् महावीर तीर्थङ्कर का निर्वाण पवला (जैन सि. भवन पारा) पत्र ५३७ वर्तमान ईस्वी सन् १९७३ में शक संवत् १६६४ है । हमा, उसी रात (दिन) मे भवन्ति में पालव का राज्या इस प्रकार ईस्वी सन् और शक संवत्सर में ७६ वर्ष का भिषेक हुआ।) ६० वर्ष पालक के, १५६ नन्दों के, १६० मोर्यो के, अन्तर हुमा । भगवान् महावीर का निर्वाण शक संवत् से ३५ पुष्यमित्र, ६० बलमित्र, भानुमित्र के, ४० नयःसेन ६०५ वर्ष ५ मास पूर्व हुमा । इस प्रकार ६०३ में से ७६ के और १०० वर्ष गर्दै भिल्लों के बीतने पर शक राजा घटा दन पर महावार का निवाण इस्वी पूर्व ५२७ म सिद्ध होता है। का शासन हुमा। महन् महावीर को निर्वाण हुए ६०५ वर्ष और ५ केवल शक संवत् से ही नहीं, विक्रम संवत् से भी मास बीतने पर शक राजा उत्पन्न हुआ।) महावीर निर्वाण का अन्तर जैन साहित्य में वर्णित है। यही गणना अन्य जैन ग्रन्थों में भी मिलती हैं। हम ___ तपाच्छ पट्टावलि में पाठ पाता हैउनमें से कुछ नीचे दे रहे हैं : जंरणि कालगमो, परिहा तिरपंकरो महावीरो। १..श्री बीर निर्वृतः पभिः पंचोत्तरः शतः। सं राण अवणि बई, पहिसित्तो पालयो राया ॥१ शाक संवत्सरस्यषा प्रवृत्तिभरतेऽभवत् ॥ वट्ठी पालय रणो ६०, पणवग्णालयं तु होइनवाणम् । मेरु तुगाचार्य रचित विचार श्रेणी (जैन साहित्य अट्ठ सयं मुरियाणं १०८, तीसच्चियं पूसमित्तस्स ३०॥२ संशोधक-खंड २, अंक ३-४१०४। बलमित्त माणुमित्त सट्टी ६०, बरिसाणी वतन हवाणे। २. छहिं वाताण सएहि पंचहिवासेहि पंच मासेहि। तह गाभिल्लर तेरस १३ बरिस सग्गस्स पाउबरिसा॥ ममणिबाण गयस्सर पाविसह समोराया। श्री विक्रमादित्यश्च प्रतिबोषितस्तद्राज्यं तु श्री वीर नेमिचन्द्र रचित 'महावीर परिचय' श्लो. २१९६ पत्र १४-१ सप्ततिः चतुष्टये ४७० संजातं ।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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