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________________ २०८, वर्ष २६, कि० ४-५ अनेकान्त के लेखक व प्रकाशक धन्यवाद के पात्र है। रंगों की पांच पद्रियों से निर्मित है। सबके मध्य में सफेद, ४. तीर्थडर वर्षमान महावीर-लेखक डा. जय- उसके ऊपर पीली और उसके ऊपर लाल तथा नीचे हरी किशन प्रसाद खण्डेलवाल, प्रकाशक पूर्वोक्त, मूल्ब १ रु. और उसके नीचे नीली पट्टियां है। ये पाच रंग पाच पर५० पैसे। मेष्ठियों के बोधक है-अरहंत का धवल, सिद्ध का लाल, प्रस्तुत पुस्तक में सर्वप्रथम वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ प्राचार्य का पीला, उपाध्याय का श्याम और साधु का से रामधारी सिंह दिनकर विरचित 'वैशाली' शीर्षक माती आकाश के समान नीला रंग माना गया है। इनमे मध्यगत कविता उद्धृत की गई है। पश्चात् तीर्थङ्कर वर्धमान पट्टी पर बीच में स्वस्तिक का चिह्न अकित है। इस महावीर के नाम, जाति एवं गोत्र आदि की निर्देशक एक . स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु और उसके ऊपर अर्घ चन्द्र उपयोगी तालिका दे दी गई है। आगे महावीर के पंच है। चार कोणो वाला वह स्वास्तिक चार गतियो का कल्याण विषयक एक सस्कृत कविता है। पश्चात् महा सूचक है। ऊपर के तीन बिन्दुओं से रत्नत्रय अभिप्रेत है। वीर का जो विशेष परिचय प्रादि दिया गया है वह सब तथा अर्घ चन्द्र से ईपत्प्राग्भार नामक सिद्धक्षेत्र अभिप्रेत प्रायः पूज्य मुनि विद्यानन्द विरचित 'तीर्थङ्कर वर्धमान है, जो अर्ध चन्द्र या उत्तान धबल छत्र के समान है। के अन्तर्गत है। यहां प्रसिद्ध विद्वान् राहुल साकृत्यायन, इसका अभिप्राय यह हुआ कि चतुर्गतिमय संसार मे परिडा. राजबली पाण्डेय और डा. योगेन्द्र मिश्र के अभि भ्रमण करने वाला मुमुक्षु जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और मतानुसार सठियांव फाजिलनगर-पावा को भगवान् महा सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रय का आश्रय लेकर उस ससार से वीर की निर्वाणभूमि माना गया है। मुख पृष्ठ पर जो मुक्ति पा लेता है। इस प्रकार इस झण्डे का उक्त स्वरूप मुक्ति बहुत विचार-विमर्श के साथ निश्चित किया गया है जो जीवन्त स्वामी की प्रतिमा और दीक्षित महावीर का तिरगा दिगम्बर, मूर्तिपूजक श्वेताम्बर, स्थानकवासी और तेरापथी चित्र दिया गया है वह विशेष आकर्षक है। इस प्रकार इन चारों ही जैन सम्प्रदायों के अनुकल है तथा उन सबमें पूर्वोक्त 'तीर्थङ्कर वर्धमान' से इसमें कुछ विशेषतायें भी है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक और प्रकाशक को साधुवाद है। एकता को स्थापित करने वाला है। पुस्तक का मुद्रण और साज-सज्जा भी सराहनीय है। प्रस्तुत पुस्तिका में इसी झण्डे के स्वरूप को दिखलाते ५. जैन शासन का ध्वज-सम्पादक डा. जयकिशन- हुए उसके फहराने आदि का भी बिवेचन किया गया है। प्रसाद खण्डेलवाल एम. ए., एम. एल. वी, पी-एच. डी., प्रसंगवश यहां धर्मचक्र का निर्देश करते हुए अन्यत्र उल्लिप्रकाशक वीर निर्वाण भारती मेरठ । मूल्य एक रुपया। खित आदि तीर्थङ्कर ऋषभ देव और भरत चक्रवर्ती के नाम पर प्रसिद्ध भारत की भी चर्चा की गई है। इस समस्त जैन समाज में अभी तक किसी एक रूप में प्रकार पुस्तक उपयोगी व पठनीय है। प्रत्येक जैन गह में झण्डे का प्रचलन नही था, वह अनेक रूपो में देखा जाता उस झण्डे के साथ यह पुस्तक रहना चाहिए। ऐसी उत्तम था। श्री मुनि विद्यानन्द जी, मुनि कान्तिसागर जी, मुनि । पुस्तक के लेखक और प्रकाशक का आभार मानना सुशीलकुमार जी और मुनि महेन्द्रकुमार जी इन चारों चाहिए। सम्प्रदायों के सन्तो ने परस्पर विचार विनिमय के साथ झण्डे की एकरूपता का निर्धारण किया है। यह झण्डा पाच -बालचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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