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________________ १८४ वर्ष २६, कि० ४-५ अनेकान्त मैं तुम्हारी रक्षा नहीं करूंगा। मैं किसी की रक्षा विश्वनाथ के ठीक याद है.'पत्र पढ़कर उसके अन्तर करने में विश्वास नहीं करता। यह दूसरे को छोटा और में पहिली प्रतिक्रिया एक कसक के रूप में हुई थी पर दुर्बल समझने की भावना को जन्म देता है। प्रकट मे उसने नीरु को तार द्वारा वधाई भेजी थी। वह नीरु ने उसी क्षण कहा 'तुमनेयह कैसे समझा कि बिवाह मे गया था और पूरी ईमानदारी के साय उसने मैं तुमसे अपनी रक्षा करवाना चाहती हूँ। यह राखी तो नीरु को बता दिया था वह उस पर गर्व करता है और इस बात की निशानी है कि तुम अपनी रक्षा कर सको। सदा करता रहेगा। क्या मतलव ? नीरु ने हँसकर कहा था 'सदा की बात क्यों करते मतलव स्पष्ट है, जो उदात्त विचार तुम्हारे आज है, हो ? जिन स्वप्नो का तुम निर्माण कर रहे हो तुम उनको जीतने ठीक है। मै मानता हूँ। मुझे वर्तमान मे रहना की शक्ति पा सको। चाहिए, पर नीरु, इस दृष्टि से तो तुम्हारा प्रेम सच्चा था। ___ क्षण भर के लिए वे सब चकित रह गये । दूसरे क्षण उस क्षण था। नरेश ने खिलखिला कर कहा 'शाबाश ! नीरु तुमने विश्वनाथ हँसा कैसा रहस्य है । एक क्षण का सत्य विश्वनाथ को खूब छकाया । जनाब बड़े हाजिरजवाब दूसरे क्षण का असत्य बन जाता है। बनते थे। विश्वनाथ हारकर भी मुक्त हेंसी हँसा था। आज भी ___ अनजाने ही यह कठोर व्यग्य उसके मुंह से निकल सोचते-सोचते विश्वनाथ हँस पड़ा पर वह मुक्त हँसी नही गया था। उस क्षण भी उन्होने उसे हँसी मे उडा दिया थी, जैसे उसमे थकान भर गई हो। उसने मुट्ठी खोलकर था। आज भी विश्वनाथ ने हँसना चाहा पर कहानी आगे राखी को देखा और फिर एक बार बही थकी हुई हँसी। बढती चली गई। नीरु का विवाह हुआ। सगीत के क्षेत्र उसके कुछ दिन बाद, जब वह वहाँ से चला आया, उसे मे उसकी ख्याति वढी पर वह कला और पति दोनो को नीरु का पत्र मिला था। उसमे लिखा था... प्रसन्न न कर सकी। कला आगे बढी तो पति पीछे रह ___... ' 'तुम्हारी बात ठीक निकली। आज मै समझ गया और जब वह पीछे रह गया था तो उसने उसे अपना सकी हूँ कि उस दिन तुम्हारे रहते मैंने तुमसे जो प्रेम करने अपमान समझ कर नीरु पर हमला किया। नीम ने चारो की बात कही थी वह नितान्त सत्य नही थी। आज ओर देखा ''उस तूफान में केवल विश्वनाथ ही चट्टान की तुम्हारे स्थान पर एक और व्यक्ति प्रा बैठा है । क्यो ऐसा तरह खडा था। हुआ यह बताना अनावश्यक है पर हुअा एक तथ्य है। वह दौड़ी हुई आई बोली क्या करू विश्वनाथ । तथ्य सत्य नहीं होता पर बहुधा हम उस तथ्य के शिकार तलाक। हो जाते है। वैसे तो सत्य भी स्वय अखड नही है । पर विश्वनाथ । नीरु कॉप उठी। मैं इस उलझन को बढाना नही चाहती। मै तुम्हारा सीधा रास्ता यही है, नीरु । प्रेम दूसरे मार्ग पर नही आदर करती हूँ पर प्रेम विनोद को करती हूँ । वह तुम्हारी जा सकती। तरह बुद्धिमान नहीं है। बात करना भी उसे कम आता फिर क्या करूंगी। है पर उसे जो कुछ प्राता है वह करना आता है वह मुझसे वर्तमान मे जियो । फिर भविष्य का प्रतीक है । उसे विवाह का वचन ले गया है। तुम उसे जानते होगे। उस आने दो देखा जायेगा। जैसी बाँसुरी कम लोग बजा पाते है। और यही हुआ था। नीरु फिर श्रीमती नीरजा शुक्ला हम लोग अगले मास की पाँच तारीख को सिविल से कूमारी नीरजा गुप्ता बन गई। कई दिन तक तो वह की सिबिल मैरिज एक्ट के अधीन विवाह कर रहे हैं। दृढता से जीवन की गाड़ी को खीचती रही पर अब रहतुम्हें आना तो है ही...... रह कर उसे लगता था जैसे वह अकेली है। एक दिन
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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