SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६, वर्ष २६, कि० ४-५ अनेकान्त मौर्य ने जैन-धर्म का व्यापक समर्थन किया था यहाँ तक कदम्बवश के महाराज अविनीत के द्वारा संरक्षण देने का कि स्वयं भी वह दक्षिण भारत में जन-धर्म का प्रचार उल्लेख उनके दानपात्र मे है। महाराजा ने चन्द्रनन्दि करने गया था। परन्तु उसके पौत्र महान अशोक के समय भट्टारक को जैन मन्दिर के लिए ग्राम दान किया था। बौद्ध-धर्म को पूर्णत मरक्षण मिना, पुष्ट पृष्ठभूमि, वस्तुत जैनधर्म की समन्वयवादी अहिमात्मक प्रवृत्ति ने व्यापक मानववाद के सिद्धान्त और महान् सम्राट् के व्यापक राजसरक्षण प्राप्त किया। जैन-मनि व माधुग्रो संरक्षण के कारण बौद्ध धर्म की विश्व मे तूनी बोलने का प्राचार ज्ञान व उपदेश ग्राह्य एवं आकर्षक माने जाते लगी। मध्य एशिया, लका और दक्षिण-पूर्व एशिया में न रहे । जैन-प्राचार्यों की सायना एव मस्कृति के प्रति केवल अशोक के प्रतिनिधि; वरन् स्वय मम्राट् और प्राथा ने गप्टकट राजामों में जैन धर्म के प्रनि प्राकृष्ट उसके पारिवारिक जन इस धर्म का सन्देश पहुचाने कर लिया था तभी तो राष्ट्रकूटो के संरक्षण मे उनकी गये। इसी का प्रभाव है कि आज विश्व की एक तिहाई राजधानी मान्यखेड एक अच्छा जैन केन्द्र बन गया था । जनसंख्या बौद्ध धर्मानुयायी है। चालुक्य वश जैन-धर्म का महान् सरक्षण रहा। उसके धर्म के राजसंरक्षण से तात्पर्य लोगो पर धर्म का साहाय्य से दक्षिण मे जैन धर्म का बहुत प्रचार हा । बलान् धारोपण नही है अपितु मानव-समाज के साथ धर्म होयसलो के साहाय्य व सरक्षण मे जैन मन्दिर तथा अन्य का तन्मयी करण है। जब समाज-विशेष किसी धर्म की धार्मिक सस्भाएं खूब फैली। भारतीय संस्कृति के अक्षुण्ण उपयोगिता को समझकर इसे एक बार ग्रहण कर लेता है तत्त्व-साहित्य, वस्तुकला एव कालानुकल भाषाएँ जैनधर्म तो वह उसके लिए शाश्वत धर्म बन जाता है। शुङ्गो व को राजभरक्षण मिलने से ही तो स्थायी एव उपयोगी सातवाहनो के द्वारा प्रतिपादित धर्म की अस्थिरता का बन पायी है । वस्तुत. जैनधर्म को प्राप्त राजसरक्षण ही यही कारण था। उन्होने कठोर ब्राह्मण धर्म के अनुसार वर्तमान में भारत की भावात्मक एकता का निदेशक बन अनेक नीति-निर्देश व कुष्ठाग्रस्त कानुन बना डाले और सकता है। धर्म व्यक्ति की चित्तवृत्ति का बहिः प्रदर्शन उन्हे जनता पर थोपना चाहा। फलत' शक, कम्बोज व तभी कर पाता है जब वह समाज की व्यापक भाव से अन्य विदेशी जातियां कनिष्क के काल में सरल बौद्ध धर्म सेवा कर सके, उनके अन्दर अध्यात्म-चिन्तन व उसके को अपनाने लगी। क्योंकि इस धर्म को ऐसा राजसरक्षण व्यावहारिक उपयोग की प्रवृत्ति पैदा कर सके। यही प्राप्त था जिसमें धर्म के बलात् ग्रहण का अवसर ही नही धर्म की वास्तविक उपयोगिता है ऐसे धर्म का शाश्वत था सभी जातियो के योग्य व्यक्ति उच्च श्रमण पद प्राप्त सरक्षण होना उचित है। करने के अधिकारी थे, विभिन्न वर्गों से श्रमणो के आने से यूरोप व पश्चिमी एशियाई देशो में भी धर्म को बौद्ध धर्म का वाहुल्येन अंगीकरण स्वाभाविक था। राजसंरक्षण प्राप्त रहा है; और यूरोप मे तो धर्म ने चूकि इतिहास बतलाता है कि धर्म राजसंरक्षण से शैक्षणिक व सास्कृतिक स्तर पर धर्म-प्रचार की दृष्टि से फूला-फला है। अत: स्वाभाविक था कि कनिष्क के कार्य भी किया है। साथ ही धर्म के राजसरक्षण का पश्चात् बौद्ध धर्म को पूर्ण सरक्षण न मिलने से उसका दुरुपयोग भी किया। जब एथेंस, रोम और योरोपीय ह्रास प्रारम्भ हो गया । गुप्त-काल मे अन्य धर्मों के साथ नगरों मे ईसाई-चर्च के सर्वेसर्वा पोप पाल का वचन हिन्दू-धर्म को व्यापक सरक्षण प्राप्त हुआ, जिसकी नीव ईश्वर-आदेश माना जाता था और उनकी आज्ञा का इतनी मजबूत थी कि यह धर्म सत्तरह सौ साल से अनेक उल्लंघन व बाइबिल के उपदेशो का तिरस्कार करने पर झझावातो को शमन करता हुआ द्रुत गति से समय के 'मृत्यु दण्ड' मिलता था तब ईसाई-धर्म को भी प्रज्ञानान्ध साथ चल रहा है। गुप्तो के दो सौ वर्ष के व्यापक एवं राजाओं का संरक्षण प्राप्त था तभी तो महान् दार्पनिक दढ़ राजसरक्षण के कारण ही यह सम्भव हो सका। सुकरात को सत्य कहने से रोका जाता था और गैलीलियों दक्षिण भारत मे ५वी शताब्दी मे जैन-धर्म को को तो सत्य को गले के नीचे ही रखना पड़ा था । धर्म
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy