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________________ राखो १८३ वह मात्मविश्वास ...... ...जी हाँ समझी। क्या समझी ? इसी संगीत समीक्षा में एक सप्ताह के स्थान पर एक जो तुमने अपनी कहानी 'मुक्ता' में लिखा है यानी माह बीत चला था पर विश्वनाथ दिल्ली लौट ही नही प्रेम पूजी सहेजता नहीं बखेरता है। पा रहा था। कभी वे पिकनिक पर जाते, कभी गोष्ठियों बेशक । मे, कभी किमी मित्र परिवार मे और कभी एकान्त क्षणों मुझे वह स्वीकार है। से नरेश को लायब्ररी उनका विश्राम स्थल बन जाती। फिर भी तुम कह सकती हो तुम मुझे प्रेम करती हो। वहीं बैठ कर वे सगीत को भूलकर कभी कभी जीवन की नीरजा क्षण भर के लिए झिझकी फिर बोली, आज वातें करते थे। वे दोनो निर्भीक और स्पष्ट वक्ता थे। तो ऐसा ही लगता है। दोनों गुत्थियो मे विश्वास नही करते थे। दोनो के पास और कल कैमा लगेगा? कही कुछ छिपाने को नही था। वे इतने स्पष्ट थे कि कल पाने पर जानूगी। कभी-कभी तो नरेश को चकित रह जाना पड़ता था। तो उसे पा लेने दो । नव तक के लिए अच्छा है हम विश्वनाथ को याद है कि एक दिन जब वह जाने की चर्चा उसकी बात न करें। भर रहा था नीरजा ने उससे पूछा क्या अब नही रुक नीरजा ने दृढ स्वर मे कहा ''पाप ठीक कहते है। सकोगे? मुझे अभी बहुत मे कल देखने है। उसके बाद ही मैं प्रेम नही नीरु। को परख मकूगी। बिल्कुल । प्रभावित होकर विश्वनाथ बोला' 'नीरु । मच कहता हाँ, नीरु। हूँ मुझे भी तुमसे प्रेम होता जान पड़ रहा है पर उसे तो जाओ। प्रकट करने का समय अभी दूर है। प्रेम की अग्नि परीक्षा नीरु। आसान नहीं होती, नीरु ।..... कहो। दुख होता है। तब दोनो हँस पड़े थे, पर आज विश्वनाथ को वह होता है। घटना स्वप्नवत् लग रही है, क्योकि उसके दो दिन बाद क्यों? रक्षाबन्धन का त्योहार था और उसी दिन नीरु ने विश्व नाथ के हाथ में गखी बांधी थी। बात ऐसे हुई कि जब क्योकि मै तुम्हे प्रेम करनी लगी हूँ। नीरु नरेश के हाथ में राखी बांध रही थी तब विश्वनाथ नीरु। के मुंह से निकल गया 'काश कि मेरे भी एक बहिन नीरु झूठ नहीं बोलती। होती। फिर कई क्षण तक जैसे वहाँ सन्नाटा छाया रहा था। पास ही नीरु ती माँ खड़ी थी बोली 'अरे तो इसमें स्पष्टवादी बहधा अपनी ही स्पष्टता से अप्रतिभ हो जाते क्या है ? नीरु तेरी बहिन है। ला तो नीरु एक राखी। है । कई क्षण बाद विश्वनाथ ने उसी शान्त स्वर में कहा दोनो के हृदय धक-धक कर उठे। विश्वनाथ ने यद्यपि ''एक बात बतायोगी? यह बात जान बूझ कर कही थी तो भी वह अपने को ही पूछो। चकित करता हुआ कॉप उठा था। नीरु भी कॉपी थी, विश्वनाथ ने पूछा "तुम मुझसे प्रेम करती हो या निष्प्रभ भी हई धी पर गवी लेकर आगे बढी । बोली... अपने से? हाथ बढायो । प्रकट में वह बिल्कुल नही झिझकी। कसा अजीब प्रश्न है? नीरजा चकित सी देखने स्वाभाविक अल्हड़ता भरे स्वर में विश्वनाथ ने कहा लागी । विश्वनाथ ने मुस्करा कर कहा ''नही समझी ? .."हाथ बढ़ा सकता हूँ पर एक शर्त के साथ । जैसे तभी बिजली कौंधी। नीर विजय से मुस्कराई क्या?
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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