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१९२, वर्ष २६, कि० ४-५
अनेकान्त
(७२) इस घटनासे पवनजयके,
दिलपर असर पड़ा भारी। लगा कोसने अपने को ही,
मैं हूँ दुष्ट बड़ा भारी॥
मेरे हो प्रभु प्राणाधार । जीवन धन हो आनंदघन हो, सरबस हो मेरे सरदार ॥
(८०) भूल चूक अपराध हुए हों,
" मुझसे उन्हें क्षमा करिए। हूँ अबला अनजान मूढ़ में,
मेरे दोष न हिय धरिए॥
मम वियोगमें मेरी प्यारी
क्या क्या दुख न उठाती है। इस चकवीसे भी वह ज्यादा,
बार बार बिलखाती है।
हूँ हत्यारा, हूँ मैं पापी,
बड़ा घातकी हूँ मैं कर। जो अबला को दुग्ब देने को, रहता हूँ उससे अति दूर ।।
(७५) औरों से बाते करता हूँ,
घुल घुल कर प्यारी प्यारी। पर अपनी सच्ची प्यारी को,
___ कहता हूँ दुष्टा नारी ॥
निज को धिक धिक कह पछताता,
चला गया प्यारी के पास । लगा मॉगने क्षमा दीन हो,
मन में होता हुआ उदास ॥
सुनी अंजना की मृदु वाणी,
हा पवनजय बड़ा प्रसन्न । हँसी खुशी में समय बिताया,
मा बापों से रह प्रच्छन्न ।
(८२) वीर वेश में सजा हुअा था,
जाना था रण को चढ़कर। पीछे जाने लगा सैन्य में,
तभी अजना ने नमकर-॥
(८३) 'स्वामी की जय हो जय हो' कह,
जय-कंकण बाँधा कर में । "तेज नाथ का ग्रहण किया है,
और कहा-"अपने उर में" ॥
(८४) "इसी लिए स्वामी विनती है,
निज मुद्रा मुझको दीजे । रिपु को जीत नाम पा जल्दी,
दासी की फिर सुध लीजे ॥"
(८५) दासी नही सुन्दरी तू है,
मेरे प्राणों की प्यारी। चिन्ता न कर शीघ्र आता हूँ, रिपुबल मर्दन कर प्यारी॥
(८६) यों कह निज मुद्रा दे खुश हो,
गया पवनंजय निज दल में । इधर अंजना खुशी हुई अति,
पति प्रेम पाकर दिल में ॥
चरणो में गिर पड़ी अजना,
मेरे जीवन, मेरे प्रान । मेरे कर्मों का दूषण था,
नही आपका दोष सुजान ।
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मेरे मोती, मेरे माणिक,
चन्दा हो मेरे प्रभु आप । मेरे सब शृगार आप हो,
मेरे सब भूषण हो आप ॥
(७६) मैं इन चरणों की दासी हूँ,