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________________ एक सामाजिक कथा राखी श्री विष्णु प्रभाकर रक्षाबन्धन का पर्व होने पर भी उस दिन विश्वनाथ उठा । दृष्टि उठा कर देखा कहीं कोई नहीं है। पर का चित्त बहुत प्रशान्त था। इसका क्या कारण था यह उसका हाथ रुक गया उसने राखी को बड़े ध्यान से देखा। भी बह स्पष्ट नहीं जानता था। वह सवेरे से किसी वस्तु स्मृति के पन्ने बड़ी तेजी से हवा में उड़े। उन पन्नों में की तलाश में था पर वह उसे नही मिल रही थी। उसने अनेक सुन्दर और रहस्यमय चित्र थे। उन चित्रो में मादअलमारी, बक्स, सूटकेश, मेज की दराजें सभी कुछ देख कता थी सजीवता थी और था एक सन्देश... डाला, पर उसकी इच्छित वस्तु नही मिली। वह सोचने बहुत पुरानी बात थी। विश्वनाथ तब अविवास्ति लगा उसकी स्मृति इतनी दुर्बल क्यो हो गई है कि सहमा । था । पर विवाह की बात चल रही थी। कहीं पक्की हो उसे याद आया "कुछ लेख और पत्र अटैची मे भी तो चुकी थी। तभी उसके सहपाठी नरेश का पत्र पाया. रखे है। बस उसने अटेची को ढूंढ निकाला और व्यग्रता परिस्थियो ने हमे एक दूसरे से बहुत दूर फेंक दिया है। से उसका सामान टटोलने लगा। टटोलते-टटोलते उसके डाकघर इस सीमा को कब तक छोटा करता रहेगा। कभी हाथ में एक लिफाफा पा गया । बह जैसे हर्ष से भर कभी तम्हे आना ही चाहिए। बड़ा अच्छा अवसर है। उठा ''यह लिफाफा।.... "इसमे क्या है...""क्या है...? साहित्य सम्मेलन, संगीत सम्मेलन, इतिहास परिषद आदि जैसे वह उसे पहचान रहा था, जैसे उसे कुछ याद आ रहा कई परिषदें हो रही है। तुम्हे इनमें रुचि है। नीरजा था.....। यह सब पलक मारते जितने समय में हो गया सगीत सम्मेलन मे सरोद ट्यून में भाग ले रही है। तुम था क्योंकि दूसरे ही क्षण उसने खोल लिया था। और भी तो सितार के प्रेमी हो। इसलिए सोचो मत, चले उसके हाथ में तिरंगे खद्दर की एक राखी थी....। प्रायो । यह राखी....."जैसे वह एक इतिहास की पुस्तक और वह चला गया। उसने पाशा के प्रतिकूल सगीत थी। उसके पृष्ठ इतनी तेजी से खुलने शुरू हुए कि सम्मेलन में पूरा भाग लिया। उसने सितार पर ही संगीत विश्वनाथ काप उठा। झंझलाया सा वह बोला""क्या का प्रदर्शन नही किया बल्कि सरोद इयूट मे नीरजा के वाहियात बात है। मनुष्य इतना मोहग्रस्त क्यों है ? क्यों साथ भाग लिया। यह आश्चर्य जनक बात थी कि वे मैंने इस राखी को माज तक संजोकर रखा हुआ है ? इतनी जल्दी एक दूसरे को समझ गये थे। विश्वनाथ बसे नहीं, नही, मैं इसे नही रखूगा। एक बात थी जो हो गई। तो कई बार नीरजा के साथ नरोद बजा चुका था पर वह हमेशा मुझे क्यो जकड़े रहे। मुझे अपंग क्यों बनाये उन बातों को बहुत वर्ष बीत चुके थे। तब वह सीम हा रही थी पर आज उसकी प्रगति को देख कर विश्वनाथ और यह सोचते-सोचते उसने चाहा वह उस राखी प्रशंसा से भर उठा। जिस बात ने उसे विशेष प्रभावित को उठाकर रद्दी की टोकरी में फेंक दे कि सहसा उसे किया था वह था उसका पात्म विश्वास । तीन बार सरोद लगा. 'कोई कमरे में आ गया है और धीमे मधुर स्वर मे का तार ट्टा और सहस्रों व्यक्तियो की सभा में नीरजा ने कह रहा है। यह राखी मैं इसलिए नहीं बांध रही कि मै उसे परम शान्ति से ठीक किया और संगीत के रस को तुमसे रक्षा की याचना करती हूँ बल्कि इसलिए बांध रही भंग नहीं होने दिया। एक बार तो विश्वनाथ उसे देखता हूँ कि तुम अपनी रक्षा कर सको...। विश्वनाथ कांप ही रह गया था। बह तन्मयता, वह प्रात्मविभोरता, और
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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