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________________ मुकवि खेता और उनकी रचनाएँ ले० श्री अगरचन्द नाहटा १८वी शताब्दी में राजस्थानी साहित्य का निर्माण से लेकर सवत १९५० तक में खरतरगच्छ की भद्रारक बहुत अधिक हुआ है। जैन कवियो ने भी इस शताब्दी मे शाखा में कौन कौन यति कब दीक्षित हा इसकी महत्त्वकाफी साहित्य सृजन किया है। और उनके सम्बन्ध मे पूर्ण सूचना मिल जाती है। वसन्तलाल शर्मा पिलानी वालों ने शोधप्रबन्ध भी उपर्युक्त दफ्तर बही के अनुसार मुकवि खेता का लिखा है जो अभी तक अप्रकाशित है। राजस्थान मे पुरा और घरेल नाम 'खेतमी था। मंवत् १७४१ के खरतरगच्छ का बहुत अाधक प्रचार व प्रभाव रहा। अत. फाल्गुण वदी ११ गुरुवार को केरिया ग्राम मे खरतर राजस्थानी भाषा में सर्वाधिक साहित्य खरतरगच्छ के गच्छाचार्य जिन चन्द्र सूरि जी ने इन्हें दीक्षित किया था। कवियो का ही मिलता है। इनमे से महाकवि जिनह इनका दीक्षा का परिवर्तित नाम दयासुन्दर रखा गया। के सम्बन्ध मे तो डा० ईश्वरानन्द शर्मा शोधप्रबन्ध लिख इनके गुरू दयावल्लभ गणि थे। यद्यपि इनके जन्मस्थान चुके है। कविवर धर्मवर्द्धन, विनयचन्द्र और जिनहर्ष की का निश्चित उल्लेख नहीं मिलता पर चित्तौड़ की गजल रचनाओ का संग्रह हमने सम्पादित करके प्रकाशित कर मवत १७४२ सावन में बनाई गई है और उद दिया है। उपाध्याय लक्ष्मी वल्लभ और जिनसमुद्र सूरि गजल १७५७ मे । इन दोनो स्थानों का जो विवरण कवि के सम्बन्ध में मेरा एक लेख राजस्थानी पत्रिका में प्रका ने इन गजलों में दिया है उससे मालूम होता है कि कवि शित हो चुका है और धर्मवर्द्धन आदि कई कवियो और को इन स्थानों के सम्बन्ध मे बहत अच्छी जानकारी थी । उनकी रचनामों सम्बन्धी लेख अन्य पत्रिकाओं में छप इससे कवि का मेवाड निवासी होना विशेष सम्भव है चुके है। प्रस्तुत लेख में सुकवि खेता या या खेतल और कवि की पहली रचना संवत १७४३ की प्राप्त है इससे उनकी रचनायो का सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। कवि वहीं उसमें ही दीक्षित हुअा होगा। क्योकि सवत सुकवि खेता ने हिन्दी और राजस्थानी दोनो भाषाओं १७४० मे दीक्षा ली और दो वर्ष के अन्दर ही काव्य में थोड़ी और छोटी होने पर भी उल्लेखनीय रचनाये बनाने लगा तो इसकी योग्यता के विकास में यदि बाल्याबनायी हैं। उनके द्वारा रचित चित्तौड़ और उदयपुर गजल वस्था मे दीक्षा ली भी होती तो कुछ वर्ष तो लग ही तो प्रकाशित भी हो चुकी है। जिनमे इन दोनों स्थानों का जाते । वैसे अनुमान तो यह होता है कि वह खरतर बहुत ही सुन्दर व ऐतिहासिक वर्णन प्राप्त है। गच्छीय सुप्रसिद्ध कवि आचार्य श्री जिनराज सूरि जी के खरतरगच्छ की ऐतिहासिक परम्परा में जिन जिनको शिष्य दयावल्लभ गणि की वृद्धावस्था में छोटी उम्र में ही यति दीक्षा दी जाती थी, उनका विवरण श्री पूज्यो की खेतसी उनके पास आ गया हो और योग्यवय और योग्यता दफ्तर बही मे लिखा जाता था । इससे किस प्राप्त होने पर कई वर्षों बाद दीक्षा ली गई हो । उदयपुर सवत व तिथि को किस स्थान में किसे दीक्षित किया और चित्तौड़ गजल को ध्यान पूर्वक पढ़ने से एक अनुमान गया, उनका बोल-चाल का अर्थात् घरेलू नाम क्या था, और भी निकाला जा सकता है कि उसका जन्म जैन घराने दीक्षा का नाम क्या रखा गया और उनके गुरू का नाम नहीं हुमा हो, वैष्णव शंव या शक्ति का आसक उसका क्या था, इसका विवरण लिखा जाता था । ऐसी ही एक घराना रहा होगा। इससे कवि ने इन दोनों गजलों में दफ्तर बहीं की नकल हमने की है। उससे संवत १७०१ जैन मन्दिर प्रादि का वर्णन इतना नहीं किया जितना
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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