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* अनेकान्त -
मुनि बनकर सिद्ध पद पाया।
इस मुन्दर जिन भवन को सुल्तान अलाउद्दीन ने बहकरकण्डु चरित्र (पृष्ठ १८१) में वर्णन पाया है कि राउच की विजय के समय तोड दिया। श्रावस्ती के प्रसिद्ध सेठ नागदत्त ने स्त्री चरित्र से खिन्न हो इतिहास-पाद्य तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने ५२ जनपदो कर मुनि दीक्षा ले ली और अन्त मे यही से मुक्ति-पद प्राप्त की रचना की थी। उनमे एक कोशल देश भी था। कोशल किया। इस प्रकार श्रावस्ती सिद्ध क्षेत्र भी है।
के दक्षिणी भाग को राजधानी साकेत या प्रयोध्या थी जो यहाँ पर भगवान् महावीर का समवसरण कई बार सरयू के दक्षिण तट पर अवस्थित थी। उनगै कोशल को पाया था और भगवान् का उपदेश सुनकर श्रावस्ती के राजधानी श्रावस्ती यो जो प्रचिगवती (राप्ती) के दक्षिण अधिकांश नागरिक महावीर के भक्त बन गये थे। तट पर स्थित थी। लगता है को गल देश का यह विभा
श्रावस्ती नरेश जयसेन बौद्ध धर्म का उपासक था। जन बहुत पश्चाद्व! काल मे हुमा। क्योकि भगवान् एक बार प्राचार्य यति ऋषभ वहाँ पप रे । राजा प्रजा सभी ऋषभदेव ने दीक्षा लेते समय अपने सौ पुत्रो को जिन देशो उनके दर्शनार्थ गये । उनका उपदेश सुनकर राजा ने जैन का राज्य दिया था, उन देशो मे कोशल देश का ही नाम धर्म धारण कर लिया। शिवगुप्त को इससे बड़ा क्षोभ माया है। चक्रवर्ती भरत की दिग्विजय के प्रसङ्ग में भी हुमा। वह पृथ्वी नरेश सुमति के पास गया, जो शिवगुप्त मध्य देश मे कोशल का नाम मिलता है। परवर्ती काल में का शिष्य था। उसने राजा से शिकायत की। राजा ने कोणल जनपद का नाम कुणाल या कुलाल भी प्रसिद्ध हो एक धूर्त को जयसेन की हत्या करने का कार्य मौंपा। वह गया। धूतं श्रावस्ती पवा। उसने पाचार्य यति वृषभ स मुनि
महावीर से पहले जिन सोलह महाजनपदो की और दीक्षा ले ली। एक दिन राजा जयसेन मन्दिर में मूनि छह महानगरियो की चर्चा प्राचीन साहित्य में मिलती है, वन्दना के लिये गया । जब वह नव दीक्षित मुनि के चरणों उनमें श्रावको का भी नाम है। उस समय कोशल राज्य में झुका तो उस धूर्त ने राजा की हत्या कर दी और भाग बड़ा शक्तिशाली था। काशी पौर साकेत पर भी कोशलो गया । प्राचार्य ने यह देखकर विचार किया कि लोग मेरे का अधिकार था। शाक्य सघ इन्हें अपना अधीश्वर मानता ऊपर हत्या का सन्देह करेगे । अतः उन्होने दीवार पर था। यह महाराज्य दक्षिण में गङ्गा और पूर्व मे गण्डक घटना लिखकर प्रात्महत्या कर ली।
नदी को स्पर्श करता था। इस काल मे श्रावस्ती में एक -हरिसेण कथाकोस कथा १५६ विश्वविद्यालय भी था। पावं परम्परा के मुनि केशी से भ. महावीर के पट्ट महावीर के समय में श्रावस्ती का राजा प्रसेनजित गणधर गौतम स्वाकी की भेंट श्रावस्ती में ही हुई थी। था। यह बडा प्रतापी नरेश था। उसने अपनी बहन का भगवान् महावीर के कई चातुर्मास भी यहां हुए थे। इस विवाह मगध सम्राट् श्रणिक बिम्बसार के साथ कर दिया प्रकार के स्पष्ट उल्लेख श्वेतांबर प्रागमों में मिलते है। छा और काशी की पाय दहेज मे दे दी थी। प्रसेनजित के
प्राचीन काल में यहां पर जैनों के अनेकों मन्दिर और पुत्र विदूडभ अथवा विदूरथ ने राजगृह मे अपने राजनैतिक स्तूर बने हुए थे। भ. समवनाथ का विशाल मन्दिर भी सम्बन्ध सुदृढ़ करने के लिये अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह यहाँ निर्मित हा था। इस मन्दिर के सम्बन्ध में श्री जिन श्रेणिक के पुत्र कुणिक अथवा प्रजातशत्रु के साथ कर दिया प्रभ सूरि ने विविष तीर्थ कल्प में लिखा है-'यहाँ का था। किन्तु काणी के ऊपर दोनों राज्यों का झगड़ा बराबर भगवान् सभवनाथ का विशाल जिन भवन रन निर्मित होता रहा । कोशल नरेश ने एक बार काशी को राजगृह था, जिसकी रक्षा मणिभद्र यक्ष किया करता था। इस १-'भूगोल'-संयुक्त प्रान्ताङ्क पृष्ठ २८६ यक्ष के प्रभाव से मन्दिर के किवाड़ प्रातः होते ही स्वयं २-हरिषेण कथाकोश कथा ८१ खूल जाते थे और सूर्यास्त होते ही बद हो जाया करते थे।' ३-प्राचार्य चतुरसेन शाक्षी-वैशाली की नगरवधू 'भूमि' १-श्रावस्ती नगरी कल्प
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