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________________ धर्म और राजसंरक्षण १५७ को राजसरक्षण प्राप्त हो या न हो; परन्तु राजसरक्षण के इतिहास पर कलक के रूप में अंकित है। कारण यदि धर्म ऐसे क्रूर और कृतघ्न तत्वों को बढ़ावा प्रजातन्त्र-राष्ट्रों में 'धर्म-निरपेक्ष-राज्य' का सिद्धान्त दे तो ऐसे राजस रक्षण की कोई अावश्यकता नहीं। मान्य हुया है अर्थात् राज्य धर्म की ओर से निरपेक्ष है इस्लाम स्थिर धर्म है। समय के अनुसार उसमें उसे कोई सरक्षण प्राप्त नहीं होगा। भारत में धर्म के व्यापक माहित्य, मम्कार व विचारों का विकास इलथ सम्बन्ध में स्वतन्त्रता के पश्चात् का दृष्टिकोण यह रहा गति से हरा है. उमलिए इसके संरक्षणदाता बादशाह है कि प्रत्येक वर्ग को धर्मविशेष के प्रचार-प्रसार का काजियो के कथनानमार इस धर्म को मरक्षण प्रदान कर अधिकार है वशर्ते कि धर्म राष्ट्र के प्रहित में कोई कार्य पोमाता के माधक बादशाह इस्लाम न करे। वैसे तो भारत मे बौद्ध धर्म को स्वतन्त्रता के धर्म की वद्धि व अन्य धर्मों के क्षय में विशेष मचि रखते पश्चात् भी मरक्षण मिला है बौद्धग्रहो का पुनर्निर्माण हमा रहे। इम्लाम को भारत मे मगल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न है, बद्ध जयन्ती व बद्ध-उपवन के लिए वित्त-न्यवस्था की रूपेण सरक्षण मिला। इसी समय कुछ लोगों ने धर्म परि- गई है । भगवान महावीर-निर्वाणोत्सव के लिए सरकार वर्तन भी किया। किन्तु यह अकबर के काल में व्यक्ति व्यय करने को तत्पर है परन्तु इन सब का उद्देश्य मानवकी इच्छा और प्रदत्त लोभो पर निर्भर रहा। धर्म के मात्र का कल्याण ही है। राजमरक्षण का विशेष प्रभाव इस पर नहीं पड़ा । पश्चात् मम्प्रति विश्व के अधिकाश देशों में प्रजातन्त्र है। औरगजेब ने भी इस्लाम को राजमरक्षण प्रदान किया। प्रजातन्त्र राष्ट्र में कोई भी धर्म तभी मरक्षण प्राप्त करता उसने अपनी शक्ति से भारत में इस्लाम के व्यापक प्रचार है जब वह सम्पूर्ण समाज के हित की बात कहे, वह लोकमत की सोची थी परन्तु यह राजसरक्षण-इस्लाम धर्म और के अनुकूल हो; उसमे मानवता के मन्देश भरे हो; वह औरंगजेब-दोनो के लिए महगा पड़ा। मत्य का प्रत्येक प्रात्मा में मन्धान कर सके। धर्म को राजसरक्षण का ही कुपरिणाम था कि समाज-सगठन-प्रवृति धर्म की ओर दृष्टि लगाये ब्रिटिश शासन भारत में तीन सौ वर्ष तक चलता रहा। हुए है। लोक-ममुदाय ऐसे धर्म की खोज मे है जो चिरन्तन उन्होने अपनी भेद-नीति के कारण हिन्दू व मुसलमानो को मय का मार्गप्रदर्शन करे और युगधर्म का महयोगी बन खमो मे विभक्त कर भारत के प्रशासन व राजनीति में कर वर्तमान विभीषिकायो से त्राण देकर शीतल शान्ति सघर्ष का बीज बो दिया, जिसके फलस्वरूप भारत दो सलिल का आचमन करा मके। ऐसे मानवतावादी धर्म राष्ट्रो मे विभक्त हुआ। धर्म को यह गुप्त-राजसरक्षण को ही प्रजातन्त्र मे सरक्षण मिलना सम्भव है। ऐसे धर्म भारतीय उपमहाद्वीप में अशान्ति का वातावरण बनाकर के विषय मे ही यह सूकि है-"धर्मो रक्षति रक्षितः।" अनेकान्त के ग्राहक बनिये 'अनेकान्त' जैन समाज की एकमात्र शोध-पत्रिका है। जैन साहित्य, जैन प्राचार्यों और जैन परम्परा का इतिहास लिखने वाले विद्वान् 'अनेकान्त' की ही सहायता लेते है। इसका प्रत्येक लेख पठनीय और प्रत्येक अंक संग्रहणीय होता है। प्रत्येक मन्दिर और वाचनालय में इसे अवश्य मगाना चाहिये । मूल्य केवल ६) रुपया। वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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