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अपभ्रंश सुलोचना चरित्र के कर्ता देवसेन
डा० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ
अपभ्रश भाषा मे रचिन तथा २८ सधियो में ममाप्त ७२) मे ग्रन्थ एवं उसके कर्ता देवसेन का संक्षिप्त परिचय - सुलोयणा चरिउ (सुलोचना चरित्र) की प्रतिया उत्तर दिया है जिसमें यह व्यक्त किया है कि ग्रन्थ की रचना भारत के कई शास्त्र भण्डारों में प्राप्त है। अतएव यद्यपि निबांद्रिदेव के प्रशिष्य और विमलसेन गणधर के प्रशिष्य यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित रहा आया, इसकी जान- गणिदेवसेन ने मम्मलपुरी मे वि० सं० ११३२ में आचार्य । कारी विद्वानो को काफी समय से है। संभवतया प० कुन्दकुन्द के प्राकृत गाथावद्ध सुलोचना चरित को (अपपरमानन्द जी शास्त्री के लेख "सुलोचना चरित्र और भ्रश के) पद्धाडिया आदि छन्दो मे प्राक्कथन (१०३) देवसेन" (अनेकान्त वर्ष ७, किरण ११-१२) ने विद्वानो मे डा० दशरथ शर्मा ने सूचित किया कि देवसेनगणि ने का ध्यान इस ग्रन्थ की ओर विशेष आकर्षित किया। कुन्दकुन्द की प्राकृत कृति को वि० मं० ११३२ मे राजा उक्त लेख मे यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया कि मम्मल के नगर मे अपभ्रश भाषा में अनूदित किया। सुलोचना चरित्र के कर्ता देवमेन दर्शनसार के कर्ता से पाद टिप्पणी न०८ मे डा० शर्मा ने यह शका भी व्यक्त भिन्न है किन्तु भावसग्रह के कर्ता से अभिन्न है, तथा की है कि "क्या यह महामल्ल पल्लव द्वारा स्थापित सम्भवतया वह १२वी या १३वी शताब्दी विक्रमी में होने मम्मलपूरम हो सकता है ?" प० परमानन्द जी यह भी वाले ग्वालियर पट्ट के माथुरसधी भट्टारक देवसेन ही है। समझते प्रतीत होते है कि प्रशस्ति मे उल्लिखित 'रामभद्र' परन्तु डा० हीरालाल जी ने सावधम्म दोहा की भमिका उस चालूक्य राजा का नाम है जिसके राज्य में इस ग्रन्थ मे सुलोचना चरित्र को भी दर्शनमार के कर्ता की ही एक की रचना हुई थी। अन्य कृति अनुमान किया। हमने अपने लेख 'देवसेन नाम इन अनुमानो मे, तथा अन्य विद्वानो की भी तद्विषके ग्रन्थकार' (जन सदेश-शोधाक, १४, पृ० १०६-१०४ यक धारणाग्रो में कई भ्रान्तिया रही ग्राई प्रतीत होती तथा शोधाक १५, पृ० १३६-१४०) मे देवसेन नाम के है। इस प्रशस्ति संग्रह के प्रकाशन से पूर्व ही प्रकाशित लगभग अढाई दजन विभिन्न दिगम्बर जैन-गुरुयो एव शोधाक के अपने पूर्वोक्त लेख में हमने इस विपय पर ' ग्रन्थकारो का शिलालेखो, साहित्यिक उल्लेखो, पावलियो, पर्याप्त प्रकाश डाला हुआ है, तथापि कुछ और स्पष्टीअन्य अनुश्रुतियो आदि के आधार से परिचय दिया तथा करण अपेक्षित है, ऐसा लगता है। तत्सव । ज्ञातव्य का परीक्षण एव गवेषण करके उनमे जो प्रशस्तिगत 'ज गाडावधे पामि उत्त, सिरि कुदकुद ग्रन्थकार है अथवा बहुप्रसिद्ध है उनको चीन्हने का प्रयत्न गणिणा णिरुत्तु, तं एवहि पद्धाडियर्याप करोमि' में जिन किया है।
कुन्दकुन्द का उल्लेख हुआ है वह समयसारादि पाहड ग्रथों वीर सेवा मन्दिर सोसाइटी दिल्ली से प्रकाशित जन १. इस परिचय मे चरित्र नायिका सुलोचना को भूल से ग्रन्थ प्रशस्ति सग्रह, द्वितीय भाग (पृ०१८-२०) मे भी हस्तिनापुर के राजा की पुत्री दिया गया है। वस्तुतः प० परमानन्द जी ने आमेर भण्डार की प्रति के आधार वह काशि के राजा अकम्पन की पुत्री थी और से (जिसे दिल्ली की खडित प्रति से सशोधित किया।) उसके स्वयंवरित पति जयकुमार हरितनापुर के राजसुलोयणा चरिउ के आदि एव अन्त के कुछ भाग प्रशस्ति कुमार थे-हस्तिनापुर सुलोचना का पित्रालय नहीं, रूप से प्रकाशित किये, तथा उसकी प्रस्तावना (पृ०७१- श्वसुराल थी।