SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलकत्ते का कातिक महोत्सव १५१ कतार बद्ध मनुष्यों की पंक्ति एवं दूर तक ध्वजपताका योगदान करना चाहिए। वाहक सैकड़ों व्यक्ति अपने कार्य में सतर्कतापूर्वक संलग्न कात्तिक महोत्सव की रथयात्रा में दिगम्बर समाज रहते है। सवारी के निश्चित मार्ग मे घण्टो तक ट्राभ, की मान्यता भी एक ही है और उनकी सवारी भी माथ बस, ट्रक, गाड़ियाँ, ठेले, मोटर आदि का यातायात ठप्प ही माथ निकलकर बामतला गली की मोड पर पा जाती हो जाता है । ट्रामवे कपनी अपने विद्यन तागे को खोल- है। धर्मनाथ भगवान की सवारी निकल जाने पर दिगम्बर 'कर इन्द्रध्वज का मार्ग उन्मुक्त करने में मलग्न रहती है। समाज की भ० पाखनाथ स्वामी की सवारी भी ग्रा कार्तिक महोत्सव पर्व भव्य जीवों को सम्यक्त्व प्राप्ति मिलती है । दोनो समाज के व्यक्ति एक दूसरे की सवारी होने में तथा सम्यक्त्व निमल करने का प्रमख साधन है। में प्रेम पूर्वक मम्मिलित होते है और भजन मण्डलियां भी मन्दिर, उपाश्रय में तो चल कर जाने से देवगुरु दर्शनो पारम्परिक योगदान करती है, यह समाज के शुभ लक्षण में व्याख्यान श्रवणादि में लाभ मिलता है पर इस महोत्सव है। द यो । दान करने के लिए लाखो जनेतर पाते हैं और में तो स्वयं भगवान की बात की जनत गनर, गज्याल यादि शासक वर्ग भी जोड़ा साक राजहै। भक्त हृदय अनायाम ही वीतराग मद्रा दर्शन से झुक वाडी मे उपस्थित होकर जिनदर्शन से लाभान्वित होत पड़ता है और भावशुद्धि-प्रात्मनिर्मलता पा जाय तो एक है । बगाल की जनता भावुक है और वह वीतराग जिनेही नमम्कार से बैडा पार है। श्वर के दर्शन कर अात्मविभोर हो उठती है। भक्ति और तल्लीनता में तो वह जना से भी दो कदम आगे प्रतीत "इक्कोविणमुक्कारो जिणवर बमहम्प वढमाणम्स, होती है अत इस महोत्सव के द्वारा कोई भी प्राणी ससार सागरायो तारेइनर व नारि वा ।।" मम्यक बाब की प्राप्ति करे तो हमारे इस प्रायोजन की जिन प्रतिमा के आकार वाले मत्म्यो को देख कर मपलना ही समझनी चाहिए। मोह विकल जलचर जन्तुयो तक के बोध पाने के प्रमाण शास्त्रो मे विद्यमान है तब साक्षात् अर्हडिम्ब के दर्शन से श्वेताम्बर समाज की मवारी माणिकतल्ला स्थित बद्धिशाली मानव प्राग बोध प्राप्त करे इसमे सन्देह को दादा जी महाराज के बगीचे में जाती है और मार्गशीर्ष स्थान ही कहाँ ? स्वय भगवान की विद्यमानता में भी कृष्ण • को तुलापट्टी जैन मन्दिर तथा दिगम्बर समाज समवशरण मे तीनो तरफ अर्हत् प्रतिमाये विराजमान की मवारी भिती मार्गशीर्ष कृष्णा ५ को चावखपट्टी जैन 'रहती है और बारह पपंदाग्रो मे नौ पर्षदानो की तो मन्दिर मे लोट कर इसी समारोह के माथ आती है। मार स्थापना तीर्थर के ही दर्शन होते है। जैन शास्त्रानुसार इसी बीच वहा माधमी वात्सल्य-जीमन, पूजा, भजन अादि एव ऐतिहासिक दप्टिकोण में भी जिनप्रतिमा अनादि का प्रायोजन रहता है तथा वापम मन्दिर जी मे प्रवेश 'कालीन सिद्ध है. प्रश्नव्याकरण मूत्रानुसार 'जिन पूजा' होने पर नाना प्रकार की बोलियों द्वारा अपना द्रव्य सफल अहिसा का ही पर्याय है फिर भी बोधिदुर्लभ दुषमकाल करते है। मे अनार्य संस्कृति प्रभावित होकर कोई भक्तिरूपी अमृत- कानिक महोत्सव की सवारी सभी समाजो मे धार्मिक कुण्ड मे सशय विष बिन्दु घोले तो उनके प्रति करुणा भावना को बल देने वाली है। अत इसके माध्यम से और उपेक्षा के अतिरिक्त और उपाय ही क्या हो सकता यदि श्वेताम्बर व दियम्बर सम्प्रदाय दोनो मिलकर ठोस है ? हमारी भक्ति विशुद्ध प्रात्मकल्याण के निमित्त है, कार्य करे तो बगाल में अहिंसा का प्रचार द्वारा पशुवलि किसी का कुछ अहसान या उपकार नहीं, प्रत. अपनी- और मासाहार जमी घृणित प्रथाये बन्द हो नकती है अपनी रुचि एवं भावनानुसार जिन शासन के इस महत्त्व- जिसकी वर्तमान काल मे बहुत बड़ी अावश्यकता है। पूर्ण कार्य में सम्प्रदाय गत भेद भावो को भुलाकर हार्दिक
SR No.538026
Book TitleAnekant 1973 Book 26 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1973
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy