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साहित्य-समीक्षा
१. तीर्थकर वर्धमान-ले. मुनि श्री विद्यानन्द जी, प्रस्तुत पुस्तक में मुण्डिका, सीता, राजुल, चेलना, प्रभावती, प्रकाशक-श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति ४८, अनन्तमती, काललदेवी, नीली और मनोवती इन नौ महिशीतला माता बाजार, इन्दौर-२ (म. प्र., मूल्य तीन रु०। लामों के जीवन सम्बन्धी किसी विशिष्ट प्रसंग को लेकर
प्रस्तुत पुस्तक विद्वान् व कुशल वक्ता श्री मुनि विद्या- रोचक कथामें लिखी गई है । वीर चामुण्डराय की माता नन्द जी के द्वारा गम्भीर अध्ययन व अनुसन्धानपूर्वक काललदेवी को छोड़कर शेष सभी महिलायें पौराणिक है। लिखी गई है। पुस्तक में भगवान् महावीर के जीवन से यद्यपि उन कथाओं का सम्बन्ध पुराणों से है, फिर भी सम्बन्धित जिस महत्त्वपूर्ण सामग्री को उपस्थित किया लेखक ने उन्हें कुछ नया रूप दिया है, इससे वे सभी गया है वह मननीय है, उससे कुछ नवीन तथ्य भी प्रकाश कथाये रोचक बन गई है। बीच बीच में कुछ चित्र भी में आये है। वैदिक साहित्य----जैसे पद्मपुराण, भागवत व दे दिये गये है। सज्जा व छपाई भी ठीक हुई है। इन महाभारत प्रादि-में जो तीर्थङ्करों के नामोल्लेख पूर्वक कथाग्रो के लेखक व प्रकाशक धन्यवादाह है। उनके चरित्र का चित्रण एवं तपश्चरण आदि का वर्णन ३. भारतीय संस्कृति और श्रमण परम्परा-लेखक किया गया है उसका संकलन भी कुछ प्रस्तुत पुस्तक में डा. हरीन्द्रभूषण जैन, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, हुआ है। उससे जैन धर्म की प्राचीनता का बोध होता प्रकाशक वीर निर्वाण भारती मेरठ, मूल्य ७५ पैसे। है। पटना पुरातत्त्व संग्रहालय से प्राप्त तीर्थङ्कर की इस छोटी सी पुस्तिका मे लेखक ने श्रमण की निरुक्ति को प्रतिमा के चित्र से जैन धर्म की ऐतिहासिक प्राचीनता प्रगट करते हुए बतलाया है-'श्रममानयति पञ्चेन्द्रियाणि सुनिश्चित है। सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता श्री डा. वासुदेव- मनश्चेति श्रमण., श्राम्यति ससारविषयेषु खिन्नो भवति शरण अग्रवाल के मतानुसार वह प्रतिमा मौर्यकालीन है। तपस्यति वा स श्रमणः' अर्थात् जो इन्द्रियों व मन को इसके अतिरिक्त महावीर कालीन भारत के मानचित्र, श्रान्त करता है, अथवा संसार के विषयो में सेद को जन्मकुण्डली, मौर मास से कालगणना, तीर्थङ्कर महावीर प्राप्त होता है, अथवा तपश्चरण करता है, उसे श्रमण
और महात्माबुद्ध के तुलनात्मक अध्ययन में उपयोगी कहा जाता है। प्राकृत 'ममण' शब्द का वह संस्कृत रूप तालिका तथा अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभगी आदि से है। समण का रूप जैसे 'श्रमण' होता है वैसे ही उसका सम्बद्ध सुबोध निबन्धों के समावेश से पुस्तक का महत्त्व संस्कृत में शमन और समन भी होता है। शमन का अर्थ बढ़ गया है । जीवन्त स्वामी की प्रतिमा का चित्र भी एक है कषायो को शान्त करने वाला और समन का अर्थ है नवीन विशेषता का सूचक है। इतनी उपयोगी पुस्तक के समस्त प्राणियो मे समता भाव को रखने वाला। ये सब प्रकाशन में जो प्रूफ संशोधन सम्बन्धी अधिक अशुद्धियां साधु की ही विशेषतायें है। निरुक्ति के पश्चात् यहाँ रह गई है वे खटकती है। प्रमाणरूप मे उद्धृत किये प्राकृत आदि १० भाषाओं में थमण के रूपों के संग्रह के गये श्लोक एवं गाथाएं आदि प्राय. सब अशुद्ध है। साथ वैदिक व प्राकृत आदि के प्राश्रय से उसके पर्यायपुस्तक की छपाई आदि और सब उत्तम है। पूज्य वाची शब्दों का भी संकलन किया गया है। स्थानांग में मुनि विद्यानन्द जी की यह कृति स्तुत्य है। वीर श्रमण को सर्प और पर्वत आदि की उपमा दी गई है निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति ने उसे प्रकाशित करके उनका विश्लेषण करते हुए श्रमण के भेद व परम्परा सराहनीय कार्य किया है।
आदि का अच्छा विवेचन किया गया है। इस प्रकार २. नारी पालोक की नौ किरणे-लेखक मिश्रीलाल विद्वान् लेखक ने श्रमण के सम्बन्ध मे सप्रमाण सुन्दर जैन एडवोकेट गुना, प्रकाशक उपर्युक्त, मूल्य ३ रु० । विचार किया है । पुस्तक पठनीय व संग्राह्य है। इस कृति