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* अनेकान्त
स्वार्थ पोर परार्थ के भेद से अनुमान का वर्गीकरण, पाँच प्रदान करता है जिसके द्वारा हम यह जान सकते है कि अवयव, भाव साधक और प्रभाव साधक के भेदों मे हेतु कौनसा कार्य हमारे लिये हितकारक और उपादेय है, कोन का वर्गीकरण का वर्णन किया गया है। प्रत्येक को उचित सा अहितकारक और अनुपादेय है तथा कोनसा कार्य न उदाहरणों के द्वारा विस्तार से समझाया गया है। हितकारक है न अहितकारक है बल्कि उपेक्षणीय है।
अन्त में मागम को परिभाषा देते हुए बताया गया है प्रमेय रत्नालङ्कार के अन्तिम प रच्छेत में लेखक ने कि वह पागम ज्ञान है जो प्राप्त अथवा पनासक्त एव प्रमाणामानों को अनेक उदाहरण देकर समझाया है। यथार्थवक्ता पुरुष के द्वारा कहे वाक्यों से उत्पन्न होता है। लेखक ने बताया है कि नय वह पनि है जिसके द्वारा यदि किसी साधारण विश्वस्त व्यक्ति के द्वारा कहे हुए केवल वस्तु को एक रूप ही माना जाता है परन्तु जैनो के वचन हो तो वह लौकिक भागम कहलाता है और जो अनेकान्त सिद्धान्त के द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि प्राप्त और सर्वज्ञ के द्वारा कहा गया है वह शाखीय भागम वस्तु के अनेक रूप और पाभास होते हैं। यहाँ उन सभी कहलाता है।
का विस्तृत वर्णन करना व्यर्य है। इस प्रकार प्रमाण के विभिन्न भेदों की यथार्थ परि- प्रमेय रत्नालङ्कार की तीन पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई भाषा देने के बाद लेखक ने अन्त में ज्ञान के प्रन्तिम लक्ष्य है। एक प्रति तो कागज पर है तथा तीन पाण्डुलिपियाँ का वर्णन किया है। यह पूर्णतया व्यावहारिक है । मोक्ष ताड़पत्रो पर श्रवणबेल गोला के मठ से प्राप्त की गई हैं। प्राप्त करने के लिये ज्ञान प्रावश्यक है। ज्ञान अज्ञानता के श्रवणबेल गोला के मठ से प्राप्त पाण्डुलिपियों ही शुद्ध कही अन्धकार को दूर करता है तथा हमें ऐसा सचा विवेक जा सकती हैं।
पैराडाईज प्रिण्टर्स, सहारनपुर