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अनेकान्त
के प्रभाव से मुक्त कर लिया था किन्तु अजातशत्रु ने काशी मृत्यु हो गई।' को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया।
विदूरथ अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार शाक्य सघ पर प्रसेनजित के सम्बन्ध मे श्वेताम्बर प्रागमों में कुछ माक्रमण करने तीन बार गया, किन्तु बौद्ध ने तीनो बार उल्लेख मिलता है। यहाँ प्रसेनजित के स्थान पर प्रदेशी उसे रोक दिया। चौथी बार बुद्ध का विहार अन्यत्र हो नाम दिया गया है। उसे पाश्चात्य सम्प्रदाय के केशी का रहा था, उस समय विदूरथ ने शाक्य संघ का विनाश कर अनुयायी बताया गया है। बाद में वह भगवान महावीर दिया। जब उसकी सेना लौट कर एक नदी के किनारे का अनुयायी बन गया।
पड़ाव डाले हुए थी, तभी जोरो की प्रोलावृष्टि हुई । नदी बौद्ध ग्रन्थो में भी प्रसेनजित के स्थान पर पसदि नाम में बाढ़ प्रा गई और सब बह गये। पाया है। बौद्ध ग्रन्थ 'अशोकावदान' मे प्रसेनजित के
भगवान् महावीर ने जब दीक्षा ली, उससे प्रायः पाठ पूर्ववर्ती और पश्चावर्ती वशधी के नाम मिलते है । उसके
माह पहले कुणाला (कोशल) देश में भयङ्कर बाट पा अनुमार व्रत (वक), रत्नमय, सजय, प्रसेनजित, विदूरथ,
गई। उसमे श्रावस्ती को बहुत क्षति पहुँची।' बौद्ध अनु कुमलिक, सुरथ और मुमित्र इस वंश के राजा हुए । सुमित्र
श्रति है कि प्रनाथ पिण्डद सेठ सुदत्त की अठारह करोड़ को महापद्म नन्द ने पराजित करके कोशल को पाटलिपुत्र
मुद्रा चिरावती के किनारे गडी हुई थी। वे भी इस बाढ़
मे बह गई। श्वेताम्बर भागमो के अनुसार यह बाढ कुरुण साम्राज्य मे प्रात्मसात् कर लिया। अशोकवदान की इस वंशावली का समर्थन अन्य सूत्रो से भी होता है।
और उत्कुरुण नामक दो मुनियो के शाप का परिणाम
थी। किन्तु कुछ समय बाद यह नगरी पुनः धनधान्य से भरहुत में जो प्रसेनजित स्तम्भ है, वही इसी प्रसेनजित
परिपूर्ण हो गई। जैन शास्त्रों के अनुसार इस नगर में ऐसे का बताया जाता है।
सेठ भी थे, जिनके भवनों पर स्वर्णमण्डित शिखर थे और प्रसेनजित के साथ शाक्य वंशी क्षत्रियो ने किस प्रकार उन पन छप्पन ध्वजाये फहरातो थीं। जो इस बात की मायाचार किया, उसको कथा अत्यन्त रोचक है । प्रसेनजित प्रतीक थी कि उस सेठ के पास इतने करोड़ स्वर्णमुद्राये ने शाक्य संघ से एक सुन्दर कन्या को याचना की। शाक्य लोग उसे अपनी कन्या नही देना चाहते थे, किन्तु उस
वास्तव में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण श्रावस्ती प्रबल प्रतापी नरेश को असन्तुष्ट भी नहीं कर सकते थे।
अत्यन्त समृद्ध नगरी थी। इसका व्य पारिक सम्बन्ध सुदूर प्रतः उन्होंने एक दासी-पुत्री के साथ उसका विवाह कर रही
देशो से था। यहां से एक बड़ी सडक दक्षिण के प्रसिद्ध दिया। इसी दासी पुत्री से विदूरथ का जन्म हुआ था।
नगर प्रतिष्ठान (पैठण, जि. पोरङ्गाबाद) तक जाती थी। एक बार विदूरथ युवराज अवस्था में अपनी ननसाल इस पर साकेत, कौशाम्बी, विदिशा. गोनर्द, उज्जयिनी, कपिलवस्तु गया। वहां उसे शाक्यो के मायाचार का पता माहिष्मती प्रादि नगर थे। एक दूसरी सड़क यहाँ से राजचल गया। उसने शाक्य संघ को नष्ट करने को प्रतिज्ञा गृहीतक जाती थी। इस मार्ग पर सेतब्य, कुशीनारा, की। घर पर पाकर उसने अपने पिता से यह बात कही। पावा, हम्ति ग्राम, मण्डग्राम, वैशाली, पाटलिपुत्र और इस प्रसङ्ग पर दोनों में मतभेद हो गया। नौबत यहाँ तक नालन्दा पड़ते थे। तीसरा मागं गङ्गा के किनारे-किनारे पहुँची कि विदूरथ ने पिता को राज्यच्युत कर दिया। जाता था। पचिरावती नदी से गङ्गा और यमुना में प्रसेनजित महारानी मल्लिका को लेकर राजनैतिक शरण
ण १-Early History of India, by Vincent लेने राजगृह पहुँचे। किन्तु नगर के बाहर ही दोनो की
Smith १-Records of the Western World Part The Hindu History of India, by A.K. 1& JI, by Rev. Beal
Mazamdor २-Chronology of India, by Mrs. M. Duff २-Life in ancient India, P. 256