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जैन तीर्थ श्रावस्ती
-प० बलभद्र जैन
मार्ग-श्रावस्ती उत्तरप्रदेश के बलरामपुर-बहराइच सावित्योए संमवदेवों य निवारिणा सुसेरणाए । रोड पर अवस्थित है। यह सड़क मार्ग से अयोध्या से १०६ मग्गसिर पुणिमाए जेट्टारिक्खम्मि संजावो ॥५२८ कि०मी० है जो इस प्रकार है-अयोध्या से गोंडा ५० पर्यात् श्रावस्तो नगरी में सभवनाथ मगसिर शुक्ला कि०मी० । गोडा से बलरामपुर ४२ कि०मी० । बलरामः पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न हर। उनके पिता का से थावस्ती १७ कि०मी० । यह प्राचीन नगर है किन्तु अब नाम जितारि और माता का नाम सुषेणा था। तो यह खण्डहगे के रूप में बिखरा पड़ा है । इस नगरी के इसी प्रकार पद्म पुराण, नराग चरित, हरिवंश पुराण खण्डहर गोंडा और बहराइच जिलो की सीमा पर 'सहेट- उत्तर पुराण आदि में भी उल्लेख मिलते है। महेट' नाम से बिखरे पड़े हैं। ये अर्धचन्द्राकार स्थिति में संभवकुमार ने अपना बाल्यकाल पोर युवावस्था यहीं एक मील चौडे और सवा तीन मील लम्बे क्षेत्र में बिखरे बिताई। उन्होने राज्य शासन मोर सांसारिक भोगों का हुए है। रेल मार्ग से यहाँ पहुँचने के लिये उत्तर पूर्वी रेलवे भी स्वाद लिया। लेकिन एक दिन जब उन्होंने हवा के के गोंडा-गोरखपुर लाइन के बलरामपुर स्टेशन पर उतरना द्वारा मेघों को गयन में विलीन होते देखा तो उन्हे जीवन चाहिये । यहाँ से क्षेत्र पश्चिम में है। यह बलरामपुर से के समस्त भोगों की क्षणभगुरता का यकायक अनुभव हुआ बहराइच जाने वाली सड़क के किनारे पर है । एक छोटी पोर उन्हे संसार से वैराग्य हो गया । फलत मंगसिर शुक्ला सड़क खण्डहरो तक जाती है । सहेट-महेट पहुँचने का सुगम पूर्णमासी को श्रावस्ती के सहेतुक वन में दीक्षा ले ली। साधन बलरामपुर-बहराइच के बीच चलने वाली सरकारी तब इन्द्रों, देवो और मनुष्यों ने भगवान् का तप कल्याणक बस है । इसके अलावा बलरामपुर से टैक्सी, जीप आदि भी मनाया ।' चौदह वर्ष तक भगवान् ने घोर तप किया और मिलती हैं। यहाँ ठहरने के लिये जैन धर्मशाला बनी हुई जब घातिया कर्म नष्ट करके कार्तिक कृष्णा ४ को केवल
ज्ञान हो गया, तब भी देवो और मनुष्यों ने श्रावस्ती के
सहेतुक बन में बड़े उल्लास के साथ ज्ञान कल्याणक का जैन तीर्थ-श्रावस्ती प्रसिद्ध कल्याणक तीर्थ है ।
पूजन किया। इस प्रकार इस नगरी को भगवान् सभवनाथ तीसरे तीर्थकर भगवान् सभवनाथ के गर्भ, जन्म, तप और
के चार कल्याणक मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुप्रा है। इससे केवल ज्ञान कल्याणक यही हुए थे। चारों प्रकार के देवों
यह पवित्र नगरी एक महान् तीर्थ के रूप में मान्य हो गई और उन मनुष्यों ने इन कल्याणकों की पूजा और उत्सव किया था । भगवान् संभवनाथ का प्रथम समवशरण यही हरिवश पुराण (सर्ग २८ श्लोक २६) के अनुसार लगा था और उन्होंने यही पर धर्मचक्र प्रवर्तन किया था। जित शत्रु नरेश के पुत्र मृगध्वज ने श्रावस्ती के उद्यान में __ आर्ष ग्रन्थ तिलोय पण्णत्ति में निम्न प्रकार का १-तिलोयपण्णत्ति-४/६४३, ६४६ उल्लेख मिलता है:
२ , -४/६८१