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________________ १६०, वर्ष २६, कि० ४-५ अनेकान्त (४२) विद्युत्प्रभ को ब्याही जाती, तो बाई यह सुख पाती। उसके संग मिलन होता तो, धन्य धन्य यह कहलाती" । रचा गया मंडप सुविशाल । उसमें पाणिग्रहण रीति से, हुआ, हुआ जब शुद्ध सु-काल ॥ ऐसी अपनी निन्दा सुनकर, हमा पवनंजय क्रुद्ध महान् । और अंजना का दग मूंदे, लख आपे में जरा रेहा न ।। (४४) कहने लगा और मन ही मन, ___ "दुष्टा निन्दा सुनती है। विषरस भरे कनक घट की सी, मुझको तो यह दिखती है । आनंद हर्ष मनायासबने, रडे वहाँ फिर दिन दो चार । गये सभी फिर निज निज घर को, ___ कर अपना लौकिक व्यवहार ।। (५२) अपनी सुता अंजना को भी, नप महेन्द्र ने विदा किया । हाथी-घोड़े, नौकर-चाकर, माल-खजाना खुव दिया ।। "इसको सजा मिले सो अच्छा, उसका है बस यही उपाय" । पर, इसने बिलकुल नहिं सोचा, "यह तो मुझ पर रही लुभाय" ।। "प्रथम सखी की वाणी सुनकर, मेरा ही शुचि ध्यान लगाय । बाह्य विकार रहित हो बैठी, रोक इन्द्रियों का समुदाय ।। (४८) इससे इसने नही सुने कुछ, सखी मिश्रकेशी के बेन । ध्यानमग्न योगीसम इसने, ___ मूंद लिये हैं दोनो नन" ।। (४६) चले वहाँ से गये पवनजय, चढ़ विमान पर घर आये। सारी रात जागे, भ्रमवश होप्रार्तध्यान कर दुख पाये ।। (५०) मानसरोवर के तट ऊपर, साथ अंजना पवनजय को, लेके घर आये प्रह्लाद । मगल बाजे बजे मनोरम, घर घर हुए हर्प के नाद ।। (५४) थोड़े दिन तक तो परिजन ने, पाया नही यही संवाद । नही अजना को छूता है, पवनकुमार धार सुविषाद ।। (५५) पर धीरे धीरे यह सबको, जान पड़ा दुख है भारी। सब सुखयारी समझे जिसको, वही अजना दुखियारी ॥ (५६) रहती रात दिवस चिन्ता में, कब देगे दर्शन स्वामी। कव होगी पूरी अभिलाषा, कब पाऊंगी सुख नामी ॥ (५७) रोती कभी कभी दुख पाती, लेती कभी दीर्घ निश्वास ।
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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